Suzhal Review: सुळल – द वर्टेक्स के बजाये च्युइंग गम नाम रखना चाहिए था इस सीरीज का

संस्कृत भाषा के साहित्य में गजब की रेंज है. न केवल धार्मिक ग्रन्थ बल्कि कहानियों के माध्यम से सीख देने की परंपरा को भी संस्कृत भाषा में बहुत ही सुन्दर तरीके से अपनाया गया है. कथासरित्सागर नामक एक ग्रन्थ में उज्जयिनी के राजा विक्रमदित्य और एक पिशाच “वेताल” के आपसी संवादों पर आधारित है “बेताल पचीसी”. इसी बेताल पचीसी को आधार बना कर लेखक निर्देशक और पति-पत्नी पुष्कर और गायत्री ने एक फिल्म बनाई थी – आर माधवन और विजय सेतुपति अभिनीत तमिल फिल्म विक्रम-वेधा. इस फिल्म का हिंदी रीमेक भी बनाया जा रहा है जिसमें निर्देशक तो पुष्कर और गायत्री ही हैं, लेकिन अभिनेता हैं सैफ अली खान (Saif Ali Khan) और ऋितिक रोशन. इन्हीं पुष्कर गायत्री ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी वॉल वॉचर फिल्म्स के जरिये अब वेब सीरीज निर्माण में कदम रखा है, तमिल की वेब सीरीज “सुळल – द वर्टेक्स” (Suzhal: The Vortex) से. इसे लिखा भी इन्हीं दोनों ने है, लेकिन निर्देशन का जिम्मा सौंपा है ब्रम्मा जी (पहले 4 एपिसोड) और अनुचरण मुरुगइयन (आखिरी 4 एपिसोड) को. दोनों निर्देशकों ने इस वेब सीरीज में अपनी मौलिक निर्देशकीय प्रतिभा का अद्भुत प्रदर्शन किया है. इस वेब सीरीज के मूल आयडिया के इर्द गिर्द इतने सारे सब-प्लॉट्स हैं कि सीरीज की लम्बाई असहनीय होने लगती है. बेहतरीन प्रोडक्शन डिज़ाइन और एस्थेटिक्स के बावजूद, सीरीज के अलग अलग ट्रैक्स बोर करने लगते हैं क्योंकि उनका क्लाइमेक्स से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं निकलता.

कहानी एक सीमेंट कारखाने के मालिक मुकेश वड्डी (युसूफ हुसैन)की है जो मज़दूर यूनियन के लीडर षण्मुगम (आर पार्थिबन) और स्थानीय पुलिस थाना इंचार्ज इंस्पेक्टर रेजिना (श्रेया रेड्डी) के साथ मिलकर फैक्ट्री में आग लगवा देता है ताकि लगातार घाटे में जा रही उसकी फैक्ट्री बंद हो सके, आग लगाने के इल्जाम में पुलिस षण्मुगम को गिरफ्तार कर सके और बीमा कंपनी इस फैक्ट्री के जलने के एवज में भारी भरकम मुआवजा दे. इस मुआवज़े से वो फैक्ट्री के मज़दूरों को वादे के अनुसार एक साल का वेतन दे सके और उस कसबे में शांति व्यवस्था बनी रहे. इसके लिए षण्मुगम सभी मजदूरों के साथ हड़ताल कर देता है ताकि फैक्ट्री में कोई मजदूर न हो, इंस्पेक्टर रेजिना पेंट थिनर खरीद कर लाती है जो षण्मुगम फैक्ट्री जलाने के काम लेता है.

इस दुर्घटना के बाद और षण्मुगम की गिरफ्तारी से पहले उसे पता चलता है कि उसकी छोटी बेटी निला (गोपिका रमेश) लापता है. कसबे का इंस्पेक्टर सक्कराई (कादिर) फैक्ट्री की हड़ताल और आगजनी के लिए षण्मुगम को गिरफ्तार कर के ले जाता है. इसके साथ साथ कादिर को शुरू करनी पड़ती है षण्मुगम की बेटी की खोज. ये खोज, सीसीटीवी के फुटेज में उसके अपहरण होने से लेकर, षण्मुगम की बड़ी बेटी नंदिनी (ऐश्वर्या राजेश) से होती हुई इंस्पेक्टर रेजिना के बेटे अधिसयम (फ्रेडरिक जॉन) से हो कर जा पहुंचती है षण्मुगम के भाई गुणा (कुमारावेल) तक. इस सफर के भंवर में और भी किरदार हैं जो महत्वपूर्ण हैं जैसे मुकेश वड्डी का बेटा त्रिलोक, बीमा कंपनी का सर्वेयर कोथंडरमन.

सुळल – द वर्टेक्स की खास बात
इस सीरीज की सबसे खास बात है इसकी कथाकथन यानि स्टोरी टेलिंग. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ गांवों में देवी अंगलमन की पूजा की जाती है. इसमें देवी की मूर्तियों की यात्रा निकाली जाती है, रंगोली बनायीं जाती है, कवि और गायक, स्थानीय कथाओं और लोक नायकों की कहानियां गा कर सुनाते हैं. नृत्य नाटिकाएं मंचित होती हैं, और अंत में बकरी की बलि दी जाती है. कई गाँवों में बाज या भेड़ की बलि दी जाती है और पूरे गाँव में उसका मांस खाया जाता है. इस देवी की पूजा के त्यौहार को मायना कोल्लै के नाम से जाना जाता है. इस देवी की पूजा का उद्देश्य, मनुष्य के भीतर उठने वाली विध्वंस की इच्छा को नष्ट करना होता है. सुळल – द वर्टेक्स में इस त्यौहार के सामानांतर ही पूरी कहानी चलती है और इसी वजह से निर्देशक को बेहतरीन विरोधाभास और समानता एक साथ प्रस्तुत करने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ है.

कलाकारों का चयन उनके रोल के हिसाब से किया गया है ऐसा साफ़ नज़र आता है. एक युवा एग्रेसिव पुलिस अफसर जो खुद को कानून का हिमायती और जानकार समझता है, इस रोल में कादिर को लिया गया है. अपनी बॉस इंस्पेक्टर रेजिना, अपनी मंगेतर लक्ष्मी, अपने साथी अंसारी, यूनियन लीडर षण्मुगम, सबके साथ उसका बात करने का तरीका अलग अलग होता है यहां तक कि वह नंदिनी से भी बिलकुल अलग ढंग से बात करता है जो कि उसकी क्लासमेट रह चुकी है और अपहृत निला की बड़ी बहन है. ऐश्वर्या राजेश इस कहानी का सरप्राइज फैक्टर हैं. क्लाइमेक्स में जा कर उनकी भूमिका स्पष्ट होती है.

अरुण गवली पर बनी फिल्म “डैडी” में ऐश्वर्या (Aishwarya) ने अरुण गवली (Arun Gawli) की पत्नी आशा गवली का रोल किया था. उनका अनुभव और उनकी आंखें मिल कर किसी भी दर्शक को स्क्रीन से बांध के रखने के लिए काफी है. इंस्पेक्टर रेजिना के रोल में श्रेया रेड्डी की स्क्रीन प्रेज़ेन्स जबरदस्त है. बतौर इंस्पेक्टर और बतौर मां, उनके चेहरे की सख्ती और नरमी एकसाथ महसूस की जा सकती है. कम से कम 6 दशकों से सिनेमा में सक्रिय पार्थिबन तमिल फिल्मों का जाना माना चेहरा हैं. नेगेटिव शेड्स वाले किरदार ज्यादा करते हैं, लेकिन इस फिल्म में उनके किरदार में एक नयापन देखने को मिला है. क्लाइमेक्स में उनके होने से क्लाइमेक्स में और वजन आ जाता लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

सुळल – द वर्टेक्स की खामी
सुळल – द वर्टेक्स में एक खामी है इसका कुछ ज्यादा लम्बा होना. बहुत देर तक तो मिल में लगी आग की बात चलती है, वहीं निला के अपहरण की साज़िश की भी बात सामने आती है, मुकेश वड्डी के बेटे त्रिलोक वड्डी के गे होने का एक ट्रैक साथ चलता है, सक्कराई की लव स्टोरी भी बीच बीच में आती रहती है. नीला और रेजिना के बेटे अधिसयम के बीच प्रेम का एक और ट्रैक है, कादिर की जांच पड़ताल की कहानी भी अलग अलग जगह घूमती रहती है. इन सबको मिला कर जो प्रस्तुत किया गया है उसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि निर्देशक आपको परदे से नजर हटाने ही नहीं देना चाहता. इस चक्कर में कहानियां खिंच गयी और नंदिनी- निला का ट्रैक सीधे अंत में नज़र आया. वहां तक पहुंचने के लिए रास्ते घुमावदार नहीं थे बल्कि हर बार एक नए रास्ते पर जाना पड़ता था लेकिन वो रास्ता कहीं नहीं पहुंचता था तो दर्शक फिर से असली रास्ते पर लौट आता था. कहानी च्युइंग गम के समान हो गयी थी.

छोटी मोटी बातों को नज़रअंदाज़ कर के सुळल – द वर्टेक्स को देखने का प्लान बनाइये और समय निकाल कर देखिये. हो सकता है बिंज वॉच न कर पाएं, फिर भी इसे ज़रूर देखें और ध्यान से देखें. तमिल भाषा की बेहतरीन वेब सीरीज है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

सैम सी. एस./5

Tags: Film review, Web Series



{*Disclaimer:* The following news is sourced directly from our news feed, and we do not exert control over its content. We cannot be held responsible for the accuracy or validity of any information presented in this news article.}

Source by [author_name]

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *