14 मिनट पहलेलेखक: अभिषेक गर्ग
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23 जुलाई को पेश केंद्रीय बजट 2024-25 के हिसाब से जानिए भारत सरकार के पास पैसा कहां से आएगा और कहां-कहां खर्च होगा…
केंद्रीय बजट की दो बारीक बातें
1. सरकार पैसा कमाती नहीं, जुटाती है
सरकार किसी कंपनी की तरह मुनाफा नहीं कमाती, उसका काम योजनाओं और प्रोजेक्ट्स के जरिए लोगों का भला करना होता है। इसके लिए सरकार पहले अपने खर्च का अनुमान लगाती है। इसके बाद खर्च के हिसाब से पैसा जुटाती है। इसलिए सरकार के जुटाए हुए पैसे को कमाई नहीं, जमा कह सकते हैं।
2. कुल खर्च में राज्यों का हिस्सा शामिल
बजट के पूरे हिसाब-किताब को समझने के लिए एक और बारीक बात जान लेनी चाहिए। सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष के अंतरिम बजट का साइज 47.7 लाख करोड़ रुपए आंका था, लेकिन जमा और खर्च के हिसाब में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए जाने वाला पैसा भी शामिल किया जाता है। इसके कारण अंतरिम बजट में मोदी सरकार के पास कुल 59.9 लाख करोड़ रुपए जमा होने का अनुमान था।
सरकार के हिसाब-किताब के मोटे तौर पर दो हिस्से हैं- जमा और खर्च। जमा और खर्च भी दो तरह के होते हैं। नीचे दिए गए चार्ट से पूरी बात आसानी से समझ में आ जाएगी…
जमा और खर्च के हिसाब को देखा जाए तो समझ आता है कि सरकार के पास ज्यादातर पैसा 28% कर्ज से आता है। वहीं कर्ज का ब्याज चुकाने में सरकार 20% पैसा खर्च कर देती है। अब मन में सवाल आता है कि सरकार तो सरकार है, फिर उसे कर्ज कौन देता है?
इसका जवाब, सवाल में ही छिपा है। सरकार तो सरकार है, इसलिए सरकार को हर कोई कर्ज देता है। सरकार मोटे तौर पर 4 जरियों से कर्ज जुटाती है-
1. देश के भीतर से: बीमा कंपनियों, RBI, अन्य दूसरे बैंकों से सरकार कर्ज लेती है।
2. विदेश से: मित्र देशों, इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF), वर्ल्ड बैंक, अन्य अंतरराष्ट्रीय बैंक से सरकार कर्ज लेती है।
3. बाजार से: सरकार ट्रेजरी बिल, बॉन्ड, स्मॉल सेविंग स्कीम, आदि को जारी करती है, जिन्हें लोग और कंपनियां खरीदती हैं। समय-समय पर सरकार इसका ब्याज लोगों और कंपनियों को देती है।
4. अन्य तरीकों से: सरकार अपनी संपत्ति, गोल्ड, आदि को गिरवी रखकर भी कर्ज उठाती है। जैसे- 1990 में सरकार ने सोना गिरवी रखकर पैसा उठाया था।
मोदी सरकार के 9 सालों में 220% बढ़ा कर्ज
- 2005 से 2013 तक 9 साल में कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान सरकार का कुल कर्ज करीब 17 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर करीब 50 लाख करोड़ रुपए हो गया था। यानी मनमोहन सरकार में कुल कर्ज में 190% की बढ़त हुई।
- वहीं BJP की मोदी सरकार के 2014 से सितंबर 2023 तक 9 साल में सरकार का कर्ज लगभग 55 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर लगभग 161 लाख करोड़ रुपए हो गया है। यानी मोदी सरकार के दौरान कर्ज लगभग 220% बढ़ा।
इकोनॉमिस्ट अरुण कुमार कहते हैं, ‘सरकार का कर्ज इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आमदनी और खर्च कितना है। अगर खर्च आमदनी से ज्यादा है तो सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। इसका असर राजकोषीय घाटे पर पड़ता है।’
अर्थशास्त्री परंजॉय गुहा ठाकुरता एक इंटरव्यू में कहते हैं कि 2014 से ही मोदी सरकार ने कई फ्रीबीज योजनाओं की शुरुआत की है। लोगों को मुफ्त की चीजें देने के लिए सरकार पैसा कर्ज पर लेती है। सब्सिडी, डिफेंस, जैसे सरकारी खर्चों के कारण देश का वित्तीय घाटा बढ़ता है। BJP की तरह ही राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने भी कई फ्रीबीज योजनाएं शुरू की हैं। जैसे- राजस्थान में गहलोत सरकार के दौरान इंदिरा गांधी फ्री मोबाइल योजना, फ्री स्कूटी योजना, फ्री राशन योजना आदि।
अमेरिका, जापान, फ्रांस जैसे देशों पर अपनी GDP से ज्यादा कर्ज
भारत में कर्ज को निगेटिव नजरिए से देखा जाता है। लोग मानते हैं कि सरकार कर्ज लेकर घाटे का सौदा कर रही है और इसका बोझ जनता पर डाला जाएगा। अर्थशास्त्री मानते हैं कि मोटे तौर पर ये नजरिया सही नहीं है।
केयर रेटिंग एजेंसी के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस के मुताबिक, ‘देश पर कर्ज बढ़ने का महंगाई से कोई सीधा संबंध नहीं है। सरकार कर्ज के पैसे को आय बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। कर्ज का पैसा जब बाजार में आता है तो इससे सरकार के पास जमा होने वाला टैक्स बढ़ जाता है। सरकार इस पैसे का इस्तेमाल सड़क, पुल, एक्सप्रेस-वे जैसी बड़ी-बड़ी योजनाओं पर करती है। इन योजनाओं से लोगों को फायदा मिलता है।
लेकिन कर्ज के पैसे का गलत इस्तेमाल हो तो महंगाई बढ़ भी सकती है। जैसे- कर्ज लेकर आम लोगों में पैसा बांट दिया जाए तो लोग ज्यादा चीजें खरीदने लगेंगे और बाजार में मांग बढ़ेगी। मांग बढ़ने से सप्लाई पूरी नहीं होने पर चीजों की कीमत बढ़ेंगी।’
दुनियाभर के बड़े देश इकोनॉमी को रफ्तार देने के लिए कर्ज लेते हैं। हांलाकि, इसमें रिस्क भी ज्यादा होता है। दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले देशों में जापान, इटली, फ्रांस जैसे देश शामिल हैं। ये सभी देश GDP के मुकाबले में भारत से ज्यादा कर्ज लेते हैं। दरअसल, कर्ज कम है या ज्यादा, इसकी तुलना GDP के अनुपात में की जाती है।
नोटः इस स्टोरी के सभी आंकड़े अंतरिम बजट 2024 के हिसाब से हैं। 23 जुलाई को पेश होने वाले आम बजट में ये आंकड़ा बदल सकता है।
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स्केचः संदीप पाल
ग्राफिक्स: कुणाल शर्मा और अंकित पाठक
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