काठमांडू24 मिनट पहले
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नेपाल के सिक्योरिटी एक्सपर्ट डॉक्टर गेजा शर्मा वागले ने कहा- बहुत सीधी सी बात है। फौज का काम देश की हिफाजत करना है। उसे बाकी कामों से दूर रहना चाहिए। (प्रतीकात्मक)
पड़ोसी देश नेपाल की सेना अब टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी उतर रही है। ये इसलिए अहम है, क्योंकि वो पहले से ही पेट्रोलियम, रोड कंस्ट्रक्शन, वॉल पेंट्स, स्कूल और मेडिकल कॉलेज जैसे मोटे मुनाफे वाले कारोबार से जुड़ी हुई है।
नेपाल के अखबार ‘काठमांडू पोस्ट’ की गुरुवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि आर्मी अफसरों ने एक पुरानी टेक्सटाइल फैक्ट्री के टेकओवर के लिए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड से अप्रूवल ले लिया है।
पाकिस्तान आर्मी की तरह नेपाली सेना की भी इसलिए आलोचना होती रही है कि वो अपने तय काम से ज्यादा कारोबार पर फोकस करती है।
नेपाल आर्मी और बिजनेस
- रिपोर्ट के मुताबिक- नेपाली सेना के लिए बिजनेस कोई नई बात नहीं है। वो कई साल से कारोबार कर रही है और उसके प्रोडक्ट्स की रेंज बहुत बड़ी है। पेट्रोलियम, रोड और बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, वॉल पेंट्स या इमल्शन इंडस्ट्री और प्राइमरी स्कूल्स से लेकर मेडिकल कॉलेज तक उसकी जद में हैं। शायद इतना ही काफी नहीं था। 2021 में उसने बोतलबंद पानी बेचना भी शुरू कर दिया।
- नेपाल में एक कपड़ा फैक्ट्री है। इसका नाम हेताउदा कपड़ा उद्योग है। ये 25 साल पहले शुरू हुई और सिर्फ चार साल चलने के बाद इसे बंद कर दिया गया। बहरहाल, बुधवार को आर्मी अफसरों की टीम प्रधानमंत्री प्रचंड से मिली। उन्हें बताया कि आर्मी इस कपड़ा फैक्ट्री को शुरू करने जा रही है। यह जगह काठमांडू से काफी करीब है और बेशकीमती मानी जाती है।
नेपाली सेना के लिए बिजनेस कोई नई बात नहीं है। वो कई साल से कारोबार कर रही है और उसके प्रोडक्ट्स की रेंज बहुत बड़ी है। (प्रतीकात्मक)
डिफेंस मिनिस्टर भी मौजूद रहे
- डिप्टी प्राइम मिनिस्टर पूर्ण बहादुर खड़का के पास ही डिफेंस मिनिस्ट्री की भी जिम्मेदारी है। उनके अलावा इंडस्ट्री मिनिस्टर रमेश रिजल, चीफ सेक्रेटरी बैकुंठ आर्यल, डिफेंस सेक्रेटरी किरन राज शर्मा, चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल प्रभू राम शर्मा और दूसरे आला अफसर भी इस मीटिंग में मौजूद थे।
- दरअसल, नेपाल सरकार ने देश की उन फैक्ट्रीज या इंडस्ट्रियल हाउसेज को फिर शुरू करने का प्लान बनाया है। इसके लिए तैयार की गई रिपोर्ट पर अमल शुरू हो चुका है। नेपाल आर्मी ने इसी पॉलिसी का फायदा उठाया और हेताउदा कपड़ा उद्योग को फिर शुरू करने का फैसला किया। इस प्लांट के लिए आर्थिक मदद चीन ने दी थी।
- नेपाल आर्मी ने सरकार को जो प्लान सौंपा है, उसके मुताबिक- हेताउदा कपड़ा उद्योग इसलिए बंद करना पड़ा था, क्योंकि इसके प्रोडक्ट्स का प्रमोशन नहीं किया गया। इसके अलावा टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन भी नहीं हुआ। फिर बिजली की कमी और खराब मैनेजमेंट भी इसके क्लोजर के लिए जिम्मेदार फैक्टर थे। आर्मी अब इन सभी कमियों को दूर करेगी और यह नेपाल के ब्रांड के तौर पर प्रमोट किया जाएगा।
एक्सपर्ट बोले- ये गलत कदम
- काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक- सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स आर्मी के इस नए प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं। उनके मुताबिक- दुनिया और नेपाल में सिक्योरिटी के हालात बहुत तेजी से बदल रहे हैं और ऐसे में बेहतर यही होगा कि फौज सिर्फ डिफेंस पर ध्यान दे। नेपाल के सिक्योरिटी एक्सपर्ट डॉक्टर गेजा शर्मा वागले ने कहा- बहुत सीधी सी बात है। फौज का काम देश की हिफाजत करना है। उसे बाकी कामों से दूर रहना चाहिए।
- वागले आगे कहते हैं- नेशनल सिक्योरिटी के भी कई पहलू हैं। जैसे, इंटेलिजेंस, नेशनल पार्क सिक्योरिटी, नैचुरल रिजर्व्स की सिक्योरिटी और कई मौकों पर लोगों की जान बचाना। लिहाजा, किसी भी नॉन मिलिट्री एक्टिविटीज से बचना चाहिए। इससे लोगों में इमेज भी खराब होती है।
- 2002 में नेपाली फौज बैंकिंग सेक्टर में भी एंट्री करना चाहती थी। इसके अलावा उसने पाकिस्तानी फौज की तर्ज पर हायड्रोपॉवर प्रोजेक्ट्स, प्लॉटिंग और एग्रीकल्चर के लिए भी परमीशन मांगी थी। अब यह प्रपोजल भी नए सिरे से सरकार के पास भेजे गए हैं।
नेपाली सेना किस हद तक कारोबारी हो चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब संसद से आर्मी एक्ट में बदलाव चाहती है। (प्रतीकात्मक)
बिजनेस के लिए आर्मी एक्ट में तक बदलाव
- रिपोर्ट के मुताबिक- नेपाली सेना किस हद तक कारोबारी हो चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब संसद से आर्मी एक्ट में बदलाव चाहती है। इसके लिए संसद को भेजे गए प्रस्ताव में कहा गया है कि आर्मी वेलफेयर फंड का इस्तेमाल बिजनेस एक्टिविटीज में किए जाने की मंजूरी दी जानी चाहिए। इसके लिए आर्मी को ‘प्रमोटर’ का दर्जा दिया जाए।
- कहा जा रहा है कि सरकार अब खुली बोली के जरिए टेंडर अलॉटमेंट चाहती है, लेकिन आर्मी इसका विरोध करती है। लिहाजा, सरकार के खजाने में बड़े सरकारी ठेके बेचने से आने वाली रकम आ ही नहीं पाती। इसका असर विकास के कामों पर पड़ता है।