India Iran Chabahar Port Lease Deal | India Vs Pakistan Afghanistan Trade New Route | ईरान का चाहबार पोर्ट लीज पर लेगा भारत: 10 साल के लिए समझौता, इससे अफगान-सेंट्रल एशिया में व्यापार के लिए पाकिस्तान की जरूरत खत्म होगी


तेहरान2 मिनट पहले

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ईरान के दौरा पर गए थे। इसी दौरान चाहबार पोर्ट पर चर्चा हुई थी। - Dainik Bhaskar

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में ईरान के दौरा पर गए थे। इसी दौरान चाहबार पोर्ट पर चर्चा हुई थी।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की पाबंदियों के बीच ईरान के चाबहार पोर्ट को लेकर भारत एक बड़ी डील करने वाला है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत रणनीतिक और व्यापारिक रूप से अहम चाबहार पोर्ट को 10 साल के लिए लीज पर लेगा। इसके बाद पोर्ट का पूरा मैनेजमेंट भारत के पास होगा। भारत को इसके जरिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से व्यापार करने के लिए नया रूट मिल जाएगा।

विदेश मंत्री ने एस जयशंकर ने सोमवार (12 मई) को बताया कि केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को चाबहार पोर्ट की डील के लिए ईरान भेजा गया है। सोनोवाल के दौरे से ईरान चाबहार पोर्ट के मैनेजमेंट से जुड़े समझौते को अंतिम रूप देने वाला है। भारत और ईरान दो दशक से चाबहार पर काम कर रहे हैं।

चाबहार पोर्ट सीधा ओमान की खाड़ी से जुड़ता है। यह पोर्ट भारत और अफगानिस्तान को व्यापार के लिए वैकल्पिक रास्ता मुहैया कराता है।

चाबहार पोर्ट पूरा होने से भारत को ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के साथ सीधे व्यापार का रास्ता मिलेगा।

चाबहार पोर्ट पूरा होने से भारत को ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के साथ सीधे व्यापार का रास्ता मिलेगा।

क्या है चाबहार पोर्ट और भारत के लिए क्यों जरूरी हैं
भारत दुनियाभर में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहता है। चाहबार पोर्ट इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। भारत इस पोर्ट की मदद से ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। ईरान और भारत ने 2018 में चाबहार पोर्ट तैयार करने का समझौता किया था।

पहले भारत से अफगानिस्तान कोई भी माल भेजने के लिए उसे पाकिस्तान से गुजरना होता था। चाबहार बंदरगाह के विकास के बाद से अफगानिस्तान माल भेजने का यह सबसे अच्छा विकल्प है। भारत अफगानिस्तान को गेंहू भी इस रास्ते से भेज रहा है। अफगानिस्तान के अलावा यह पोर्ट भारत के लिए मध्य एशियाई देशों के भी रास्ते खोलेगा। इन देशों से गैस और तेल भी इस पोर्ट के जरिए लाया जा सकता है।

अमेरिका ने भारत को इस बंदरगाह के लिए हुए समझौतों को लेकर कुछ खास प्रतिबंधों में छूट दी है। चाहबार को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की तुलना में भारत के रणनीतिक पोर्ट के तौर पर देखा जा रहा है। ग्वादर को बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत चीन विकसित कर रहा है।

भारत ने अब तक क्या-क्या किया
चाबहार पोर्ट पर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय से काम चलता आया है। 2003 में तब इसे लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत हुई थी। इसके बाद अमेरिका की ईरान से चल तना तनी से बातचीत को बीच में ही रोकना पड़ा था। फिर UPA सरकार के दौरान 2013 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए 800 करोड़ रुपए निवेश करने की बात कही थी।

इस पर बात तब आगे बढ़ी जब 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था। मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने चाबहार के एक टर्मिनल में 7.09 करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा की थी। साथ ही भारत ने इस बंदरगाह के विकास के लिए 1250 करोड़ रुपए का कर्ज देने की भी घोषणा की थी।

फिर पिछले साल नवंबर में, विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के साथ कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर चर्चा की। चाबहार को विकसित करने वाली भारतीय कम्पनी IPGL के अनुसार, बंदरगाह के पूरी तरह विकसित होने पर इसकी क्षमता 82 मिलियन टन हो जाएगी।

इससे ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से भीड़ कम करने में राहत मिलेगी। इसी के साथ इसके नए तकनीक से बने होने के कारण यहाँ माल की आवाजाही आसानी से हो सकेगी।

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