मॉस्को3 मिनट पहले
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व्लादिमीर पुतिन आज 5वीं बार रूस के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। उनका शपथ ग्रहण समारोह मॉस्को के ग्रैंड क्रेमलिन पैलेस में भारतीय समय के मुताबिक दोपहर करीब 2:30 बजे शुरू होगा। यह सेरेमनी करीब 1 घंटे चलती है। रूस में 15-17 मार्च को हुए चुनाव में पुतिन को 88% वोट मिले थे। उनके विरोधी निकोले खारितोनोव को सिर्फ 4% वोट मिले थे।
ग्रैंड क्रेमलिन पैलेस वही जगह है, जहां रूस के जार परिवार के 3 राजाओं (एलेक्जेंडर 2, एलेक्जेंडर 3 और निकोलस 2) की ताजपोशी हुई थी। पुतिन ने साल 2000 में पहली बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। इसके बाद से 2004, 2012 और 2018 में भी वे राष्ट्रपति बन चुके हैं।
फुटेज 7 मई, 2018 का है, जब पुतिन ने चौथी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। तब वे करीब 77% वोटों के साथ चुनाव जीते थे।
शपथ ग्रहण में कौन-कौन शामिल होगा
शपथ ग्रहण समारोह में रूस की फेडरेल काउंसिल के सदस्य (सीनेट के सांसद), स्टेट डूमा के सदस्य (निचले सदन के सांसद), हाईकोर्ट के जज, अलग-अलग देशों के राजदूत और डिप्लोमैटिक कॉर्प्स शामिल होते हैं। 2018 में पुतिन के चौथे शपथ ग्रहण में जर्मनी के पूर्व चांसलर गेरहार्ड श्रोडर समेत करीब 6 हजार लोग मौजूद रहे थे। इसका लाइव टेलीकास्ट भी किया गया था।
समारोह के बाद रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के प्रमुख पेट्रिआर्क राष्ट्रपति के साथ कैथेड्रल चर्च में प्रार्थना करते हैं। वे राष्ट्रपति को बताते हैं कि देश की जनता ने उन पर भरोसा किया है। साथ ही उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं। यह प्रथा साल 1498 से जारी है, जब मॉस्को के प्रिंस दिमित्री इवानोविच का विवाह हुआ था। सेरेमनी की शुरुआत में रूस का प्रेसिडेंशियल बैंड वही धुन बजाता है, जो 1883 में एलेक्जेंडर 3 की ताजपोशी के वक्त बजाई गई थी।
रूस में राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की प्रक्रिया
समारोह की शुरुआत में रूस के पुराने राष्ट्रपति (जो पद छोड़ रहे हैं) क्रेमलिन रेजीमेंट की समीक्षा करते हैं। यह रेजीमैंट रूसी सेना की एक खास यूनिट है, जिस पर क्रेमलिन की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है। इसके बाद पुराने राष्ट्रपति ग्रैंड क्रेमलिन पैलेस जाते हैं।
क्रेमलिन पैलेस के अलेक्जेंडर हॉल में रूस का झंडा और ‘रशियन स्टैंडर्ड ऑफ द प्रेसिडेंट’ का फ्लैग लाया जाता है। इस झंडे पर रूस का एम्ब्लेम (प्रतीक चिन्ह) बना होता है। रूस की संवैधानिक कोर्ट के अध्यक्ष संविधान की कॉपी को पोडियम पर रखते हैं। इसके अलावा यहां राष्ट्रपति की चेन ऑफ ऑफिस भी रखी जाती है।
शपथ ग्रहण में इस्तेमाल होने वाली संविधान की कॉपी बेहद खास होती है। इसका कवर लाल रंग का होता है। इस पर सुनहरे रंग से ‘कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ रशिया’ लिखा होता है। इसके अलावा सिल्वर रंग में रूसी ‘कोर्ट ऑफ आर्म्स’ की तस्वीर बनी होती है। संविधान की इस कॉपी को राष्ट्रपति की लाइब्रेरी में रखा जाता है।
चेन ऑफ ऑफिस राष्ट्रपति पद का प्रतीक होती है। इसके बीच में ‘ऑर्डर फॉर मेरिट टू द फादरलैंड’ का रेड क्रॉस बना होता है। क्रॉस के पीछे गोलाकार में ‘बेनिफिट, ऑनर एंड ग्लोरी’ लिखा होता है।
संविधान की कॉपी पर हाथ रखकर शपथ लेते हैं राष्ट्रपति
शपथ के लिए स्टेज पर रूस की संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष और संवैधानिक कोर्ट के प्रेसिडेंट मौजूद होते हैं। शपथ ग्रहण की तैयारियां पूरी होने के बाद नए राष्ट्रपति को इसकी सूचना दी जाती है। इसके बाद उनका काफिला ग्रैंड क्रेमलिन पैलेस पहुंचता है। यहां सेंट जॉर्ज हॉल और सेंट एंड्र्यू हॉल को पार करते हुए नए राष्ट्रपति एलेक्जेंडर हॉल पहुंचते हैं।
रूस के नए राष्ट्रपति संविधान की कॉपी पर दाहिना हाथ रखकर पद की शपथ लेते हैं। इसके बाद कॉन्स्टीट्यूश्नल कोर्ट के अध्यक्ष उन्हें चेन ऑफ ऑफिस देते हैं और राष्ट्रपति की शपथ पूरी होने की घोषणा करते हैं। क्रेमलिन पैलेस में राष्ट्रगान होता है। इस दौरान राष्ट्रपति पैलेस के गुंबद पर ‘रशियन स्टैंडर्ड ऑफ द प्रेसिडेंट’ का झंडा फहराया जाता है।
इसके बाद नए राष्ट्रपति भाषण देते हैं। फिर राष्ट्रपति के सम्मान में 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इस समारोह का अंत कैथेड्रल स्क्वायर पर होता है। यहां राष्ट्रपति रूसी सेना के कमांडर-इन-चीफ के तौर पर रेजीमेंट का निरीक्षण करते हैं। इसके बाद क्रेमलिन रेजीमेंट मार्च पास्ट करती है।
साल 2012 में पुतिन के तीसरे शपथ ग्रहण समारोह पर करीब साढ़े 5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। हालांकि, साल 2018 में सेरेमनी पर खर्च का डेटा सामने नहीं आया।
2036 तक रूस के राष्ट्रपति रह सकते हैं पुतिन
रूसी संविधान के मुताबिक कोई भी व्यक्ति लगातार दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। इसके चलते 8 मई 2008 को पुतिन ने प्रधानमंत्री रह चुके दिमित्री मेदवेदेव को रूस का राष्ट्रपति बनवाया और खुद PM बन गए थे। नवंबर 2008 में दिमित्री ने संविधान संशोधन कर राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 से बढ़ाकर 6 साल कर दिया।
इसके बाद 2012 में पुतिन फिर से रूस के राष्ट्रपति बने। उन्होंने लगातार राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और देश की जनता को सोवियत यूनियन वाला रसूख वापस दिलाने के सपने दिखाए। 2014 में पुतिन ने क्रीमिया पर हमला कर उसे रूस के कब्जा में कर लिया। जनवरी 2020 में पुतिन ने संविधान संशोधन के जरिए दो टर्म तक राष्ट्रपति रहने की सीमा खत्म कर दी। इसे सही साबित करने के लिए रूस में जनमत संग्रह भी करवाया गया।
इसमें करीब 60% वोटरों ने हिस्सा लिया जिसमें 76% ने पुतिन के फैसले का समर्थन किया। इसी के साथ पुतिन के 2036 तक राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया। इससे पुतिन सोवियत संघ पर करीब तीन दशकों तक राज करने वाले स्टालिन से आगे निकल सकते हैं।
फोर्ब्स के मुताबिक, 2013 से लेकर 2016 तक लगातार 4 बार व्लादिमिर पुतिन को दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स घोषित किया गया था। व्लादिमीर पुतिन रूस के सबसे अमीर व्यक्ति माने जाते हैं। पुतिन की बेटियों की गिनती रूस की सबसे अमीर लड़कियों में होती है। इसके अलावा रूसी अरबपतियों के ग्रुप ‘ऑलिगार्की’ पर भी पुतिन की पकड़ काफी मजबूत है।
पुतिन के लिए यह कार्यकाल अहम क्यों
पुतिन पांचवी बार रूस के राष्ट्रपति चुने गए हैं। इस कार्यकाल के अंत में वे जोसेफ स्टालिन को पीछे छोड़ते हुए सबसे ज्यादा साल तक रूस पर राज करने वाले नेता बन जाएंगे। यूं तो 2036 तक पुतिन का राष्ट्रपति बने रहना लगभग तय है। हालांकि, इस बीच अपने हर कार्यकाल में पुतिन ने ऐसे कदम उठाए हैं, जो रूस पर उनकी पकड़ बनाए रखने में अहम साबित हुए।
2007 में जर्मनी के म्यूनिख में दिए एक भाषण में पुतिन ने सोवियत संघ की टूट को ‘20वीं सदी में विश्व राजनीति की सबसे भयावह त्रासदी’ बताया था। उन्होंने कहा था कि ये सोवियत संघ के नाम पर ऐतिहासिक रूस का विघटन था। हम एक अलग ही देश बन गए। हमने 1000 सालों में जो कुछ बनाया, उसका ज्यादातर हिस्सा खो गया।
यही वजह है कि सत्ता में आने के बाद पुतिन एक बार फिर रूस को ‘महाशक्ति’ बनाने में जुट गए। इस कोशिश ने उन्हें सत्ता में बनाए रखने में भी अहम भूमिका बनाई। पुतिन ने उन इलाकों में प्रभाव बढ़ाना शुरू किया जो कभी सोवियत संघ का हिस्सा थे। रूस ने 2008 में जॉर्जिया पर हमला कर दिया। इससे जॉर्जिया के दक्षिण ओसेटिया इलाके पर रूस का कब्जा हो गया।
रूसी राष्ट्रवाद को मजबूती देने के लिए पुतिन ने कई फैसले किए। बतौर राष्ट्रपति अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान पुतिन ने 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। इसके बाद चौथे कार्यकाल के दौरान उन्होंने 2022 में यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहांस्क पर हमला कर उन्हें स्वतंत्र घोषित कर दिया।
इसके बावजूद यूक्रेन ने अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो संगठन में शामिल होने की जिद नहीं छोड़ी। विवाद न थमने पर रूस ने यूक्रेन के खिलाफ मिलिट्री ऑपरेशन शुरू कर दिया। आज 3 साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी यह जंग जारी है। पुतिन के सामने सबसे बड़ी चुनौती जंग के बीच दुनिया पर रूस और अपना प्रभाव बनाए रखना है।
इसी वजह से पुतिन यूक्रेन की शर्तों पर सीजफायर के लिए तैयार नहीं है। अगर इस जंग में रूस अब पीछे हट गया तो दुनिया में पुतिन और रूस के कमजोर पड़ने का संदेश जाने का खतरा है। इसके अलावा पुतिन के सत्ता में आने के बाद से उनके खिलाफ आवाज उठाने वाले ज्यादातर विरोधियों की या तो संदिग्ध हालात में मौत हो गई है या फिर वे जेल में बंद हैं। ऐसे में पुतिन पर अपने विरोधियों को रास्ते से हटाने का भी आरोप लगता आया है।
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