अयोध्या/नई दिल्ली24 मिनट पहलेलेखक: मनोज जोशी
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रामलला के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह 22 जनवरी को हुआ है।
अयोध्या में रामलला के मंदिर में विराजित बालक राम के मस्तक पर इसी रामनवमी को दोपहर 12 बजे सूर्य स्वयं तिलक करेंगे। मंदिर का शिखर अभी अधूरा है। हालांकि निर्माण एजेंसी ने सूर्य तिलक के लिए जरूरी शिखर को 17 अप्रैल को आ रही राम नवमी से पहले पूरा करने का लक्ष्य रखा है। 7.5 सेमी का यह तिलक 3 मिनट के लिए होगा।
सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट CBRI के चीफ साइंटिस्ट एसके पाणिग्रही ने बताया कि इसके लिए मंदिर के शिखर से गर्भगृह तक उपकरण डिजाइन किया गया है। उपकरण का गर्भगृह वाला हिस्सा लगाया जा चुका है। बाकी मंदिर निर्माण पूर्ण होने पर जोड़ा जाएगा।
इधर, रामलला के पूजन के लिए अर्चकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण देने वाले आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने बताया कि अभी उनकी सेवा 5 साल के राजकुमार की तरह हो रही है। उन्हें रबड़ी-मालपुआ का भोग लग रहा है, और शयन से पहले उन्हें चारों वेद सुनाए जा रहे हैं।
यह तस्वीर 27 जनवरी के बालक राम के शृंगार की है, जिसे श्री राम मंदिर जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने शेयर किया है।
जानिए कैसे होगा बालक राम का सूर्य तिलक
सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के चीफ साइंटिस्ट एसके पाणिग्रही ने बताया कि सूर्य और चंद्र मास की तिथियां हर 19 साल में रिपीट होती हैं। इसे ध्यान रखते हुए टिल्ट मैकेनिज्म डेवलप किया गया है। इसमें मिरर (दर्पण) और लेंस को पेरिस्कॉपिक तरीके से लगाया गया है।
मंदिर के शिखर पर जिस दर्पण पर सूर्य की किरणें पड़ेंगी, वह रामनवमी पर ऐसे घूमेगा कि किरणें परावर्तित होकर श्रीराम के मस्तक तक पहुंचें। इसके लिए जरूरी है कि गर्भगृह के ऊपरी हिस्से को तेजी से तीसरी मंजिल तक पूरा कर दिया जाए, ताकि सूर्य तिलक के लिए उपकरण लगाया जा सके।
राम मंदिर के समान ही सूर्य तिलक मैकेनिज्म का इस्तेमाल पहले से ही कुछ जैन मंदिरों और कोणार्क के सूर्य मंदिर में किया जा रहा है, हालांकि उनमें अलग तरह की इंजीनियरिंग काम करती है।
श्रीरामोपासना संहिता के आधार पर हो रही बालक राम की पूजा
रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनकी पूजा का विधान ऐसे तय किया गया है, जैसे राजा दशरथ के महल में अयोध्या के राजकुमार की 5 साल की अवस्था में सेवक सेवा कर रहे हों। एक राजकुमार बालक की तरह उन्हें जगाया जाता है। उनकी रुचि का भोजन कराया जाता है। आराम कराया जाता है। वे राजकुमार की ही तरह जनता को दर्शन देते हैं। दान करते हैं। संगीत सुनते हैं और रोज चारों वेदों का पठा भी सुनते हैं।
वेद, आगम व अन्य शास्त्रों के आधार पर रामलला की पूजा के लिए श्रीरामोपासना नाम से संहिता बनाई गई है। यह केवल एक मूर्ति की पूजा और प्रतिष्ठा नहीं है, बल्कि उन गुणों की पूजा और प्रतिष्ठा है… जिनके लिए युगों बाद भी राम याद किए जाते हैं।
रामलला में अयोध्या के राजकुमार का वैभव भी झलक रहा है। वे लगभग 25 करोड़ की ज्वैलरी पहने हुए हैं। ट्रस्ट की हजारों करोड़ की संपत्ति भी आखिर रामलला की ही है
आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने बताया बालकर राम के पूजन का शेड्यूल
- पहले जागरण- सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक की दिनचर्या तय है। रामलला को अर्चक सुबह 4 बजे उसी तरह जगाते हैं, जैसे माता कौशल्या जगाती थीं। रामलला और गुरुओं की आज्ञा लेकर ही अर्चक गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। इसके बाद जय-जयकार करते हैं। बालक-राम का बिस्तर ठीक किया जाता है। उन्हें मंजन कराया जाता है। रामलला को मुकुट या पगड़ी पहनाई जाती है, क्योंकि वे राजकुमार हैं, खुले सिर किसी के सामने नहीं जाते। इसके बाद अखंड फल का भोग लगता है। इसमें राजकुमार की रुचि के अनुसार फल, रबड़ी, मालपुआ, मक्खन, मिश्री, मलाई आदि होती है। भगवान को मालपुआ बहुत पसंद है।
- फिर पूजन- मंगला आरती होती है। इसमें ऐसे व्यक्तियों को ही प्रवेश देते हैं, जिनके बारे में मान्यता है कि उनके दर्शन से श्री और सौभाग्य में वृद्धि होती है। रामलला को सफेद गाय और बछड़े का दर्शन कराया जाता है। फिर गज दर्शन कराया जाता है। ट्रस्ट ने इसके लिए स्वर्ण गज की व्यवस्था है। राजकुमार अपने स्वभाव के अनुरूप रोज दान करते हैं। फिर पट बंद हो जाते हैं। भगवान को राजकीय पद्धति से स्नान कराया जाता है। उन्हें दिन और उत्सव के अनुसार वस्त्र पहनाए जाते हैं। हर दिन के लिए अलग-अलग रंग के वस्त्र तय हैं। उत्सवों के अवसर पर वे पीले वस्त्र पहनेंगे।
- बाल भोग और शृंगार आरती- बाल भोग, शृंगार आरती के बाद प्रभु दर्शन देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया लगभग सुबह 6:30 बजे तक संपन्न होती है। दर्शनों के बाद करीब 9:30 बजे कुछ देर के लिए पट बंद होते हैं। 5 वर्ष की अवस्था में राजकुमार लगातार दर्शन नहीं दे सकते, इसलिए उन्हें सहज किया जाता है। भोग लगाया जाता है। कपड़े ठीक किए जाते हैं। फिर 11:30 बजे तक दर्शन का क्रम चलता है।
- राजभोग- 11:30 बजे राजभोग लगता है। इसकी पद्धति भी तय है। 12 बजे राजभोग आरती होती है। राजभोग के पद सुनाए जाते हैं। संगीत की सेवा होती है। भगवान लगभग आधा घंटा सबको दर्शन देते हैं। भगवान सौलभ्य गुण से परिपूर्ण हैं, वे सभी को दर्शन देते हैं और 12:30 बजे मध्यान्ह विश्राम शुरू हो जाता है। दोपहर ढाई बजे के बाद उन्हें फिर से जगाया जाता है। फिर से भोग लगाया जाता है और आरती होती है। इसके बाद दर्शन शुरू होते हैं। शाम 6:30 बजे संध्या आरती होती है। इस बीच में भी एक बार ब्रेक लिया जाता है।
- शयन आरती- रात करीब 8:00-8:30 बजे शयन आरती होती है। शयन आरती से पहले भोग लगाया जाता है। प्रभु को संगीत सुनाया जाता है। भगवान को रोज चारों वेद सुनाए जाते है। राजा दशरथ स्वयं वेदों के ज्ञाता थे और भगवान राम के बारे में कहा जाता है कि वेद उनकी श्वास हैं।
- शयन के अनुरूप वस्त्र- प्रभु के शयन के अनुरूप वस्त्र पहनाए जाते हैं। बिस्तर बिछाया जाता है। ठंड के मौसम में हीटर और गर्मी में एसी लगाया जाएगा। करीब आधा घंटा फिर दर्शन देते हैं। इसके बाद भगवान को शयन कराया जाता है। शयन के समय बाहर आते समय अर्चक द्वारपाल से बोल कर निकलते हैं कि भगवान को रात में कुछ जरूरत हो तो उनका ध्यान रखें। भगवान के पास पीने के लिए पानी रखा जाता है, ताकि उन्हें रात में प्यास लगे तो वे पानी पी सकें।
हर कदम पर पूरा विचार ताकि मर्यादा कायम रहे : भगवान मर्यादापुरुषोत्तम हैं। वे चाहते हैं कि उनकी मर्यादा कायम रहे। इसीलिए मंदिर निर्माण का वास्तु, मंदिर का अधूरा होना, प्राण प्रतिष्ठा हर बात पर जितना विचार विमर्श हुआ वह और किसी मंदिर के लिए नहीं होता। उसी के अनुरूप सभी कार्य संपन्न हो रहे हैं।
पहले दिन 5 लाख दर्शन और वीआईपी एंट्री बंद : ट्रस्ट ने लगभग 1 से डेढ़ लाख लोगों के दर्शन की व्यवस्था की बात कही थी, पर पहले ही दिन भगवान ने 5 लाख लोगों को दर्शन दिए। भगवान के वनवास से लौटने के बाद अयोध्या में आम जनों को दर्शन का जो वर्णन है उसे ध्यान कीजिए, भगवान ने वही व्यवस्था की। वीआईपी एंट्री बंद कर दी गई और जो पैदल है वह दर्शन कर पा रहा है। कहीं कोई अव्यवस्था नहीं है।
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