पटना8 घंटे पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
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लालू प्रसाद और नीतीश कुमार। यह फोटो डेढ़ साल पुरानी है, जब NDA से नीतीश अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए थे।
नीतीश कुमार आगे क्या करेंगे और लालू प्रसाद का क्या स्टैंड होगा, सभी की नजर इसी पर टिकी है। बिहार की राजनीति में दो धाकड़ समाजवादियों की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है। नीतीश के बारे में यह बात स्थापित है कि वे एक पद तभी छोड़ते हैं, जब उनके हाथ में दूसरा पद रहता है।
लालू से अलग होने के बाद नीतीश के पास दो ऑप्शन हैं। वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। दूसरा विकल्प यह है कि वह विधानसभा भंग करके चुनाव में जाएं। हालांकि इसकी संभावना कम है।
वहीं, लालू यादव भी इतनी जल्दी हथियार डाल देंगे, यह मुमकिन नहीं दिखता। आरजेडी सरकार बनाने की हर संभव कोशिश करेगी। इसकी पहली वजह है- लालू की पार्टी बिहार में सबसे बड़ा दल है, दूसरी वजह है- विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी आरजेडी से ही हैं।
हालांकि सरकार बनाने के लिए आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और AIMIM के विधायक मिलाकर 116 हो रहे हैं। बहुमत का आंकड़ा 122 है। इस स्थिति में उन्हें 6 विधायक और चाहिए। इसलिए लालू हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी के बेटे को डिप्टी सीएम के पद का ऑफर दे रहे हैं।
79 विधायकों के साथ राजद सबसे बड़ी पार्टी
बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से राजद 79 विधायकों के संख्या बल के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद दूसरे नंबर पर भाजपा है। इसके 78 विधायक हैं।
जेडीयू के पास 45 और कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं। लेफ्ट के पास 16 विधायक हैं। एक विधायक सुमित कुमार सिंह निर्दलीय हैं और AIMIM के पास एक विधायक अख्तरुल ईमान हैं।
हम पार्टी के पास चार विधायक हैं। विपक्ष में भाजपा, हम और एआईएमआईएम पार्टी है। जादुई आंकड़ा 122 का है। नीतीश कुमार अगर लालू प्रसाद का साथ छोड़ कर भाजपा के साथ जाते है तो उनके (जेडीयू) पास 45, बीजेपी के 78, हम पार्टी के 4 और एक निर्दलीय होगा। यानी 127 विधायक होंगे। दूसरी तरफ आरजेडी के पास चुनौती है कि वह कैसे 122 के आंकड़े पर पहुंचती है।
सबकी निगाहें जीतन राम मांझी की तरफ हैं। उनकी हम पार्टी के पास चार विधायक हैं। हालांकि मांझी के बेटे संतोष सुमन ने कहा कि वह मोदी के साथ हैं।
आरजेडी ऐसे संख्या बल जुटा सकती है, लेकिन चुनौती
आरजेडी के 79, कांग्रेस के 19, लेफ्ट के 16, एक निर्दलीय, AIMIM का एक और हम पार्टी के 4 विधायक एक साथ हुए तो आरजेडी सरकार बनाने के लिए 120 विधायकों की संख्या जुटा सकती है।
अब यह चुनौती है कि आरजेडी अपनी सरकार कैसे बना सकती है! क्या आरजेडी के लिए सभी रास्ते बंद हो गए हैं। नीतीश कुमार के पास कौन-कौन से रास्ते हैं! राजनीति को संभावनाओं का खेल माना जाता है।
चर्चा इस बात की है कि जब तक भाजपा के बड़े नेता क्लियरेंस नहीं देते, नीतीश बीजेपी में जाने की बात कॉन्फिडेंस के साथ नहीं कहेंगे। नीतीश को किसी न किसी अलायंस का साथ चाहिए। वे चाहें तो कांग्रेस, आरजेडी और लेफ्ट वाले गठबंधन के साथ ही रहें या फिर बीजेपी, हम वाले गठबंधन में।
जेडीयू की ताकत ऐसी नहीं है कि वह अकेले चुनाव में जाने की हिम्मत दिखाए। नीतीश कुमार के सामने एक बड़ा ऑप्शन यह हो सकता है कि वह जैसे भी हो, गठबंधन के साथ बने रहें।
सवाल उठता है कि फिर इतना सब क्यों हो रहा है? इसका जवाब यह हो सकता है कि नीतीश कुमार बारगेनिंग बढ़ाना चाहते हैं। जानें, आगे का रास्ता और क्या हो सकता है-
नीतीश अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं- संतोष कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार कहते हैं कि बिहार की राजनीति के लिए आने वाले 48 घंटे काफी कठिन हैं। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद अपनी-अपनी तरह से शतरंज की बिसात बिछा रहे हैं। दोनों काफी सोच समझकर मोहरे चल रहे हैं।
नीतीश कुमार के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि वे बिना कुर्सी के नहीं रह सकते हैं। जब तक दूसरी कुर्सी नहीं मिलेगी, वे पहली कुर्सी नहीं छोड़ते। बातचीत फाइनल होने के बाद ही नीतीश कोई निर्णय लेते हैं। लेकिन इस बार नीतीश बिहार के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंस गए हैं, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी आरजेडी कोटे के हैं।
सदन में जेडीयू और भाजपा के कुछ विधायक अगर क्रॉस वोटिंग करते हैं तो साल 2000 की तरह नीतीश कुमार की सत्ता हाथ से निकल सकती है। इसलिए नीतीश कुमार और बीजेपी कई पहलुओं पर मंथन कर रही है। इसमें एक पहलू है कि नीतीश और बीजेपी कांग्रेस और लेफ्ट के विधायकों को तोड़कर, इस्तीफा दिलाकर या मंत्री बनाकर अपने पाले में करके मुख्यमंत्री की कुर्सी बरकरार रख सकते हैं।
अगर नीतीश कुमार इन विधायकों को तोड़ने में कामयाब नहीं होते तो वे विधानसभा भंग करके लोकसभा के साथ विधानसभा का चुनाव करा सकते हैं। ऐसी स्थिति में वे लोकसभा चुनाव तक कार्यकारी मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं। अप्रैल में होने वाले राज्यसभा चुनाव में नीतीश के पास राज्यसभा जाने का रास्ता भी है।
लालू प्रसाद चक्रव्यूह रच रहे
संतोष कुमार कहते हैं कि दूसरी तरफ लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव इस बार नीतीश कुमार को घेरने का चक्रव्यूह रच रहे हैं। इस चक्रव्यूह में वे जीतन राम मांझी, ललन सिंह, विजेन्द्र यादव, ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू सहित बीजेपी और जेडीयू के कई विधायकों को अपना मोहरा बना सकते हैं।
इन लोगों को मंत्री, उपमुख्यमंत्री, लोकसभा चुनाव का टिकट, विधान पार्षद या राज्यसभा का प्रलोभन दे सकते हैं। बीजेपी और जेडीयू के कई विधायक लालू प्रसाद के संपर्क में हैं।
अगर नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं तो सदन में वोटिंग के दौरान बीजेपी और जेडीयू के कई विधायक अनुपस्थित रहकर या क्रॉस वोटिंग करके नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल कर सकते हैं। इसलिए नीतीश फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। लालू प्रसाद जेडीयू को तोड़कर विधान सभा में अलग गुट के रूप में मान्यता दे सकते हैं और सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं।
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