2021 के टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के “डिस्कवरी” सेक्शन में ‘पगा: रिवर ऑफ़ ब्लड’ का प्रीमियर हुआ था. दो परिवारों की कहानी थी जो कि एक दूसरे के खून के प्यासे थे. फिल्म, सोनी लिव पर रिलीज़ की गयी और इसका प्रचार प्रसार ऐसे किया गया जैसे अनुराग कश्यप ने इसे प्रोड्यूस किया है इसलिए ये एक मास्टरपीस सिनेमा है. कई बार ऐसा होता है कि कोई सफल फिल्म निर्देशक, पटकथा पढ़ कर या लेखक-निर्देशक के नैरेशन पर किसी फिल्म के साथ जुड़ने के लिए हाँ करता है. अनुराग कश्यप के साथ ऐसा अक्सर होता है कि कई उभरते हुए निर्देशक अपनी फिल्म उनके पास ले जाते हैं और उन्हें प्रस्तुत करने के लिए कहते हैं. इस से दो फायदे होते हैं अनुराग कश्यप के अनुभव का निचोड़ उन्हें मिल जाता है और साथ ही अनुराग कश्यप का नाम उनके लिए कई दरवाज़े खोल देता है. पगा के साथ अनुराग का नाम तो जुड़ा है बतौर प्रोड्यूसर, लेकिन फिल्म में निर्देशक नितिन लूकोस की कोई अपनी छाप नहीं है. फिल्म देख कर निराशा हाथ लगी.
केरल के किसी गाँव में दो परिवारों में आपस में बनती नहीं है. एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. एक परिवार की लड़की और दूसरे परिवार का लड़का आपस में प्रेम कर बैठते हैं और सोचते हैं कि यदि वो शादी कर लें तो शायद दुश्मनी को विराम मिले. इन्हीं दिनों लड़के का चाचा जेल से छूट कर आता है. जेल के दिन उस पर भारी पड़े और वो भी अब विवाद को ख़त्म करना चाहता है. वो जेल में कमाए हर रुपये को भतीजे की शादी के लिए उपहार खरीदने में खर्च कर देता है. भतीजे की प्रेमिका से मिलकर उस से माफ़ी मांगता है क्योंकि उस लड़की के पिता की हत्या के लिए ही वो जेल जाता है. यहाँ तक कि वो रिश्ते की बात करने लड़की के घरवालों से भी मिल लेता है. लड़की के चाचा को जैसे ही खबर मिलती है वो अपने चमचों के साथ लड़के के चाचा का खून कर के लाश नदी में बहा देता है. लड़के की दादी, अपने छोटे पोते को बदला लेने के लिए कहती है. छोटा पोता जा कर उस परिवार के एक बन्दे से लड़ने लगता है और तभी बीच बचाव करने उसका बड़ा भाई आ जाता है. छोटे भाई को मार खाते देख वो भी बेकाबू होकर दुश्मन को मार देता है और लाश नदी में फेंक दी जाती है. शादी स्थगित हो जाती है. बड़े भाई को फरार होना पड़ता है. काफी समय के बाद वो पूजा के दिनों में घर आता है. पूजा के बाद, लड़की का चाचा, छोटे भाई को मार कर नदी में फेंक देता है और बदले में लड़का उस कातिल चाचा को मार देता है. अंत में परिवार के फोटो, हथियार सब बोरे में भर कर नदी में बहा देता है. क्लाइमेक्स में लड़की का भाई, अपने दादा की कुर्सी पर जा बैठ जाता है.
मुख्य किरदार जॉनी के किरदार में बेसिल पॉलोस का अभिनय अच्छा है. ये उनकी दूसरी फिल्म है. एक सीधे, शांत और अहिंसा में भरोसा रखने वाले प्रेमी के किरदार में बेसिल काफी जंचे हैं. उसके किरदार में जैसे जैसे परिवर्तन आते जाते हैं, उनका गेटपअप भी बदलता जाता है. उनकी प्रेमिका के रूप में विनीता कोशी ने कुछ फिल्में की हैं जिनमें से प्रमुख है ऑपरेशन जावा. विनीता के किरदार के पास करने को बहुत कम था. अपने दादाजी से डाँट खाते समय उनके चेहरे के एक्सप्रेशन सटीक लगते हैं. जिन दो किरदारों ने प्रभावित किया वो हैं लड़के के चाचा कोचप्पन के किरदार में होज़े किळक्कन और जॉनी के भाई पाची के किरदार में अरुल जॉन ने. दरअसल हिंदी फिल्म के दर्शकों को रोमियो जूलिएट की खानदानी लड़ाई वाली फिल्में देखने की आदत पड़ चुकी है. हालाँकि पगा में खानदानी दुश्मनी का कारण समझना मुश्किल है , ये बात तो समझना और मुश्किल है कि जॉनी और एना के बीच दोस्ती या प्यार कैसे हो गया. गाँव में क़त्ल करना आसान काम नहीं होता और अगर पता चल जाता है कि कोई कातिल है तो गाँव उसका सामाजिक बहिष्कार कर देता है. फिल्म में बहुत सी जगह कोई डायलॉग नहीं है. बहुत कुछ दर्शकों को समझने के लिए छोड़ दिया है. फिल्म में डर का माहौल पैदा करने की कोशिश की गयी है. अजीब लगती है.
लड़की का दादा अपना एक बेटे को खो चुका है लेकिन उसका छोटा बेटा उसके ही खिलाफ जा कर हत्या करने निकल पड़ता है तब दादा को एहसास होता है कि ये खून के बदले खून की परंपरा एक दिन पूरे वंश को उजाड़ के रख देगी लेकिन तब तक बहुत देरी हो चुकी होती है. वहीँ दूसरी ओर लड़के की दादी भी अपने पोते को भड़का कर बदला लेने के लिए ताने मार रही होती है. जब जॉनी फरारी काट रहा होता है दादी की मौत उन्हीं दिनों में हो जाती है और वो जॉनी को देख भी नहीं पाती. कहानी केरल के गाँव की है, निर्देशक के निजी अनुभवों से उपजी है.. इसमें दोनों ही परिवार क्रिस्चियन दिखाए गए हैं. ईसाई धर्म में शांति की बात होती है लेकिन फिल्म में सिर्फ हिंसा है जो सभी प्रेम और संबंधों पर भारी पड़ जाती है. लेखक निर्देशक नितिन की ये पहली फिल्म है लेकिन इस से पहले वो एक सफल साउंड डिज़ाइनर के तौर पर काम करते आ रहे हैं और इसी वजह से फिल्म की साउंड डिज़ाइन बहुत अच्छी है. बढ़िया स्पीकर पर सुनी जाने वाली. बाकी पक्ष जैसे फैज़ल अहमद का खूंखार बैकग्राउंड म्यूजिक, श्रीकांत कबोथु की सिनेमेटोग्राफी और अरुणिमा शंकर की एडिटिंग, सभी अच्छे हैं.
जिस बात से असहमति है वो है अनुराग कश्यप का फिल्म को प्रोड्यूस करना. इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो उनके द्वारा प्रोड्यूस की जाए. फिल्म को प्रसारित ही ऐसे किया गया है कि निर्देशक के बजाये निर्माता की वजह से फिल्म चर्चा में आये. ये मामला और बात कुछ समझ से परे है. फिल्म न देखें तो कुछ नहीं होगा.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
फैज़ल अहमद/5 |
.
Tags: Anurag Kashyap
FIRST PUBLISHED : July 20, 2022, 15:07 IST
{*Disclaimer:* The following news is sourced directly from our news feed, and we do not exert control over its content. We cannot be held responsible for the accuracy or validity of any information presented in this news article.}
Source by [author_name]