22 मिनट पहलेलेखक: उमेश कुमार उपाध्याय / अरुणिमा शुक्ला
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सिद्धार्थ बड़े-बड़े माइथोलॉजिकल शो के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हैं। वो स्वास्तिक प्रोडक्शन हाउस के मालिक भी हैं। उन्हें महाभारत, सूर्यपुत्र कर्ण, राम सिया के लव कुश और राधा-कृष्णा जैसे शोज के लिए जाना जाता है।
सिद्धार्थ के पिता नहीं चाहते थे कि वे डायरेक्टर बनें। इस बात को लेकर दोनों में लंबे वक्त तक अनबन रही। मुंबई आए तो खाने-रहने की परेशानी हुई। खर्च चलाने के लिए घूम-घूमकर मैगजीन बेचनी पड़ी। शुरुआत में किसी ने भरोसा नहीं जताया कि वो शो डायरेक्ट कर सकते हैं। जब पहला शो बनाया तो उसमें 1.5 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
सिद्धार्थ तिवारी के संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी…
परिवार डायरेक्टर बनने के खिलाफ था
बातचीत की शुरुआत बचपन के दिनों से करते हुए सिद्धार्थ ने कहा, ‘मेरा जन्म कोलकाता में एक लोअर मिडिल क्लास परिवार में हुआ था। पापा सेंट जेवियर कॉलेज में अकाउंट्स के प्रोफेसर थे। 20-22 लोगों का परिवार एक साथ रहता था। घर में सिर्फ पापा कमाने वाले थे। किसी को किसी चीज की कमी ना हो इसलिए वो कॉलेज के बाद घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे।
हम चारों भाइयों की जरूरतों को उन्होंने पूरा किया, लेकिन उतना ही जितनी जरूरत हो। मैं छोटा था, तो हर बार नए कपड़े नहीं मिलते थे। उतरन ही पहनता था।
मेरी पढ़ाई सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी। बचपन से ही मुझे फिल्मों का चस्का लग गया था। पहला ख्वाब ही मैंने डायरेक्टर बनने का देखा था, लेकिन परिवार में फिल्में देखने की छूट नहीं थी। 7वीं से क्लास बंक कर फिल्में देखने जाता था।
उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। मेरे परिवार की भी यही सोच थी। जब मैंने पापा को डायरेक्टर बनने वाली बात बताई, तो उन्होंने साफ मना कर दिया था। उनके इनकार के बाद भी मैं खुद को फिल्मों से दूर नहीं कर पाया। अभी भी सबसे बड़ी दिक्कत थी कि मुंबई कैसे पहुंचा जाए।
तब मैंने पढ़ाई का बहाना बनाकर पुणे के सिम्बायोसिस कॉलेज में मास कम्युनिकेशन में एडमिशन ले लिया। यहां से मास्टर करने के बाद सपनों की नगरी मुंबई आना हुआ।’
दोस्तों से उधार लेकर गुजारा किया
सिद्धार्थ के लिए मुंबई का सफर संघर्ष से भरा रहा। लाइफ के सबसे कठिन फेज में उन्हें परिवार की तरफ से ना तो इमोशनल और ना ही फाइनेंशियल सपोर्ट मिला।
उन्होंने कहा, ‘आम स्ट्रगलर्स की तरह मुझे भी यहां रहने-खाने की दिक्कत हुई। एक छोटे से कमरे में 4-5 लोगों के साथ रहना पड़ता था। कोई एक करवट बदलता तो दूसरे के ऊपर आ जाता। तंगी ऐसी थी कि कभी-कभी खाने के लिए दोस्तों से पैसे उधार लेने पड़ते थे।’
मैगजीन बेचने का भी काम किया
मुंबई जैसी जगह में काम मिलना आसान नहीं होता है। इस पर सिद्धार्थ ने कहा, ‘कॉलेज में पढ़ाई के दौरान एक ऐड एजेंसी में काम मिला गया था, लेकिन जब मैं वहां पहुंचा तो उन्होंने ऑफिशियल लेटर देने से मना कर दिया। बस वो सैलरी देने के लिए तैयार थे। ऐसे हालात में मैंने काम करने से मना कर दिया।
इस कारण मुंबई आने पर मेरे पास नौकरी नहीं थी। 5 महीने बेरोजगार रहना पड़ा। जगह-जगह काम मांगने जाता, लेकिन वापसी में सिर्फ ना लेकर ही लौटता। लंबे संघर्ष के बाद बिजनेस टुडे मैगजीन में सेल का काम मिला। यहां मेरा काम मैगजीन बेचने का था। 20 दिन बाद ही मैंने ये नौकरी छोड़ दी क्योंकि मुझे तो सिर्फ और सिर्फ डायरेक्टर बनना था।
यहां नौकरी छोड़ने के बाद मैंने एक ऐड एजेंसी में काम किया, जो सोनी मैक्स के लिए काम करती थी। यहां मैंने सीखा कि कहानी लिखते कैसे हैं। यहां एक साल नौकरी करने के बाद मैंने विज्ञापन कंपनी जे. वाल्टर थॉम्पसन में काम किया। यह नौकरी भी 3 महीने में छोड़ दी।’
पापा से पैसे मांगे, उन्होंने नहीं दिए
‘ऐड एजेंसी से इसलिए जुड़ा था क्योंकि उम्मीद थी कि इसके सहारे इंडस्ट्री तक पहुंच जाऊंगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। फिर कई बड़े प्रोडक्शन हाउस में असिस्टेंट डायरेक्टर की नौकरी मांगने गया, लेकिन किसी ने काम नहीं दिया। सबका कहना था कि पहले काम करके दिखाओ, तब ही फीस मिलेगी।
इसी दौरान मैं वापस कोलकाता गया और पापा से डेढ़ लाख रुपए की मांग की। उनसे कहा- पापा इतने पैसे दे दीजिए, इसके सहारे मुंबई में रह लूंगा और काम करके सबको दिखा दूंगा, मगर पापा ने साफ मना कर दिया। उनका मानना था कि यह फील्ड बिल्कुल सही नहीं है और इसमें काम करना बेकार है। एक पिता के तौर पर उनकी चिंता जायज थी, लेकिन मैं अपने ख्वाब को मार नहीं सकता था।
उनके इस इनकार के बाद भी मैं रुका नहीं और वापस मुंबई आ गया। थोड़े समय बाद मुझे सोनी मैक्स के मार्केटिंग में काम मिल गया। यहां काम करने के साथ मैं कहानियां भी लिखा करता था।
8 घंटे की नौकरी के साथ कहानी लिखना बहुत मुश्किल था। इसके बावजूद मैंने यह काम किया। अगर उस वक्त थककर रुक जाता, तो शायद आज कहीं पीछे छूट जाता।’
लोगों ने सहारा नहीं दिया तो खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला
2007 में सिद्धार्थ ने स्वास्तिक प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत की। इस काम के बारे में उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी प्रोडक्शन हाउस खोलने के बारे में सोचा नहीं था। मैं बस बतौर राइटर-डायरेक्टर काम करना चाहता था, मगर जिन लोगों ने मुझ पर पहले भरोसा जताया था, उन्हीं लोगों ने अपने कदम पीछे खींच लिए। लोगों के इनकार ने भी मुझे तोड़ना चाहा, मगर मैं टूटा नहीं। यही वो वजह रही कि मैंने प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत की।’
पहले शो में 1.5 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ
‘प्रोडक्शन हाउस खोलने के बाद मैंने सोनी टीवी के ऑफिस के बहुत चक्कर लगाए। एक कहानी पर पूरे शो की तैयार कर ली। एक्टर्स भी लॉक कर दिया, मगर किसी को पता नहीं था कि शो बनेगा या नहीं। फिर सोनी टीवी के CEO ने पायलट बनाने को कहा। मैंने वह भी बनाया, जिसे देखने के बाद वो शो के लिए तैयार हो गए, लेकिन अभी सवाल यह था कि इसके लिए फंडिंग कौन करेगा।
फिर मार्केट में निकला। किसी को भरोसा नहीं था कि मैं यह शो बनाऊंगा। तब के सेरा सेरा कंपनी के मालिक पराग सान्वी मसीहा बन कर आए और उन्होंने 2.5 करोड़ रुपए की फंडिंग की। फिर हमने शो बनाया, लेकिन बहुत नुकसान हुआ। करीब 1.5 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
इस नुकसान के बाद मैंने प्रोडक्शन करना सीखा। फिर माता की चौकी जैसे 2-3 शोज की सफलता के बाद उस नुकसान हुए पैसों को चुका पाया।’
महाभारत शो बनने में लगे थे 5 साल
2013-2014 तक स्टार प्लस पर महाभारत शो स्ट्रीम हुआ था। इस शो को अपार सफलता मिली थी। इस शो के बारे में उनका कहना है, ‘इस शो को ऑन एयर होने में 5 साल लगे थे। एक वक्त ऐसा भी आया था कि छह-छह महीने मैं लोगों को फीस नहीं दे पाया था। बहुत ज्यादा ही फाइनेंशियल लॉस हुआ था।
शो की मेकिंग के दौरान ऐसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, जिसे कोई सोच भी नहीं सकता। लोगों को लगता था कि कोई न्यूकमर महाभारत की कहानी को पर्दे पर उकेर नहीं सकता है, मगर मुझे विश्वास था कि मुझसे बेहतर यह काम कोई और नहीं कर सकता है। बाद में मैंने यह करके दिखाया भी।’
जब काम देख खुश हुए थे पिता
अपने और पापा के रिलेशन पर सिद्धार्थ ने कहा, ‘इस फील्ड में आने पर पापा तो नाराज थे। प्रोडक्शन हाउस वाली बात भी उनसे छुपा कर रखी थी। वो पहली बार शो माता की चौकी के सेट पर आए थे। सारी चीजें देख वो बहुत खुश हुए थे और कहा था- तो ये काम कर रहे हो तुम। वैसे अच्छा कर रहे हो।
इसके बाद पापा ने मेरी पीठ थपथपाई। ये पल वाकई मेरे लिए बहुत इमोशनल था।’
16 साल की उम्र में मां को खोया
सिद्धार्थ ने पर्सनल लाइफ के सबसे खराब फेज के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया, ‘जब 16 साल का था, तभी मां का निधन हो गया था। उस पल मैं पूरी तरह से टूट गया था। उस वक्त जो फीलिंग थी कि मां अब कभी दोबारा मेरे पास नहीं आएंगीं, वो मुझे काटे जा रही थी।’
बिना रिसर्च के शो की कहानी नहीं बुनी जाती
माइथोलॉजिकल शो को बनाने में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। सिद्धार्थ तिवारी का कहना है, ‘हम स्टोरी बिना कोई बेस नहीं बनाते हैं। किसी स्टोरी पर कहानी बुनने से पहले रिसर्चर की टीम पूरा रिसर्च करती है। हर ग्रंथ के अलग-अलग वर्जन होते हैं, हम कहानी में सबसे पॉपुलर वर्जन को शामिल करते हैं। यही कारण है कि कभी भी हमारे शो के फैक्ट्स पर बवाल नहीं हुआ।
मेरी दिली इच्छा है कि हमारे देश की फेमस कहानियों को पूरी दुनिया देखे। मैं इस पर काम भी कर रहा हूं। इसे फिल्मनुमा बनाऊंगा। मुझे विश्वास है कि इसे पूरी दुनिया देखेगी।’
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