Odysseus spacecraft Moon Landing | US Odysseus spacecraft Moon Landing news updates news updates | आज मून लैंडिंग कर सकता है अमेरिकी स्पेसक्राफ्ट: प्राईवेट कंपनी इंट्यूटिव मशीन्स ने बनाया है ओडियोसिस; एक बार टल चुकी है लैंडिंग


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वॉशिंगटन18 मिनट पहले

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ओडियोसिस साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करेगा। ये एक खाई के करीब समतल यानी प्लेन जगह है। इसे मेलापर्ट कहा गया है। - Dainik Bhaskar

ओडियोसिस साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करेगा। ये एक खाई के करीब समतल यानी प्लेन जगह है। इसे मेलापर्ट कहा गया है।

अमेरिका की प्राईवेट कंपनी इंट्यूटिव मशीन्स का रोबिटिक स्पेसक्राफ्ट लैंडर ओडियोसिस आज मून लैंडिंग कर सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने गुरुवार रात बताया कि यह लैंडिंग साइट से 57 मील दूर है। अगर सब ठीक रहा तो मून लैंडिंग करने वाला यह किसी प्राईवेट कंपनी का पहला स्पेसक्राफ्ट होगा।

चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला अमेरिका का पहला मिशन अपोलो 17 था। इसकी लैंडिंग 1972 में हुई थी। ओडियोसिस की लैंडिंग वैसे तो 14 फरवरी को होनी थी, लेकिन तकनीकी वजहों से इसे टालना पड़ा था।

ओडियोसिस की लैंडिंग भारतीय समय के हिसाब से सुबह करीब 4 बजकर 20 मिनिट पर होगी। हालांकि, इंट्यूटिव कंपनी हालात को देखते हुए यह समय आगे या पीछे कर सकती है।

ओडियोसिस की लैंडिंग भारतीय समय के हिसाब से सुबह करीब 4 बजकर 20 मिनिट पर होगी। हालांकि, इंट्यूटिव कंपनी हालात को देखते हुए यह समय आगे या पीछे कर सकती है।

इस मिशन से जुड़ी खास बातें

  • ओडियोसिस की लैंडिंग भारतीय समय के हिसाब से सुबह करीब 4 बजकर 20 मिनिट पर होगी। हालांकि, इंट्यूटिव कंपनी हालात को देखते हुए यह समय आगे या पीछे कर सकती है। लैंडिंग के पहले यह करीब 19 मिनिट हूवर (लैंडिंग वाली जगह के ऊपर घूमना) करेगा। वैसे तो यह प्राईवेट मिशन है, लेकिन इसके पीछे अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का दिमाग है। मिशन में काम आने वाले 6 इंस्ट्रूमेंट्स नासा ने ही तैयार किए हैं। ओडियोसिस साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करेगा। ये एक खाई के करीब समतल यानी प्लेन जगह है। इसे मेलापर्ट कहा गया है। मेलापर्ट 17वीं सदी के बेल्जियन एस्ट्रोनॉमर थे। हालांकि, तकनीकि तौर पर लैंडिंग स्पॉट को लेकर एक पेंच है। इसकी वजह यह है कि यह जगह मून साउथ पोल की सबसे अहम जगह से 185 मील दूर है।
  • दरअसल, अमेरिकी कंपनी साउथ पोल पर लैंडिंग का नाम जरूर बता रही है, लेकिन हकीकत में मून साउथ पोल से यह जगह काफी दूर है। माना जा रहा है कि यहां पानी मौजूद है, लेकिन वो बर्फ के रूप में है।
स्पेसक्राफ्ट के इंजिन स्टार्ट रहेंगे। इसी दौरान यह अपना सर्कल यानी ऑर्बिट पूरा करेगा। इसके बाद सतह के सबसे करीब पहुंचेगा। यह दूरी करीब 6 मील होगी।

स्पेसक्राफ्ट के इंजिन स्टार्ट रहेंगे। इसी दौरान यह अपना सर्कल यानी ऑर्बिट पूरा करेगा। इसके बाद सतह के सबसे करीब पहुंचेगा। यह दूरी करीब 6 मील होगी।

लैंडिंग का तरीका

  • स्पेसक्राफ्ट के इंजिन स्टार्ट रहेंगे। इसी दौरान यह अपना सर्कल यानी ऑर्बिट पूरा करेगा। इसके बाद सतह के सबसे करीब पहुंचेगा। यह दूरी करीब 6 मील होगी। इसके बाद का पूरा लैंडिंग प्रोसेस रोबिटिक मिशन मोड पर होगा। इसके बाद स्पेसक्राफ्ट धीरे-धीरे सतह की तरफ बढ़ेगा और इसकी स्पीड बिल्कुल कम हो जाएगी।
  • लैंडिंग वाली जगह का चुनाव पहले ही कर लिया गया है। स्पेसक्राफ्ट में लगे कैमरे एग्जेक्ट लोकेशन बताएंगे। इन्हें पहले से फीड डेटा से क्रॉस चेक या मैच किया जाएगा। इसके बाद लेजर बीम सरफेस पर डाली जाएंगी। इसके सेंसर्स लैंडिंग स्पॉट पर मौजूद किसी दिक्कत के बारे में बता सकते हैं।
  • आखिरी 50 फीट पूरी तरह सेल्फ मोड में होंगे। यानी स्पेसक्राफ्ट खुद लैंडिंग स्पॉट तय करेगा।
  • इस स्पेसक्राफ्ट में सोलर पैनल लगे हैं। लैंडिंग के बाद सात दिन तक यह वहीं से चार्ज होगा। इसके बाद दो हफ्ते की रात रहेगी।

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