Do not give money to children unnecessarily, let them manage the expenses themselves, then they will understand the importance; money not earned through hard work can make them corrupt | बेशकीमती सलाह…: बच्चों को बेवजह पैसे न दें, खर्च उन्हें खुद मैनेज करने दें तो महत्व समझेंगे; मेहनत से न कमाया गया पैसा भ्रष्ट बना सकता है


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न्यूयॉर्क1 मिनट पहले

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बेटी इला व ​​​​​​​सोफिया, पत्नी गौया के साथ पयाम। - Dainik Bhaskar

बेटी इला व ​​​​​​​सोफिया, पत्नी गौया के साथ पयाम।

‘मैं करोड़पति हूं, लेकिन अपने बच्चों को पूरी संपत्ति नहीं देना चाहता। मेरी इच्छा है कि दोनों बेटियों के पास इतना ही पैसा हो कि वे घर चला सकें, शिक्षा ले सकें और बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकें। मेरा मानना ​​है कि पैसा खुद न कमाया जाए तो यह भ्रष्ट कर सकता है…’ यह कहना है अमेरिका के वन प्लेनेट ग्रुप के फाउंडर पयाम जमानी का।

1988 में ईरान से महज 5 हजार रु. लेकर अमेरिका पहुंचे जमानी का कारोबार 10 देशों में है। इनके पांच उद्यम हैं। रेवेन्यू 400 करोड़ रु. है। जमानी ने किताब ‘क्रॉसिंग द डेजर्ट’ में बताया है कि जीवन की कठिन यात्राओं से ही इंसान निखरता है, पढ़िए ​उनकी खास लर्निंग्स…

छोटे-छोटे संघर्ष बच्चों को बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करेंगे, खुद कमाएंगे तभी वे दुनिया को समझ पाएंगे

नौतियां ही इंसान को सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं
इंसान परीक्षा और मुश्किलों से गुजरने के बाद सर्वश्रेष्ठ बनता है। सोने की तरह, हम आग में तपने से शुद्ध होते हैं। अपार धन-संपत्ति होने से बेटियों को कभी मुश्किलें नहीं हुईं। मैं चाहता हूं उनके पैसे खत्म हो जाएं और वे खर्च को लेकर अलर्ट रहें। ये छोटी-छोटी परीक्षाएं बड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करेंगी।

सिर्फ जरूरी खर्चों के लिए ही मदद करें
मैंने हमेशा बेटियों को जरूरत के हिसाब से पैसे दिए हैं। यह इस बारे में नहीं है कि मैं क्या खर्च कर सकता हूं, बल्कि यह सोचकर कि उनके लिए अच्छा क्या है। उद्देश्य यह है कि यह राशि उनके सिर्फ जरूरी खर्चों जैसे हॉस्टल, कॉलेज के लिए किताबें और उनके जरूरत का सामान खरीदने में मदद करे। मैं उनके फैशन या दोस्तों के साथ डिनर के लिए खर्च नहीं देना चाहता। पत्नी गौया और मैंने तय किया है कि बेटियों को कभी भी बेवजह पैसे नहीं देंगे। इससे वे पैसों की अहमियत कभी नहीं समझ पाएंगी।

लेक्चर के बजाय उन्हें अनुभवों से सीखने दें
बच्चों को मनी मैनेजमेंट सिखाना हो तो उन्हें खर्च खुद मैनेज करने दें। यह दृष्टिकोण व्यावहारिक है। जिम्मेदारी उन पर होगी तो वे तय कर सकेंगे कि कितना खर्च करना या बचाना है। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कैसे करना है। पिता के लेक्चर के बजाय वे अपने अनुभवों से बेहतर सीख सकेंगी।

दुनिया की बेहतरी पर खर्च हो, तभी पैसा अहम
मेरी इच्छा है कि दोनों बेटियां काम करें। अपनी संपत्ति खुद अर्जित करें। मैंने भी ऐसे ही संपत्ति बनाई है। इस प्रक्रिया में वे खुद को और दुनिया को समझ पाएंगी। पैसों का महत्व तभी है, जब आप इसे मेहनत से कमाएं और फिर इसे दुनिया की बेहतरी पर खर्च करें।

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