मई 2020। समुद्र किनारे बसा रूस का पेवेक शहर। पहली बार समुद्र में तैरने वाला न्यूक्लियर प्लांट तैनात किया गया। इसके जरिए पूरे शहर को बिजली सप्लाई की जाने लगी। इसके बाद यहां कोयले से बिजली पैदा करने वाले प्लांट को बंद कर दिया गया।
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रूस की तरह अब भारत भी समुद्र में तैरने वाला स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर न्यूक्लियर प्लांट बनाएगा। 23 जुलाई को पेश बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसका ऐलान किया है।
भास्कर एक्सप्लेनर में इस तैरते न्यूक्लियर प्लांट की पूरी कहानी जानेंगे, ये कैसे बिना कोयला और पानी के बिजली बनाएगा…
सवाल 1: स्मॉल रिएक्टर या समुद्र में तैरने वाले न्यूक्लियर प्लांट बनाने को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्या कहा है?
जवाब: बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, विकसित भारत में न्यूक्लियर एनर्जी अहम रोल निभाएगा, इसको लेकर सरकार तीन अहम फैसले ले रही है…
1. प्राइवेट कंपनियों के साथ मिलकर भारत स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर बनाने को लेकर काम करेगा। भारत को रूस जैसे देश स्मॉल मॉड्यूलर न्यूक्लियर रिएक्टर के लिए टेक्नोलॉजी शेयर कर रहे हैं।
2. सरकार न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी।
3. परमाणु ऊर्जा के जरिए ज्यादा से ज्यादा बिजली तैयार करने के लक्ष्य पर सरकार काम करेगी।
सवाल 2: स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट क्या है?
जवाब: दुनियाभर में न्यूक्लियर पावर प्लांट आमतौर पर तीन तरह के होते हैं…
- माइक्रो रिएक्टर
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर
- सामान्य न्यूक्लियर रिएक्टर
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर न्यूक्लियर प्लांट को सामान्य भाषा में फ्लोटिंग न्यूक्लियर पावर प्लांट भी कहा जाता है क्योंकि इसे आसानी से एक से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। इसमें लगने वाला मॉड्यूलर आमतौर पर बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट के मॉड्यूलर से काफी छोटे होता है। रूस के एग्जाम्पल से समझिए…
सवाल 3: दुनिया के कितने देश ऐसा न्यूक्लियर प्लांट बना सके हैं?
जवाब: दुनिया में सिर्फ दो देश ऐसे हैं, जहां इस तरह के न्यूक्लियर पावर प्लांट ऑपरेशनल हैं। पहला- रूस का लोमोनोसोव। दूसरा- चीन का HTR-PM न्यूक्लियर प्लांट। रूस का प्लांट 300 MW तो चीन का 210 MW तक बिजली रोजाना पैदा करता है।
इसके अलावा अर्जेंटीना, साउथ कोरिया और अमेरिका ऐसे देश हैं, जहां इस टेक्नोलॉजी पर काम चल रहा है। अमेरिका के एनर्जी डिपार्टमेंट के परमाणु नियामक आयोग विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इसकी लाइसेंसिंग प्रोसेस पर काम हो रहा है। इस बात की पूरी संभावना है कि 2035 तक अमेरिका इस रिएक्टर को तैयार कर लेगा।
सवाल 4: भारत में बनने वाला स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर पावर प्लांट क्यों खास होगा?
जवाब: भारत में जिस स्मॉल न्यूक्लियर रिएक्टर को बनाने का ऐलान किया गया है, उसे बनाने की लागत बडे़ न्यूक्लियर रिएक्टर से करीब 8 गुना कम है। इसके साथ ही ये न्यूक्लियर पावर प्लांट 24 घंटे लगातार काम कर सकता है।
इसे समुद्र के किनारे पहाड़ी इलाकों में भी तैनात कर सकते हैं। भारत के सबसे दक्षिणी हिस्से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के द्वीपों में आज भी जनरेटर से बिजली सप्लाई होती है।
अंडमान में भारतीय सेना की इकलौती त्रिस्तरीय कमांड है। उसे भी बिजली के लिए जनरेटरों का सहारा लेना पड़ता है। इन जगहों पर बिजली के लिए इस तरह के पावर प्लांट काफी मददगार साबित होंगे।
रूस जिस स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर का इस्तेमाल कर रहा है, उसमें छोटे-छोटे कई सारे माइक्रो रिएक्टर लगे होते हैं। भारत में बनाए जाने वाले स्मॉल रिएक्टर में भी कई सारे माइक्रो रिएक्टर का इस्तेमाल किया जाएगा।
सवाल 5: स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर पावर प्लांट में बिजली कैसे पैदा होगी?
जवाब: अब तक भारत में बिजली पैदा करने के चार सबसे प्रमुख साधन हैं…
1. कोयला 2. पानी के बडे़-बड़े डैम 3. सौर ऊर्जा 4. पवन ऊर्जा
इन सभी माध्यमों से बिजली पैदा करने की लागत काफी ज्यादा है। इस तरह से पैदा होने वाली बिजली से हमारे पर्यावरण में कार्बन भी ज्यादा निकलता है।
स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट की खासियत ये है कि यूरेनियम का इस्तेमाल कर इसमें केमिकल प्रोसेस से बिजली पैदा की जाती है। इस तरह से बिजली पैदा करने में लागत कम और प्रोडक्शन ज्यादा है।
यूरेनियम इतना ताकतवर होता है कि अगर पानी के किसी पाइप से गुजरे तो पाइप का पानी खौलने लगता है। पानी खौलने से जल वाष्प बनता है और इस जल वाष्प का इस्तेमाल ही बिजली पावर प्लांट के टर्बाइन को घुमाने के लिए किया जाता है। इस तरह बिजली तैयार होती है। ऐसे प्लांट को 30 साल में एक बार रिफ्यूलिंग की जरूरत पड़ती है।
सवाल 6: स्मॉल न्यूक्लियर पावर प्लांट से भारत सरकार को क्या फायदे हैं?
जवाब: भारत 6 वजहों से बड़े न्यूक्लियर पावर प्लांट की तुलना में छोटे-छोटे न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाना चाहता है…
- दुनिया भर के देश भारत पर जीरो कार्बन इमिशन और कम कोयला इस्तेमाल करने के लिए दबाव बना रहे हैं। बिजली पैदा करने के लिए चीन के बाद भारत में सबसे ज्यादा कोयला इस्तेमाल होता है।
- भारत इसी वजह से इस तरह के छोटे-छोटे परमाणु रिएक्टर के जरिए बिजली पैदा करना चाहता है। कोयले वाले रिएक्टर की तुलना में ये 7 गुना कम कार्बन पैदा करता है।
- SMR को डिजाइन करना और बनाना आसान है। इसे किसी भी बिजली प्लांट के ग्रिड से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए अलग से बिजली ग्रिड बनाने की जरूरत नहीं है।
- भारत में न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस तरह के प्लांट को किसी जहाज या बड़ी गाड़ी पर भी लगाया जा सकता है। इस तरह स्मॉल न्यूक्लियर प्लांट को कम से कम समय में लगाना संभव होगा।
- रूस ने इस तरह के प्लांट के लिए भारत को एडवांस टेक्नोलॉजी देने का ऐलान किया है।
- 2050 तक भारत में बिजली की मांग 80%-150% तक बढ़ने का अनुमान है, SMR एक ऐसा प्लांट है जिसके जरिए हर शहर या फिर कोई कंपनी अपने लिए खुद से बिजली पैदा कर सकती है।
सवाल 7: दुनिया में बड़े न्यूक्लियर रिएक्टर होने के बावजूद स्मॉल रिएक्टर वाले पावर प्लांट की जरूरत क्यों हुई?
जवाब: आमतौर पर बड़े रिएक्टर वाले पावर प्लांट से ज्यादा रेडियोएक्टिव पदार्थ यूरेनियम निकलने की संभावना होती है। इसे कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जबकि स्मॉल रिएक्टर के टेक्निकल खामियों को आसानी से दूर किया जाना संभव है। इसे आसानी से कंट्रोल भी किया जा सकता है। बड़े रिएक्टर वाले पावर प्लांट बेहद खतरनाक हो सकते हैं। इसे चेर्नोबिल की कहानी से समझ सकते हैं…
26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में टेस्टिंग होनी थी। हादसे से पहले चेर्नोबिल पावर स्टेशन में चार न्यूक्लियर रिएक्टर थे। जब हादसा हुआ तब दो रिएक्टर्स पर काम चल रहा था। 26 अप्रैल की रात टेस्ट शुरू हुआ और रात करीब 1ः30 बजे टरबाइन को कंट्रोल करने वाले वाल्व को हटाया गया।
रिएक्टर को आपात स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम और रिएक्टर के अंदर होने वाले न्यूक्लियर फ्यूजन को भी रोक दिया गया। अचानक रिएक्टर के अंदर न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रक्रिया कंट्रोल से बाहर हो गई। रिएक्टर के सभी आठ कूलिंग पम्प कम पावर पर चलने लगे, जिससे रिएक्टर गर्म होने लगा और इससे न्यूक्लियर रिएक्शन और तेज हो गया। सोवियत संघ के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुआ हादसा दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसों में से है।
सोवियत संघ के चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में हुआ हादसा दुनिया के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट्स में से एक है। ये उस दर्दनाक हादसे के बाद की तस्वीर है।
धमाके के बाद न्यूक्लियर प्लांट में अफरा-तफरी मच गई और रिएक्टर को बंद करने की कोशिशों के बीच ही उसमें जोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना जोरदार था कि रिएक्टर की छत उड़ गई। उस हादसे में वहां कार्यरत 40 लोगों की मौत हो गई। इस धमाके से निकला रेडियोएक्टिव रेडिएशन हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम से भी 400 गुना ज्यादा था।
अगले कई दिनों तक चेर्नोबिल पावर प्लांट से रेडिएशन निकलता रहा, जो हवा के साथ उत्तरी और पूर्वी यूरोप में फैल गया। रेडिएशन फैलने से रूस, यूक्रेन, बेलारूस के 50 लाख लोग इसकी चपेट में आ गए। रेडिएशन फैलने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से 4 हजार लोगों की मौत हो गई। इस हादसे से 2.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। 2000 में चेर्नोबिल में काम कर रहे आखिरी रिएक्टर को भी बंद कर दिया गया।
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