bangladesh quota system, bangladesh protests, Sheikh Hasina, Dhaka University, bangladesh razakar | हसीना ने आरक्षण विरोधियों को क्यों कहा रजाकार: इन्होंने 1971 की जंग में बांग्लादेशियों का कत्लेआम किया; जनरल टिक्का खान की बनाई फौज की कहानी


  • Hindi News
  • International
  • Bangladesh Quota System, Bangladesh Protests, Sheikh Hasina, Dhaka University, Bangladesh Razakar

5 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे छात्रों का प्रदर्शन तब और हिंसक हो गया, जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रदर्शनकारी छात्रों को ‘रजाकार’ कह दिया। - Dainik Bhaskar

बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे छात्रों का प्रदर्शन तब और हिंसक हो गया, जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रदर्शनकारी छात्रों को ‘रजाकार’ कह दिया।

“अगर स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-पोते को आरक्षण नहीं मिलेगा तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को आरक्षण मिलेगा?”

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 14 जुलाई को दिए एक इंटरव्यू में ये बात कही। इसके बाद ढाका में चल रहा आरक्षण विरोधी प्रदर्शन हिंसक हो उठा। प्रदर्शनकारी छात्रों ने उस सरकारी टीवी चैनल में आग लगा दी, जिसे हसीना ने इंटरव्यू दिया था।

ढाका यूनिवर्सिटी में ‘तूई के, आमी के रजाकार, रजाकार’ के नारे गूंजने लगे। एक हफ्ते से जारी प्रदर्शनों में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ढाका यूनिवर्सिटी को खाली करवाकर अगले आदेश तक बंद कर दिया गया है।

आखिर ये रजाकार हैं कौन जिनके जिक्र से बांग्लादेश सुलग उठा है। हसीना ने इनका जिक्र क्यों किया और 1971 की जंग से इनका क्या ताल्लुक है, बांग्लादेश की हिंसा से जुड़े 5 सवालों के जवाब…

1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद कई रजाकारों को गिरफ्तार कर लिया गया।

1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद कई रजाकारों को गिरफ्तार कर लिया गया।

रजाकार हैं कौन?
1971 का साल था। बांग्लादेश के लिए हुई जंग में पाकिस्तान को सरेंडर करे 2 दिन गुजर चुके थे। 18 दिसंबर की सुबह ढाका के बाहरी इलाके में एक के बाद एक 125 लाशें मिलतीं हैं। सभी के हाथ पीछे बंधे थे।

इनकी पहचान कर पाना भी मुश्किल हो रहा था। उनमें से कुछ को गोली मारी गई थी, कुछ का गला घोंटा गया था तो कुछ को राइफल में लगे चाकू से गोद दिया गया था। ये सभी 125 लोग बांग्लादेश की जानी-मानी हस्तियां थीं।

ये उन 300 लोगों में थे जिन्हें ‘रजाकारों’ ने बंधक बना लिया था, ताकि उनकी जान के बदले वे बांग्लादेश में लगातार आगे बढ़ रही भारतीय सेना से अपनी बात मनवा सकें। हालांकि जैसे ही उन्हें पाकिस्तान के घुटने टेक देने की भनक लगी, रजाकारों ने सभी बंधकों को मार डाला।

ढाका के बाहर एक फैक्ट्री और मस्जिद को रजाकारों ने ठिकाना बनाया था। यहां से वे उन लोगों पर भी गोलियां बरसा रहे थे जो अपने रिश्तेदारों की लाशें पहचानने के लिए वहां पहुंच रहे थे।

भारतीय सैनिकों को जैसे ही इसकी जानकारी मिली, वे तुरंत वहां पहुंचे और फैक्ट्री को रजाकारों से छुड़ाया। फैक्ट्री के पास और भी बंगालियों की लाशें मिलीं, जिन्हें गड्ढों में फेंका गया था। भारतीय सेना की कार्रवाई में जिंदा बचे 2 रजाकारों ने सरेंडर किया। इन्होंने 300 लोगों की जान लेने की बात कबूल की।

1971 की जंग के दौरान बांग्लादेश में ‘रजाकार’ होना कोई आम बात नहीं रह गई थी।​​​​​​ रजाकार अरबी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है- स्वयंसेवक या साथ देने वाला। हालांकि बांग्लादेश में इसे बहुत अपमानजनक माना जाने लगा। रजाकार का मतलब गद्दार हो गया, जिन्होंने पाकिस्तानी जनरल टिक्का खान के इशारों पर 1971 की लड़ाई में अपनों का ही खून बहाया।

तस्वीर में जनरल मानेकशॉ के साथ टिक्का खान। 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदला-बदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ पाकिस्तान गए थे। उस समय जनरल टिक्का पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे। तस्वीर- (Twitter/Maverickmusafir)

तस्वीर में जनरल मानेकशॉ के साथ टिक्का खान। 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदला-बदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ पाकिस्तान गए थे। उस समय जनरल टिक्का पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे। तस्वीर- (Twitter/Maverickmusafir)

रावलपिंडी का हीरो कैसे बना बांग्लादेश का कसाई…
मार्च 1971 में पाकिस्तान के जनरल टिक्का खान को बांग्लादेश (तब तक ईस्ट पाकिस्तान) का जिम्मा सौंपा गया था। 8 महीने बाद जब दिसंबर में जंग रुकी तब तक 30 लाख बांग्लादेशी मारे जा चुके थे। 4 लाख महिलाओं से रेप हुआ था। 244 दिनों तक कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा जब बांग्लादेश से सामूहिक हत्याओं और रेप की खबरें न आई हों।

हालांकि टिक्का की नियुक्ति पर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनके खूब कसीदे पढ़े थे। अप्रैल 1971 में टिक्का पर लिखा गया, ‘पश्चिमी पाकिस्तान, जहां सदियों से सैनिकों की कदमताल गूंजती रही है, यहीं से होकर अलेक्जेंडर द ग्रेट ने दिल्ली की ओर कूच किया।

यहीं ब्रिटेन के अफसरों ने क्वीन विक्टोरिया के साम्राज्य के लिए सिपाहियों की पुश्तें तैयार कीं। उसी जगह रावलपिंडी के करीब एक गांव में जब 1915 में टिक्का खान पैदा हुआ तो ये तय था कि वो भी एक लड़ाका बनेगा।’

टिक्का खान का मिलिट्री बैकग्राउंड भारत में तैयार हुआ था। ये भी एक बड़ी वजह थी कि भारतीय सेना से लोहा लेने याह्या खान ने टिक्का को बांग्लादेश भेजा। टिक्का खान इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून और मध्य प्रदेश के आर्मी कैडेट कॉलेज से पढ़ाई के बाद 1935 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुआ था।

साल 1939 में टिक्का खान को कमीशन ऑफिसर बना दिया गया। सेकेंड वर्ल्ड वॉर में उसने बर्मा और इटालियन फ्रंट पर लड़ाई लड़ी। बंटवारे के बाद टिक्का पाकिस्तान चला गया। जहां उसे 1962 में मेजर जनरल बना दिया गया।

साल 1965 में भारत-पाक का युद्ध हुआ। NYT के मुताबिक टिक्का खान ने कच्छ के रण में हुए युद्ध में भारतीय सेना के खिलाफ बहादुरी दिखाई थी। इसके चलते वो पाकिस्तान में मशहूर हो गया। उसे रावलपिंडी का हीरो कहा जाने लगा।

पूर्वी पाकिस्तान पहुंचकर टिक्का खान ने आजादी के लिए प्रदर्शन कर रहे मुक्ति वाहिनी मोर्चे पर लगाम लगाने के लिए तीन तरह की मिलिशिया बनाई। अल बद्र, अल शम्स और रजाकार। टिक्का खान के आदेश पर जमात-ए-इस्लामी के नेता मौलाना अबुल कलाम को रजाकारों का नेता बनाया गया। शुरुआत में रजाकार सेना में सिर्फ 96 लोग थे।

बाद में इनकी संख्या 50,000 के करीब पहुंच गई। रजाकारों में बंटवारे के वक्त बिहार से बांग्लादेश जाने वाले उर्दू भाषी मुस्लिम शामिल थे। ये पाकिस्तान के समर्थक थे और नहीं चाहते थे कि भाषा के नाम पर अलग देश बांग्लादेश बने।

येलेना बीबरमैन ने अपनी एक किताब ‘गैम्बलिंग विद वॉयलेंस: स्टेट आउटसोर्सिंग ऑफ वॉर इन पाकिस्तान एंड इंडिया’ में पूर्व रजाकार के हवाले से लिखा है कि वे गरीब और अनपढ़ थे। उन्हें यकीन था कि वे इस्लाम के लिए लड़ रहे हैं।

टिक्का खान ने मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग के खिलाफ डायरेक्ट मिलिट्री एक्शन शुरू कर दिया। 25 मार्च को शुरू हुए इस ऑपरेशन को सर्चलाइट नाम से भी जाना जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना और मिलिशिया की बर्बर कार्रवाई में हजारों बंगाली मारे गए थे। रावलपिंडी का हीरो बुलाया जाने वाला टिक्का खान इस घटना के बाद ‘बंगाल का कसाई’ कहा जाने लगा।

बांग्लादेश में रजाकार के संस्थापक सदस्यों में से एक AKM यूसुफ। फरवरी 2014 में हिरासत में यूसुफ की मौत हो गई।

बांग्लादेश में रजाकार के संस्थापक सदस्यों में से एक AKM यूसुफ। फरवरी 2014 में हिरासत में यूसुफ की मौत हो गई।

क्या बांग्लादेश में अब प्रदर्शन कर रहे लोग रजाकार हैं?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को अपमानित करने के लिए और जनता के बीच उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए उन्हें रजाकार बुलाया था। वे रजाकार के बच्चे हैं इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।

बयान से पहले शेख हसीना ने भी ये नहीं सोचा होगा कि प्रदर्शनकारियों को रजाकार कह देना उनकी सरकार को इतना भारी पड़ेगा कि बांग्लादेश का प्रदर्शन पूरी दुनिया की निगाह में आ जाएगा। छात्रों ने ‘रजाकार’ शब्द को सरकार के खिलाफ अपना हथियार बना लिया। उन्होंने जनता के बीच ये मैसेज दिया कि सरकार कैसे परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को सिर्फ अपनी मांग रखने के लिए ‘गद्दार’ साबित करना चाहती है।

बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार के अनुसार, प्रधानमंत्री के बाद उनकी पार्टी के बाकी नेताओं ने भी इसी तरह के बयान देकर प्रदर्शनकारी छात्रों के आक्रोश को और भड़काया। समाज कल्याण मंत्री दीपू मोनी ने कहा- रजाकारों को बांग्लादेश के पवित्र झंडे को थामने का कोई हक नहीं है।

वहीं, सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री मोहम्मद अली अराफात ने कहा- रजाकारों की कोई भी मांग स्वीकार नहीं की जाएगी। नेताओं के ऐसे बयानों से उग्र हुए छात्रों का प्रदर्शन तेज हो गया। AFP की रिपोर्ट के मुताबिक भड़की हिंसा में अब तक कम से कम 115 लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा 2500 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

क्या है वो आरक्षण जिसके खिलाफ 100 से ज्यादा लोग मारे गए?
बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ था। इसी साल वहां पर 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हुआ। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 40%, महिलाओं के लिए 10% आरक्षण दिया गया। सामान्य छात्रों के लिए सिर्फ 20% सीटें रखी गईं।

कुछ विरोध के बाद 1976 में पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण को 20% कर दिया गया। सामान्य छात्रों को इसका थोड़ा फायदा मिला। उनके लिए 40% सीटें हो गईं। 1985 में पिछड़े जिलों का आरक्षण और घटा कर 10% कर दिया गया और अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया। इससे सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं।

शुरू में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही आरक्षण मिलता था। कुछ सालों के बाद स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को मिलने वाली सीटें खाली रहने लगीं। इसका फायदा सामान्य छात्रों को मिलता था।

2009 में स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी आरक्षण मिलने लगा। इससे सामान्य छात्रों की नाराजगी बढ़ गई। साल 2012 में विकलांग छात्रों के लिए भी 1% कोटा जोड़ दिया गया। इससे कुल कोटा 56 फीसदी हो गया।

शेख हसीना का कोटा सिस्टम पर स्टैंड क्या है
साल 2018 में 4 महीने तक छात्रों के प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम खत्म कर दिया था, लेकिन बीते महीने 5 जून को हाईकोर्ट ने सरकार को फिर से आरक्षण देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि 2018 से पहले जैसे आरक्षण मिलता था, उसे फिर से उसी तरह लागू किया जाए।

शेख हसीना सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अपील के बाद हाईकोर्ट के फैसले को फिलहाल निलंबित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में 7 अगस्त को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई होगी।

साल 2018 में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम बंद कर दिया था।

साल 2018 में छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम बंद कर दिया था।

बांग्लादेश के छात्रों को आरक्षण से किस बात का डर?
बांग्लादेश में भी भारत की तरह सरकारी नौकरी रोजगार का एक बड़ा जरिया है। बांग्लादेश में हर साल 4 लाख से भी अधिक छात्र 3 हजार बांग्लादेश पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) के लिए आपस कम्पीट करते हैं। कुछ सालों से कोटा न मिलने की वजह से इसमें योग्यता का बोलबाला था, लेकिन अब छात्रों को डर है कि आधी से अधिक सीटें ‘कोटा वाले’ खा जाएंगे।

अब ये छात्र सभी छात्रों के लिए एक समान अधिकार मांग रहे हैं। इनका कहना है कि आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानियों के पोते-पोतियों को आरक्षण देने का कोई मतलब नहीं है। सरकारी नौकरियों में कोटा नहीं, मेरिट की जरूरत होनी चाहिए।

बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन, आज 25 की मौत, प्रदर्शनकारियों ने सरकारी चैनल में आग लगाई

बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ जारी विरोध-प्रदर्शन अब उग्र हो चला है। प्रदर्शनकारियों ने गुरुवार शाम को बांग्लादेश के मुख्य सरकारी टीवी चैनल BTV के मुख्यालय में आग लगा दी। AFP की रिपोर्ट के मुताबिक BTV ऑफिस में मौजूद कई लोग अब भी अंदर फंसे हुए हैं। एक कर्मचारी के मुताबिक शाम को सैकड़ों प्रदर्शनकारी BTV ऑफिस के कैंपस में घुस आए और 60 से ज्यादा गाड़ियों में आग लगा दी। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आज ही BTV को इंटरव्यू दिया था। पूरी खबर पढ़ें…



Disclaimer:* The following news is sourced directly from our news feed, and we do not exert control over its content. We cannot be held responsible for the accuracy or validity of any information presented in this news article.

Source link

Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *