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15 मिनट पहले
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में देश का अंतरिम बजट पेश किया।
भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को अंतरिम बजट पेश किया। इस दौरान वित्त मंत्री ने करीब 58 मिनट भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने कहा- पिछले साल भारत-मिडिल ईस्च-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) की घोषणा हुई थी। यह देश के लिए रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर गेम चेंजर साबित होगा।
सीतारमण ने भाषण में कहा कि अगर PM मोदी के शब्दों में कहा जाए तो यह कॉरिडोर आने वाले सैकड़ों सालों तक वर्ल्ड ट्रेड का आधार बनेगा। इतिहास में इस बात को याद किया जाएगा कि इस कॉरिडोर की शुरुआत भारत की जमीन पर हुई थी।
पिछले साल दिल्ली में हुए G20 समिट में PM मोदी ने कॉरिडोर डील का ऐलान किया था। इस दौरान मोदी के दाहिने तरफ बाइडेन, जबकि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बाईं तरफ बैठे थे।
वित्त मंत्री बोलीं- भारत ने दुनिया को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया
इसके अलावा G20 की अध्यक्षता पर बात करते हुए वित्त मंत्री ने कहा- भारत ने बहुत ही मुश्किल समय में यह जिम्मेदारी संभाली। दुनिया में महंगाई, ब्याज दरें और कर्ज बढ़ रहा है। वहीं दुनिया के सामने विकास में कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां भी हैं।
कोरोना महामारी की वजह से दुनियाभर में खाने, ऊर्जा और कई दूसरी जरूरी चीजों की कमी होने लगी। इन सबके दौरान भारत ने दुनिया को आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया और वैश्विक समस्याओं के मुद्दे पर सबके बीच आम सहमति बनाई।
मैप के जरिए IMEC कॉरिडोर के रूट को समझें…
चीन के BRI प्रोजेक्ट का जवाब है IMEC प्रोजेक्ट
दरअसल, पिछले साल G20 समिट के दौरान भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट यानी खाड़ी देशों के बीच कॉरिडोर बनाने को लेकर डील हुई थी। इस डील को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) प्रोजेक्ट का जवाब माना जा रहा है।
फिलहाल, भारत, सऊदी, इटली, अमेरिका सहित 8 देश इस इकोनॉमिक कॉरिडोर का हिस्सा हैं। इस कॉरिडोर को पूरा करने के लिए 10 साल का टारगेट रखा गया है। इस प्रोजेक्ट का फायदा इजराइल और जॉर्डन को भी मिलेगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है।
कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा।
पिछले साल दिल्ली में हुए G20 समिट में भारत-यूरोप-मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर की डील के ऐलान के बाद राष्ट्रपति बाइडेन, सऊदी क्राउन प्रिंस और मोदी बातचीत करते नजर आए।
सात वजहों से भारत इस प्रोजेक्ट से जुड़ा
- सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
- भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था।
- भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक के रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित होती जा रही है।
- अरब देशों के साथ की भागीदारी बढ़ी है, UAE और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रही है।
- अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
- यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
- नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों को चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी।