मुंबई1 घंटे पहलेलेखक: आशीष तिवारी
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यह फिल्म सैयद अब्दुल रहीम की लाइफ पर बेस्ड है। सैयद अब्दुल रहीम 1952 से लेकर 1962 तक इंडियन नेशनल फुटबॉल टीम के कोच और मैनेजर रहे थे।
इंडियन फुटबॉल को स्वर्णिम युग दिखाने वाले कोच सैयद अब्दुल रहीम के लाइफ पर बनी फिल्म मैदान 10 अप्रैल को रिलीज होगी। हमने एक दिन पहले फिल्म का रिव्यू किया है। अजय देवगन स्टारर इस रियल लाइफ बेस्ड फिल्म की लेंथ 3 घंटे 1 मिनट है। दैनिक भास्कर ने इसे 5 में से 3 स्टार रेटिंग दी है।
फिल्म की कहानी क्या है?
इंडियन फुटबॉल का गोल्डन पीरियड 1952 से लेकर 1962 तक था। यह सिर्फ एक आदमी सैयद अब्दुल रहीम की (अजय देवगन) वजह से संभव हो पाया। फिल्म की कहानी इन्हीं की लाइफ पर बेस्ड है। कहानी की शुरुआत में दिखाया गया है कि सैयद अब्दुल रहीम पूरे देश से प्लेयर्स को इकट्ठा करते हैं और उन्हें देश की तरफ से खेलने के लिए ट्रेनिंग देते हैं। इसी बीच उन्हें इंडियन फुटबॉल फेडरेशन के अंदर बैठे कुछ क्षेत्रवादी लोगों से निपटना पड़ता है।
वहां बैठे लोग चाहते हैं कि बंगाल के प्लेयर्स को टीम इंडिया में ज्यादा मौके मिलें, लेकिन सैयद अब्दुल रहीम की सोच कुछ और ही थी। वे रियल टैलेंट को मौके देना चाहते हैं। 1952 और 1956 के ओलिंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन काफी शानदार रहता है, हालांकि टीम अंतिम मुकाम तक नहीं पहुंच पाती।
इस कारण रहीम को कोच पद से हटा दिया जाता है। इसी बीच उन्हें कैंसर भी हो जाता है, हालांकि उनके हौसले नहीं टूटते। वे दोबारा इंडिया के कोच बनते हैं और टीम को एशियाई खेलों में गौरव दिलाते हैं।
फिल्म 10 अप्रैल को रिलीज होगी।
स्टारकास्ट की एक्टिंग कैसी है?
जाहिर सी बात है कि फिल्म में आपको सिर्फ अजय देवगन ही नजर आएंगे। सैयद अब्दुल रहीम के रोल में अजय देवगन ने बेहतरीन काम किया है। अजय देवगन आंखों से एक्टिंग करने के लिए जाने जाते हैं, इस फिल्म में भी उन्होंने ज्यादातर आंखों से ही एक्टिंग की है। उनकी वाइफ के रोल में प्रियामणि ने भी अच्छा काम किया है। स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट के रोल में गजराज राव ने भी बढ़िया काम किया है। इंडियन प्लेयर्स के रोल में सारे कलाकारों ने प्रभावित किया है।
मैदान की शूटिंग 2019 में शुरू हो गई थी, लेकिन इसे रिलीज होने में चार साल से ज्यादा वक्त लग गया।
डायरेक्शन कैसा है?
बधाई हो जैसी सक्सेसफुल फिल्म बनाने वाले अमित शर्मा ने फिल्म का डायरेक्शन किया है। फर्स्ट हाफ में उन्होंने कहानी को बिल्कुल बोरिंग और स्लो रखा है। फर्स्ट हाफ इतना बोरिंग है कि आप फोन चलाने और इधर-उधर देखने को मजबूर हो जाएंगे। सेकेंड हाफ खासकर के क्लाइमैक्स वाला सीक्वेंस शानदार है। फुटबॉल मैच वाले सीक्वेंस में कैमरा वर्क शानदार है, ऐसा लगेगा कि आप लाइव मैच देख रहे हैं।
अमित शर्मा (दाएं) ने इससे पहले बधाई हो और तेवर जैसी फिल्मों का डायरेक्शन किया है।
फिल्म का म्यूजिक कैसा है?
फिल्म का म्यूजिक पार्ट सबसे निराशाजनक है। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि क्योंकि फिल्म का म्यूजिक ए.आर. रहमान जैसे लीजेंड्री म्यूजिक डायरेक्टर ने दिया है। उनके कद के हिसाब से इस फिल्म का म्यूजिक बिल्कुल अच्छा नहीं है। अमूमन स्पोर्ट्स ड्रामा वाली फिल्मों का म्यूजिक एनर्जी देने वाला होता है, इस फिल्म में ऐसा नहीं है। फिल्म खत्म हो जाने के बाद गाने और बैकग्राउंड स्कोर याद भी नहीं रहते।
फाइनल वर्डिक्ट, फिल्म देखें या नहीं?
हमारा देश शुरुआती समय से क्रिकेट और हॉकी के लिए जाना जाता है, हालांकि एक समय ऐसा भी आया जब इंडियन फुटबॉल को एशिया का ब्राजील कहा गया। यह सिर्फ एक शख्स सैयद अब्दुल रहीम की वजह से संभव हुआ। अगर आपको उनकी कहानी जाननी हो तो इस फिल्म के लिए जा सकते हैं।
फिल्म को देखने के दौरान आपको चक दे इंडिया के कुछ सीन याद आएंगे, हालांकि उतना मजा नहीं आएगा। जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि फिल्म का फर्स्ट हाफ बोरिंग है, अगर इसे पचाने की क्षमता है तो फिल्म एक बार देख सकते हैं।
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