न्यूयॉर्क32 मिनट पहले
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रूस और यूक्रेन की जंग 24 फरवरी 2024 को तीसरे साल में दाखिल हो चुकी है। अगर जंग शुरू होने के पहले के कुछ बयानों पर नजर दौड़ाएं तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के एक बयान पर नजर ठहर जाती है। पुतिन ने कहा था- रूस के सामने यूक्रेन की फौज 15 दिन भी नहीं ठहर पाएगी।
सवाल ये है कि रूस जैसे सुपरपावर के सामने यूक्रेन 2 साल बाद भी जंग में कैसे टिका है।
अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने रूस-यूक्रेन जंग और इसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के रोल पर तफ्सीली रिपोर्ट जारी की है। इसमें जंग के तमाम पहलुओं और CIA के रोल को समेटा गया है। चलिए नजर डालते हैं…
रूस और यूक्रेन की जंग 24 फरवरी 2024 को तीसरे साल में दाखिल हो चुकी है। (फाइल)
जो ऊपर दिख रहा, वो सच नहीं
- यूक्रेन का एक मिलिट्री बेस। यहां कुछ देर पहले ही रूसी मिसाइल गिरी और पूरा स्ट्रक्चर तबाह हो गया। इससे कुछ दूरी पर एक बंकर है। इसमें मौजूद यूक्रेनी सैनिक लैपटॉप पर रूस के एक स्पाय सैटेलाइट को फॉलो कर रहे हैं। चंद मीटर की दूरी पर कुछ सैनिक ईयरफोन पर रूसी कमांडर्स की इंटरसेप्ट की गई बातचीत सुन रहे हैं। इसी दौरान एक लैपटॉप की स्क्रीन पर रूस का ड्रोन नजर आता है। ये सेंट्रल यूक्रेन के रोस्तोव शहर की खास लोकेशन पर हमला करने वाला है। चंद मिनट बाद यूक्रेनी फौज टारगेटेड मिसाइल फायर करती है और ड्रोन रूसी इलाके में ही क्रैश कर जाता है।
- कहानी यहीं से शुरू होती है। यूक्रेन आर्मी अगर रूस को करारा जवाब दे पा रही है तो इसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA है। रूस इस मुगालते में रहा कि उसने यूक्रेन आर्मी का मिलिट्री बेस तबाह कर दिया, लेकिन सही मायनों में ऑपरेशन सीक्रेट लोकेशन्स से अंजाम दिए जा रहे हैं। इसके लिए फंडिंग और इक्युपमेंट्स CIA मुहैया करा रही है।
- यूक्रेन के टॉप इंटेलिजेंस कमांडर जनरल सरही वोरेटतिस्की कहते हैं- CIA ही सब कर रही है और ये बात 110% दुरुस्त है। जंग तीसरे साल में एंट्री कर चुकी है। ये बात अब दुनिया जानती है कि वॉशिंगटन और कीव के बीच किस लेवल पर कितना कोऑपरेशन है। CIA और दूसरी अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसीज यूक्रेन की हिफाजत के लिए इनपुट देती हैं। रूस के स्पाय नेटवर्क पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। हालांकि, ये सहयोग सिर्फ जंग के बाद शुरू हुआ, ऐसा नहीं है। और ये भी सच नहीं है कि ये सिर्फ यूक्रेन में हो रहा है। कई देशों को CIA इसी तरह की मदद देती आई है और दे रही है।
CIA और दूसरी अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसीज यूक्रेन की हिफाजत के लिए इनपुट देती हैं। रूस के स्पाय नेटवर्क पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। (फाइल)
3 अमेरिकी राष्ट्रपति नजर रखते रहे
- यूक्रेन को CIA और अमेरिकी मदद का सिलसिला कई साल पुराना है। इस दौरान कम से कम तीन अमेरिकी प्रेसिडेंट्स का टेन्योर पूरा हुआ। इस दौरान यूक्रेन में CIA इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया। वजह ये थी कि यूक्रेन किसी वक्त रूस का ही हिस्सा था और जाहिर तौर पर उसकी मिलिट्री और इंटेलिजेंस पर रूस का प्रभाव था। आज CIA का यूक्रेन और वहां की फौज पर जबरदस्त असर है।
- यूक्रेन के जंगलों में CIA की कई पोस्ट मौजूद हैं। इनमें ऑपरेशनल रिस्पॉन्सिबिलिटी यूक्रेनी सैनिकों की होती है, लेकिन हर इनपुट CIA देती है। 8 साल में CIA ने रूस बॉर्डर पर 12 बेस तैयार किए हैं। दुनिया तब हैरान रह गई जब यूक्रेन की मिलिट्री ने 20147 में मलेशियाई एयरलाइंस के एयरक्राफ्ट क्रैश में रूस का हाथ होने के सबूत पेश दिए। यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसीज ने भी जबरदस्त काबिलियत दिखाई और CIA को वो सबूत दिखाए जो ये साबित करने के लिए काफी थे कि 2016 में हुए अमेरिका के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में रूस ने दखलंदाजी की थी।
- 2016 ही वो साल था, जब अमेरिका ने यूक्रेनी फौज के कमांडोज को ट्रेनिंग देना शुरू किया। यूक्रेनी सेना की इस एलीट कमांडो यूनिट को 2245 कहा जाता है। टेक्निकली ये यूनिट इतनी एक्सपर्ट है कि इसने रूस के ड्रोन्स और कम्युनिकेशन सिस्टम तक पहुंच बना ली। कहा जाता है कि ये रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए मुमकिन हुआ। इतना ही नहीं मॉस्को के इन्क्रिप्शन कोड्स को भी इस यूनिट ने क्रैक कर लिया। आज इस यूनिट का ही कमांडो किरिलो बंदोव यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी का चीफ है।
यूक्रेन को CIA और अमेरिकी मदद का सिलसिला कई साल पुराना है। इस दौरान कम से कम तीन अमेरिकी प्रेसिडेंट्स का टेन्योर पूरा हुआ। इनमें बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प शामिल हैं। फिलहाल, जो बाइडेन इसकी कड़ी बने हुए हैं। (फाइल)
न्यू जेनरेशन पर भी CIA का असर
- यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी के यंग अफसर भी CIA नेटवर्क के जरिए ही ट्रेंड किए जा रहे हैं। ये सिर्फ रूस में ही नहीं, बल्कि यूरोप, क्यूबा और दुनिया के कई दूसरे देशों में भी एक्टिव हैं। CIA के अफसर यूक्रेन के दूर-दराज के इलाकों में मौजूद हैं और इनके बेस अलग होते हैं। फरवरी 2022 में जंग शुरू होने के फौरन बाद अमेरिका ने जब अपने सभी नागरिकों को यूक्रेन से निकाला तो इसके पीछे यही नेटवर्क था।
- CIA के इन अफसरों ने बेहद सेंसेटिव इनपुट जुटाए और यूक्रेन को यह भी बताया कि रूस कहां और किस वक्त हमला करने वाला है। ये भी बताया गया कि इन हमलों के खिलाफ किस तरह के हथियार इस्तेमाल किए जाने चाहिए। यूक्रेन की डोमेस्टिक इंटेलिजेंस एजेंसी एसबीयू के चीफ इवान बाकोनोव कहते हैं- CIA की मदद के बिना हम रूस का सामना कर ही नहीं सकते थे। कई साल तक दुनिया इस इंटेलिजेंस कोऑपरेशन को समझ नहीं पाई थी।
- यूक्रेन के करीब 200 पूर्व या वर्तमान अफसर इस बारे में बता चुके हैं। उनके मुताबिक- यूरोप में CIA का नेटवर्क जबरदस्त है और कीव में उसका बहुत बड़ा इंटेलिजेंस स्टेशन मौजूद है। डिप्लोमैसी के लिए भी इसके इनपुट का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
रूस प्रेसिडेंट जेलेंस्की समेत यूक्रेन के कई आला अफसरों को मार गिराना चाहता था। एक मौके पर तो वो कामयाब भी होने वाला था, लेकिन CIA ने यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी को पुख्ता जानकारी दी और खतरा टल गया। (फाइल)
CIA का रोल अब पहले से ज्यादा अहम
- रूस और यूक्रेन की जंग अब तीसरे साल में पहुंच चुकी है। यूक्रेनी सेना ने रूस को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है, लेकिन अब CIA का रोल पहले से ज्यादा अहम हो गया है। इसके साथ ही खतरा भी बढ़ रहा है। हालांकि, परेशानी ये है कि अमेरिकी संसद में यूक्रेन को फंडिंग बंद करने की मांग उठने लगी है। मान लीजिए, अगर ऐसा हुआ तो CIA को कदम खींचने होंगे।
- यही वजह है कि पिछले दिनों CIA के चीफ विलियम बर्न्स यूक्रेन पहुंचे और वहां की लीडरशिप को भरोसा दिलाया कि कीव की मदद जारी रखी जाएगी। जंग शुरू होने के बाद बर्न्स 10वीं बार यूक्रेन गए थे।
- पुतिन अमेरिका और यूक्रेन के इस गठजोड़ से परेशान हैं। अब तक वो यूक्रेन के पॉलिटिकल सिस्टम में दखलंदाजी करते आए हैं। वहां कौन सत्ता में रहेगा? ये भी दो साल पहले तक करीब-करीब पुतिन ही तय करते थे। हालांकि, कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि यही दखलंदाजी पुतिन को भारी पड़ गई और अमेरिका ने मौके का पूरा फायदा उठाया। अब वो आरोप लगा रहे हैं कि जंग शुरू होने की वजह वेस्टर्न वर्ल्ड है।
- यूरोप के एक सीनियर डिप्लोमैट मानते हैं कि 2021 तक पुतिन यूक्रेन के खिलाफ पूरी जंग शुरू करने के मूड में नहीं थे। इसी साल उन्होंने रूस के स्पाय चीफ से कई घंटे तक बातचीत की। इस दौरान साफ हुआ कि यूक्रेन की सरकार हकीकत में CIA चला रही है। इसके अलावा ब्रिटेन की MI6 भी इसमें मदद कर रही है। इसके बाद ही उन्होंने इस नेटवर्क को तोड़ने के लिए फुल स्केल वॉर यानी पूरी जंग शुरू करने का फैसला किया।
- एक रिपोर्ट कहती है कि पुतिन का कैल्कुलेशन सही साबित नहीं हुआ। अमेरिकी मदद यूक्रेन को बहुत ज्यादा मिली। खास बात ये है कि शुरुआत में CIA यूक्रेन पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर रही थी। इसके बाद CIA के डिप्टी स्टेशन चीफ की यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ से कई मीटिंग हुईं और आखिरकार यह भरोसा बढ़ता चला गया।
ट्रम्प तो खुलेआम पुतिन और रूस का बचाव करते थे, लेकिन उनकी एडमिनिस्ट्रेशन के अफसर कुछ और ही करते थे। उस वक्त माइक पॉम्पियो (यहां ब्लैक सूट में) CIA डायरेक्टर और जॉन बोल्टन नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर थे। (फाइल)
रूस के सबमरीन प्रोजेक्ट पर नजर
- यूक्रेनी इंटेलिजेंस और रूस के बीच शुरुआती सहयोग रूसी नेवी की नॉदर्न फ्लीट पर नजर रखने को लेकर था। इसके साथ ही रूस के न्यूक्लियर सबमरीन डिजाइन्स भी CIA के राडार पर थे। यूक्रेन में CIA के अफसर जब भी अमेरिका जाते तो उनके पास भारी बैग होते थे और इनमें यही डाक्यूमेंट्स होते थे। यूक्रेन के एक जनरल कहते हैं- हम जानते थे कि सबसे जरूरी काम अमेरिका और CIA का भरोसा जीतना है। ये दोनों पक्षों की जीत है।
- 2016 से यूक्रेन और अमेरिका के रिश्ते मजबूत होना शुरू हुए और CIA की सीधी पहुंच यूक्रेन के हर मामले में हो गई। इस दौरान यूक्रेन में कुछ पॉलिटिकल किलिंग्स हुईं तो अमेरिका में इनका विरोध शुरू हो गया। अमेरिका ने यूक्रेन को मदद में कटौती की धमकी दी। हालांकि, हुआ इसका उल्टा। मदद कम तो नहीं की गई, बल्कि दिन-ब-दिन बढ़ती गई। CIA की यूक्रेन में मौजूद ऑपरेशन यूनिट मजबूत होती गई और इसका फायदा अमेरिका ने पूरे यूरोप में उठना शुरू कर दिया। हालांकि, शुरुआत में उसका मकसद सिर्फ रूस पर नजर रखना था।
- वोल्दोमिर जेलेंस्की से पहले विक्टर यानुकोविच प्रेसिडेंट थे। दोनों पुतिन और रूस समर्थक थे। अचानक ये दोनों रूस भाग गए। इसका फायदा CIA ने उठाया और यूक्रेन में पहली बार पूरी तरह से वो सरकार आई जो अमेरिका के इशारे पर चलने वाली थी। ये हम आज देख रहे हैं। यूक्रेन के नए इंटेलिजेंस चीफ ने चार्ज लेने के बाद जब पहली बार हेडक्वॉर्टर का दौरा किया तो वहां सेंसेटिव डॉक्यूमेंट बिखरे पड़े थे। कंप्यूटर्स से जरूरी डेटा कॉपी करके डिलीट किया जा चुका था। इतना ही नहीं हर कंप्यूटर में रूसी वायरस डाल दिया गया था।
- बाद में यूक्रेन के इस इंटेलिजेंस चीफ वेलेंटिन नेल्वाशेंको ने कहा था- वहां कुछ नहीं था। बाकी सब तो छोड़िए, स्टाफ भी गायब हो चुका था। इसके बाद उन्होंने CIA के स्टेशन चीफ से मुलाकात की और एक नया नेटवर्क तैयार किया गया। इसमें तीन सहयोगी थे। यूक्रेनी इंटेलिजेंस एजेंसी, CIA और ब्रिटेन की MI6 एजेंसी। इसके बाद जो शुरुआत हुई, वो कामयाबी का सफर तय कर रही है।
- हालात, तब खराब हुए जब पुतिन ने क्रीमिया पर हमला किया और उसे कब्जे में ले लिया। वेलेंटिन ने CIA से मदद मांगी। उस वक्त जॉन ब्रेनिन CIA चीफ थे। उन्होंने यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ से कहा- हम आपकी मदद करेंगे, लेकिन ये किस हद तक होगी, ये हम तय करेंगे। दरअसल, CIA आगे बढ़ने से पहले ये तय कर लेना चाहती थी कि कहीं यूक्रेन की सरकार और इंटेलिजेंस चीफ बदल तो नहीं जाएंगे। सरकार गिर तो नहीं जाएगी और इससे भी बड़ा सवाल ये था कि जो नया निजाम आएगा, वो अमेरिका से दोस्ती निभाएगा या रूस के पाले में चला जाएगा।
- उस वक्त बराक ओबामा प्रेसिडेंट थे। उनके एडवाइजर्स जब ब्रेनन से मिले तो सवाल ये उठा कि यूक्रेन की खुली मदद से रूस भड़क जाएगा तो इसके क्या नतीजे होंगे। बहरहाल, व्हाइट हाउस में ये तय हुआ कि इस मामले पर हाथ बांधकर खड़े रहने से कुछ नहीं होगा। इसके बाद प्लान तैयार हुआ और CIA ने धीरे-धीरे यूक्रेन में पुतिन के खिलाफ सियासी माहौल तैयार करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही यूक्रेन ने हर वो कदम उठाना शुरू कर दिया, जिससे रूस भड़क सकता था।
एक वक्त ट्रम्प और पुतिन के रिश्ते बहुत अच्छे हो चुके थे। ट्रम्प ने साफतौर पर इस बात से इनकार कर दिया था कि अमेरिकी इलेक्शन में रूस ने कोई दखलंदाजी की है। (फाइल)
यूक्रेन के हर अफसर की जांच
- यूक्रेन की सरकार, इंटेलिजेंस एजेंसी के साथ ही सरकार में तमाम ऐसे अफसर मौजूद थे, जिन्हें मॉस्को का एजेंट कहा जा सकता था। लिहाजा, यूक्रेन के नए इंटेलिजेंस चीफ ने CIA की मदद से इनकी जांच कराई और इसके बाद ही उन्हें पोस्टिंग दी गई। रूस के बॉर्डर एरिया के करीब यूक्रेनी इलाके में CIA के छोटे-छोटे स्टेशन बनाए गए। एक नई पैरामिलिट्री यूनिट बनाई गई और इसकी कमान जनरल कोन्द्रातुक को सौंपी गई।
- इस जनरल ने कहा था- नए स्टाफ का रूस से कोई कनेक्शन नहीं था। उन्हें तो ठीक से ये भी नहीं पता था कि सोवियत यूनियन जैसी भी कोई चीज हुआ करती थी। इसी वक्त मलेशिया एयरलाइन्स की फ्लाइट नंबर 17 एमस्टर्डम से कुआलालंपुर जाते वक्त क्रैश हुई और इसका मलबा पूर्वी यूक्रेन के जंगल में गिरा। 300 पैसेंजर मारे गए।
- यूक्रेनी इंटेलिजेंस ने कुछ कॉल्स इंटरसेप्ट किए और बाद में दावा किया कि मलेशियाई एयरक्राफ्ट क्रैश नहीं हुआ, बल्कि इसे रूस के अलगाववादियों ने मिसाइल से मार गिराया। CIA इस खुलासे से बेहद खुश हुई और उसने बेहद हाईटेक स्पाय इक्युपमेंट्स यूक्रेनी इंटेलिजेंस एजेंसी को देना शुरू कर दिया। अमेरिका के एक पूर्व अफसर कहते हैं- उन्हें कुछ जबरदस्त चीजें दी गईं। हालांकि, हर वो चीज नहीं दी गई, जिसकी वो डिमांड कर रहे थे।
यूक्रेनी इंटेलिजेंस ने देश से ज्यादा रूस पर फोकस किया और वहां से सूचनाएं जुटाईं। हालांकि, अमेरिका चाहता था कि उसे हर इनपुट मिले। (फाइल)
इतना आसान भी नहीं रहा सफर
- 2015 में यूक्रेनी राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको ने इंटेलिजेंस चीफ वेलेंटिन को हटाकर वहां अपने एक खास सहयोगी को बिठा दिया। इसी वक्त जनरल कोंद्रातुक को मिलिट्री इंटेलिजेंस की कमान सौंपी गई। हालांकि, इससे ज्यादा असर नहीं हुआ।
- मिलिट्री इंटेलिजेंस ने देश से ज्यादा रूस पर फोकस किया और वहां से सूचनाएं जुटाईं। हालांकि, अमेरिका और CIA चाहते थे कि उन्हें रूस के बारे में ज्यादा से ज्यादा सॉलिड इन्फॉर्मेशन मिले। जनरल कोंद्रातुक ने इसी दौरान CIA चीफ से सीक्रेट मीटिंग की और रूस के काफी सेंसेटिव डॉक्यूमेंट्स उन्हें सौंप दिए। इतना ही नहीं वो खुद CIA हेडक्वॉर्टर गए।
- इस दौरान एक रोचक वाकया हुआ। जनरल कोंद्रातुक वॉशिंगटन में एक हॉकी मैच देखने गए और यहां वीवीआईपी बॉक्स में बैठे। इस दौरान उनके बाजू में जो अमेरिकी मौजूद था, वो दरअसल यूक्रेन में CIA का नया स्टेशन चीफ था। क्रोंद्रातुक ने उसे रूस के बेहद सीक्रेट डॉक्यूमेंट सौंपे। उन्होंने उस अफसर को ये भी भरोसा दिलाया कि इससे भी ज्यादा इनपुट अमेरिका को दिए जाएंगे।
- CIA किसी पर आसानी से भरोसा नहीं करती। लिहाजा, उसने इन डॉक्यूमेंट्स की बहुत बारीकी से जांच की और तब जाकर संतुष्ट हुई। इसके बाद जनरल कोंद्रातुक CIA के सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन गए। वो जानते थे कि यूक्रेन और खुद उनके लिए CIA का भरोसा जीतना कितना जरूरी है। बाद ने जनरल ने खुद कहा था- रूस में अपना एजेंट बनाना बहुत मुश्किल काम है।
- बहरहाल, इसके बाद CIA के स्टेशन चीफ लगातार इस जनरल से मिलने लगे। यहां एक अक्वेरियम मौजूद था। इसमें नीले और पीले रंग की मछलियां मौजूद थीं। ये यूक्रेन के नेशनल फ्लैग के रंग भी हैं। कहा जाता है कि जनरल कोंद्रातुक को CIA ने कोड नेम ‘सांता क्लॉज’ दिया था। 2016 में ये जनरल वॉशिंगटन गया और वहां कई लोगों से सीक्रेट मीटिंग्स कीं। इसके बाद अमेरिका को रूस के बारे में ज्यादा खुफिया जानकारी मिलने लगी।
रूस ने शुरुआत में कीव पर कई हमले किए। हालांकि, इसके बाद अचानक ये बंद हो गए। अमेरिका ने इसे जीत के तौर पर लिया। (फाइल)
एक बड़ा ऑपरेशन
- रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो उसकी फौज ने यूक्रेन के बॉर्डर एरिया में मौजूद यूक्रेन के एक सीक्रेट बेस को उड़ा दिया। इसके बाद यूक्रेन की फौज ने वापसी की। फंडिंग और इक्युपमेंट CIA ने दिए। जनरल वोरेत्सकी ने इसकी कमान संभाली। सबकुछ अंडरग्राउंड किया गया। कहा जाता कि इस बेस पर सिर्फ रात में काम होता था। कर्मचारी अपनी गाड़ियां काफी दूर जंगल में पार्क करते थे। यहां एक सर्वर भी इंस्टॉल किया गया। इसी बेस से रूसी फौज का कम्युनिकेशन हैक किया जाने लगा। इन्क्रिप्शन कोड्स यहीं डीकोड किए जाते। इतना ही नहीं रूस के करीबी सहयोगियों जैसे चीन और बेलारूस के सैटेलाइट मूवमेंट पर भी पैनी नजर रखी जाती। एक अफसर खास तौर पर दुनिया में रूस की तरफ से की जा रही मिलिट्री एक्टिविटीज पर नजर रखता था। इनमें रूस न्यूक्लियर बेस भी शामिल थे। इसके अलावा यूरोप के शहरों में नाटो देशों के सैनिकों को अमेरिकी मिलिट्री ट्रेनिंग भी देने लगी। इस ट्रेनिंग की खास बात यह थी कि इसमें इंटेलिजेंस अफसरों को खास तौर पर शामिल किया जाता था। इसे ‘ऑपरेशन गोल्ड फिश’ नाम दिया गया।
- बहरहाल, इस ऑपरेशन में शामिल अफसरों को जल्द ही 12 नई फॉरवर्ड लोकेशन्स पर तैनात किया गया। हर लोकेशन पर मौजूद अफसरों को रूस में मौजूद उनके जासूस नई खुफिया जानकारी भेजते थे। हर बेस पर हाईटेक इक्युपमेंट इंस्टॉल किए गए। ज्यादातर यंग यूक्रेनियन्स को यहां अपॉइंट किया गया और ये रूस में नए एजेंट तैयार करते। इस काम में कई साल लगे, लेकिन CIA पूरी तरह यूक्रेन पर भरोसा करने लगी। दोनों ने जॉइंट ऑपरेशन्स शुरू कर दिए।
रूस-यूक्रेन जंग को दो साल पूरे हो चुके हैं। अब तक दोनों ही देश पुख्ता तौर पर ये नहीं बता सके हैं कि उनको कुल कितना नुकसान हुआ। (फाइल)
एक ऑपरेशन और CIA से रिश्ते बिगड़ने की कहानी
- दोनों देशों या यूं कहें कि इनकी इंटेलिजेंस के लिए हमेशा रिश्ते मीठे ही नहीं रहे। एक वक्त ऐसा भी आया जब जनरल कोंद्रातुक ने अमेरिका से रूस के कुछ सैटेलाइट पिक्चर मांगे तो अमेरिका ने इनकार कर दिया। दरअसल, रूसी सेना अपना गोला-बारूद बॉर्डर तक ट्रेन्स के जरिए भी लाती थी। यूक्रेन चाहता था कि इन ट्रेन्स को रास्ते में उड़ा दिया जाए। इससे रूसी सेना को रसद मिलना कम हो जाएगी और यूक्रेनी फौज फायदा उठा लेगी।
- इस पर CIA चीफ ब्रेनन राजी नहीं हुए। उन्होंने जनरल कोंद्रातुक से कहा- आप लक्ष्मण रेखा पार मत कीजिए। जनरल इससे नाराज तो हुए लेकिन उन्होंने तय कर लिया कि अमेरिका को हर सूचना नहीं दी जाएगी। कुछ दिन बाद यूक्रेन के पास जानकारी आई कि रूस अपने बॉर्डर एरिया के खेतों में अटैक हेलिकॉप्टर्स तैनात कर रहा है। जनरल कोंद्रातुक ने इन पर हमले का प्लान बनाया। खास बात ये है कि उन्होंने इसकी जानकारी CIA को नहीं दी। यहां अपने कमांडो भेजे। इनकी कमान अमेरिका में ही ट्रेनिंग लेने वाले जनरल बुदानेव को सौंपी गई। इन लोगों ने रूसी सेना की यूनिफॉर्म पहनकर हमला किया और रूस को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया। हमले के बाद सभी कमांडो समंदर में तैरते हुए अपने बेस पर लौट आए।
- जब ये जानकारी व्हाइट हाउस को मिली तो उस वक्त बाइडेन वाइस प्रेसिडेंट थे। उन्होंने यूक्रेन के प्रेसिडेंट को फोन किया और इस ऑपरेशन के लिए फटकार लगाई। कहा- अगर अब कोई बड़ी घटना होगी तो इसके जिम्मेदार आप ही होंगे। कहा जाता है कि ओबामा के कुछ एडवाइजर्स चाहते थे कि यूक्रेन की मदद बंद कर दी जाए। हालांकि, CIA चीफ ब्रेनन ने कहा- ये खुदकुशी जैसा होगा। यूक्रेन हमें ये भी नहीं बताएगा कि रूस हमारे देश के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में किस हद तक दखलंदाजी करता है।
- इसके बाद ब्रेनन ने जनरल कोंद्रोतुक को फोन किया और कहा कि यूक्रेन संभलकर चले। इस पर जनरल नाराज हो गए और उन्होंने ब्रेनन से कहा- ये हमारा देश है। जंग हमारी है और हम ही इसे लड़ रहे हैं। बहरहाल, इस घटना के बाद जनरल कोंद्रातुक की कुर्सी चली गई, लेकिन यूक्रेन पीछे नहीं हटा। जनरल के हटने के अगले ही दिन दोन्तेस्क में एक ब्लास्ट हुआ। इसमें रूस का एक कमांडर मारा गया।
- घटना के बाद CIA समझ गई कि यह काम यूक्रेनी इंटेलिजेंस ने किया है और इसकी वजह अमेरिका से मिली ट्रेनिंग और इक्युपमेंट्स हैं। इससे अमेरिका और नाराज हो गया। उस वक्त अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प बनाम हिलेरी क्लिंटन का मुकाबला था। इसके बाद भी यूक्रेन के एजेंट्स ने कई ऑपरेशन्स किए और इसमें कई रूसी कमांडर या अलगाववादी नेता मारे गए।
- रूस ने इसका जवाब दिया और यूक्रेन की इंटेलिजेंस यूनिट 2245 के चीफ कर्नल मेस्किम शापोवाल को मार गिराया। उनकी अंतिम विदाई में मौजूद अमेरिकी एंबैसेडर से यूक्रेन के एक अफसर ने कहा था- मेस्किम की मौत हमारे लिए बहुत बड़ा नुकसान है। एक वक्त ट्रम्प और पुतिन के रिश्ते बहुत अच्छे हो चुके थे। ट्रम्प ने साफतौर पर इस बात से इनकार कर दिया था कि अमेरिकी इलेक्शन में रूस ने कोई दखलंदाजी की है। उन्होंने तो बाइडेन और जेलेंस्की के रिश्तों पर भी सवाल उठाए। इसी वजह से ट्रम्प को महाभियोग का भी सामना करना पड़ा।
अमेरिका ही नहीं, बल्कि नाटो और खासकर जर्मनी ने यूक्रेन को काफी हथियार दिए हैं। बेलारूस पर भी इन देशों ने पैनी नजर रखी। (फाइल)
ट्रम्प की नहीं सुनते थे अफसर
- ट्रम्प तो खुलेआम पुतिन और रूस का बचाव करते थे, लेकिन उनकी एडमिनिस्ट्रेशन के अफसर कुछ और ही करते थे। उस वक्त माइक पॉम्पियो CIA डायरेक्टर और जॉन बोल्टन नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर थे। दोनों ने चुपचाप यूक्रेन दौरा किया और वहां की सरकार को पूरी मदद का भरोसा दिलाया। इसमें ट्रेनिंग और इक्युपमेंट्स देना भी शामिल थे। कुछ नए सीक्रेट बेस बनाया जाना भी तय हुआ।
- यूक्रेन के करीब 800 अफसरों को CIA ने ट्रेनिंग दी। एजेंडे में यह भी तय था कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस की दखलंदाजी की कोशिशों को नाकाम किया जाए। कहा जाता है कि रूस की इंटेलिजेंस एजेंसी के कंप्यूटर में वो डेटा मौजूद था, जिससे यह साबित होता था कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रूस किस हद तक और कैसे सेंध लगा सकता है। रूसी एजेंसी ‘फैंसी बियर’ हैकिंग ग्रुप के फर्जी नाम से इस काम को अंजाम दे रही थी। यह ग्रुप सिर्फ अमेरिका में नहीं बल्कि कई दूसरे देशों में भी एक्टिव था।
- जनरल बुदानोव को जेलेंस्की का खास माना जाता है। उन्हें मिलिट्री इंटेलिजेंस की कमान सौंपी गई। इसके बाद से CIA और यूक्रेन के रिश्तों में जबरदस्त सुधार आया। दोनों देशों ने पूरे यूरोप में गहरी पकड़ बनाई। इस बारे में एक सीक्रेट मीटिंग द हेग में हुई थी। इसमें CIA के अलावा ब्रिटेन की MI6 और नीदरलैंड की इंटेलिजेंस एजेंसी के अफसर भी शामिल हुए थे। इस मीटिंग में सीक्रेट प्लान तय हुआ और इसके तहत रूस के खिलाफ सहयोग का ब्लू प्रिंट तैयार किया गया।
अमेरिका के लैंग्ले में सीआईए के ऑफिस में यूक्रेन के इंटेलिजेंस अफसरों की अनगिनत दौरे हुए। यहां इनपुट के आधार पर स्ट्रैटेजी तैयार की गई। (फाइल)
रूस की तैयारियों पर नजर कैसे रखी गई
- मार्च 2021 में रूसी सेना ने धीरे-धीरे यूक्रेन बॉर्डर की तरफ कूच करना शुरू किया। सवाल उठे कि क्या पुतिन यूक्रेन को घेरकर हमला करना चाहते हैं। इसी साल नवंबर में CIA और ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने यूक्रेन को रूस के इरादों के बारे में पुख्ता जानकारी दी। कई कॉल और मैसेज इंटरसेप्ट किए गए और इन्हें यूक्रेन के साथ शेयर किया गया। उसे ये भी बताया गया कि यूक्रेन के कितने और कौन से अफसरों को रूस मार देना चाहता है।
- कहा जाता है कि प्रेसिडेंट जेलेंस्की को इस जानकारी पर भरोसा नहीं था। इसके बाद जनवरी 2022 में CIA चीफ विलियम बर्न्स खुद कीव गए और वहां जेलेंस्की को तमाम बातें बताईं। बर्न्स की कीव विजिट के बाद CIA के एक अफसर को बॉर्डर एरिया से हटाकर उसे वेस्टर्न यूक्रेन की होटल में रखा गया। खास बात ये है कि उस वक्त यूक्रेन में मौजूद CIA का यह अकेला अफसर था।
- 3 मार्च 2022 को CIA ने यूक्रेन को बताया कि रूसी फाइटर जेट्स दो हफ्तों में कहां हमला करने वाले हैं। रूस का इरादा ओडेसा को घेरना था। हालांकि, उसी दौरान वहां तूफान आया और इसके बाद रूस कभी इस शहर पर कब्जा नहीं कर सका। इसके बाद 10 मार्च को रूस ने यूक्रेन के कई शहरों को निशाना बनाया। पहली बार जंग में क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ।
- रूस प्रेसिडेंट जेलेंस्की समेत यूक्रेन के कई आला अफसरों को मार गिराना चाहता था। एक मौके पर तो वो कामयाब भी होने वाला था, लेकिन CIA ने यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी को पुख्ता जानकारी दी और खतरा टल गया। ये बात खुद यूक्रेन की इंटेलिजेंस एजेंसी ने भी मानी है।
रूस एक वक्त ओडेसा पर कब्जा करना चाहता था। यहां बर्फीले तूफान ने उसके इरादों पर पानी फेर दिया। इसके बाद यूक्रेन को इंटेलिजेंस इनपुट मिले तो यहां पुख्ता तैनाती की गई और अब तक यहां कब्जे के रूसी मंसूबे अधूरे हैं। (फाइल)
रूस के मुंह पर थप्पड़
- जंग के शुरुआती महीनों के बाद रूस ने कीव पर हमले बंद कर दिए। इसके बाद यूक्रेन में CIA के स्टेशन चीफ ने यूक्रेन के इंटेलिजेंस चीफ से एक मीटिंग में कहा- हमने रूस के मुंह पर थप्पड़ मारा है। कुछ हफ्ते बाद ही CIA का पूरा स्टाफ कीव लौटा। इन्होंने यूक्रेन की नए सिरे से मदद शुरू की। एक अमेरिकी अफसर ने खुद माना कि इस वक्त यूक्रेन में CIA का काफी स्टाफ मौजूद है।
- CIA के कुछ अफसर सीधे यूक्रेनी सेना के कई बेस पर मौजूद हैं। ये वहां की फौज को बताते हैं कि रूस कहां और कब हमला कर सकता है। इसका एक उदाहरण खेरसॉन इलाका है। यहां शुरुआत में रूस ने कब्जा कर लिया था। बाद में यूक्रेनी फौज ने CIA की मदद से प्लांड अटैक किए और इसके ज्यादातर हिस्से रूस के कब्जे से छुड़ा लिए।
- जुलाई 2022 में यूक्रेन के एजेंट्स को खबर मिली कि रूसी सेना देनप्रो नदी पर बने ब्रिज पर हमला करने वाला है। ब्रिटिश एजेंसी और CIA ने यूक्रेन के साथ इस इसे वेरिफाई किया। फायदा ये हुआ कि रूसी सेना के काफिले को यहां पहुंचने से पहले ही मिसाइलों का सामना करना पड़ा और वो लौट गई। जर्मनी का एंटीएयरक्राफ्ट सिस्टम यूक्रेन को काफी हद तक हवाई हमलों से बचा रहा है।
- कैमिकल अटैक से बचने के लिए एयर फिल्टरेशन सिस्टम भी यूक्रेन की बॉर्डर पर इंस्टॉल किया गया है। इतना ही नहीं, अगर रूसी हमलों में यूक्रेन का पावर ग्रिड ठप होता है तो विकल्प के तौर पर पावर बैकअप सिस्टम मौजूद है।
अब यूक्रेन के कुछ इंटेलिजेंस अफसर CIA से एक सवाल करते हैं- आपकी संसद में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी यूक्रेन को मिलने वाली मदद में कमी की मांग कर रही है। क्या CIA हमें छोड़कर चली जाएगी? क्योंकि, आप अफगानिस्तान में ये काम कर चुके हैं। (फाइल)
अब सवाल क्या
- 24 फरवरी 2024 से इस जंग का तीसरा साल शुरू हो चुका है। अब यूक्रेन के कुछ इंटेलिजेंस अफसर CIA के अपने सहयोगियों से एक सवाल करते हैं। आपकी संसद में विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी यूक्रेन को मिलने वाली मदद में कमी की मांग कर रही है। क्या CIA हमें छोड़कर चली जाएगी? क्योंकि, आप अफगानिस्तान में ये काम कर चुके हैं। ऐसे में क्या गारंटी है कि यूक्रेन के साथ ऐसा नहीं होगा।
- पिछले हफ्ते CIA चीफ बर्न्स कीव गए थे। इस बारे में इसी एजेंसी के एक अफसर कहते हैं- हमने कई साल तक यूक्रेन की मदद की है और हम अब भी वादा कर रहे हैं कि यह सपोर्ट जारी रहेगा। हमारे चीफ यही बताने कीव गए थे।
- CIA और यूक्रेनी इंटेलिजेंस एजेंसी ने रूस के कम्युनिकेशन्स को इंटरसेप्ट करने के लिए दो नए और सीक्रेट बेस बनाए हैं। 12 फॉरवर्ड पोस्ट्स पहले ही एक्टिव और ऑपरेशनल हैं। यूक्रेनी इंटेलिजेंस जंग शुरू होने के बाद से अब तक की सबसे ज्यादा सूचनाएं इन बेस को भेज रही है। यूक्रेन के जनरल वोरेत्सकी कहते हैं- ऐसा इंटेलिजेंस इनपुट आपको और कहीं से नहीं मिल सकता।
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