Famous filmmaker Shyam Benegal is no more, know intresting fact about director | श्याम बेनेगल नहीं रहे- किसानों से चंदा लेकर बनाई मंथन: PM मोदी और शेख हसीना के कहने पर आखिरी फिल्म डायरेक्ट की

9 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन, आशीष तिवारी और अमित कर्ण

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मशहूर फिल्ममेकर, डायरेक्टर और लेखक श्याम बेनेगल का 23 दिसंबर को निधन हो गया। 90 साल के फिल्ममेकर श्याम बेनेगल ने वॉकहार्ट अस्पताल में शाम 6:38 बजे आखिरी सांस ली, आज उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

8 नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड रखने वाले श्याम बेनेगल को मंथन, मंडी, आरोहन, भूमिका, जुबैदा जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। वो न केवल पैरेलल सिनेमा के जनक कहलाए बल्कि उनकी बनाई फिल्म मंथन, ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई थी। हालांकि ये बात कम लोग ही जानते हैं कि ये फिल्म 5 लाख किसानों से 2-2 रुपया चंदा लेकर बनाई गई थी, जिसे देखने के लिए लोग गांव-गांव से ट्रकों में भरकर शहर पहुंचते थे।

अमरीश पुरी से लेकर स्मिता पाटिल तक, श्याम बेनेगल ने कई बेहतरीन कलाकारों का सिनेमा से परिचय करवाया। वहीं उनकी आखिरी फिल्म 2023 की मुजीबः द मेकिंग ऑफ ए नेशन रही, जो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख हसीना के कहने पर बनाई। ये फिल्म कई कारणों से विवादित रही, लेकिन खास बात ये रही कि ये अपनी तरह की इकलौती फिल्म है, जिसे दो देशों ने मिलकर प्रोड्यूस किया।

श्याम बेनेगल के निधन पर दलीप ताहिल, ईला अरुण, शाम रावत जैसे कई कलाकारों ने उनसे जुड़े अहम किस्से शेयर किए-

भारत की पहली फिल्म जो चंदा लेकर बनी, 5 लाख किसानों ने दिया था चंदा

श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी फिल्म मंथन (1976) ने साल 1977 में बेस्ट नेशनल फिल्म का अवॉर्ड जीता था। उस साल इस फिल्म को ऑस्कर भेजा गया था। ये भारत की पहली फिल्म थी, जिसे चंदा लेकर बनाया गया था।

फिल्म मंथन को बेस्ट फीचर फिल्म और बेस्ट स्क्रीनप्ले के 2 नेशनल अवॉर्ड मिले थे।

फिल्म मंथन को बेस्ट फीचर फिल्म और बेस्ट स्क्रीनप्ले के 2 नेशनल अवॉर्ड मिले थे।

दरअसल, 1976 की ये फिल्म श्वेत क्रांति (दुग्ध क्रांति) पर बनी थी। फिल्म के सह-लेखक डॉक्टर वर्गीज कुरियन थे। 1970 में वर्गीज ने ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत की थी, जिससे भारत में श्वेत क्रांति आई और भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना। ये देखकर श्याम बेनेगल ने इस पर फिल्म बनाने का फैसला किया। मसाला फिल्मों के दौर में ऐसी कहानी पर कोई प्रोड्यूसर पैसे लगाने को राजी नहीं था।

ऐसे में सह-लेखक वर्गीज ने गांव वालों से मदद मांगी। उन्होंने गांव की सहकारी समिति से मदद मांगी, जिससे 5 लाख किसान जुड़े थे। हर किसान ने फिल्म के लिए 2-2 रुपए चंदा दिया, जिससे करीब 10 लाख रुपए जमा हुए। इसी रकम से फिल्म मंथन बनाई गई।

स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह, गिरीश कर्नाड और कुलभूषण खरबंदा ने फिल्म में अहम किरदार निभाए थे। इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म और बेस्ट स्क्रीनप्ले के 2 नेशनल अवॉर्ड मिले थे। फिल्म को उस साल बेस्ट फीचर फिल्म कैटेगरी में ऑस्कर में नॉमिनेट किया गया था।

कांस फिल्म फेस्टिवल 2024 में फिल्म मंथन की स्क्रीनिंग रखी गई थी। फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन मिला था।

कांस फिल्म फेस्टिवल 2024 में फिल्म मंथन की स्क्रीनिंग रखी गई थी। फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन मिला था।

श्याम बेनेगल की नजर पड़ी तो हीरोइन बनीं स्मिता पाटिल

एक समय स्मिता पाटिल न्यूज रीडर हुआ करती थीं। एक रोज वो फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में एंकरिंग करने पहुंची थीं, जहां उस समय श्याम बेनेगल भी मौजूद थे। श्याम बेनेगल को स्मिता पाटिल इतनी पसंद आईं कि उन्होंने तुरंत उन्हें अपनी फिल्म चरणदास चोर में साइन कर लिया। इस तरह स्मिता ने इस फिल्म से साल 1975 में एक्टिंग करियर की शुरुआत की।

इसके बाद श्याम बेनेगल ने स्मिता पाटिल को साल 1976 की फिल्म मंथन में कास्ट किया, जो उनके करियर के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुई। स्मिता पाटिल को श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी 1977 की फिल्म भूमिका के लिए पहला बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल अवॉर्ड भी मिला था।

श्याम बेनेगल के साथ स्मिता पाटिल।

श्याम बेनेगल के साथ स्मिता पाटिल।

कभी एजेंट थे अमरीश पुरी, श्याम बेनेगल ने बनाया हिंदी सिनेमा का विलेन

हिंदी सिनेमा के सबसे खतरनाक विलेन कहे जाने वाले अमरीश पुरी एक समय में इंश्योरेंस एजेंट हुआ करते थे, उन्हें फिल्मों में लाने का क्रेडिट श्याम बेनेगल को ही दिया जाता है। दरअसल, बतौर इंश्योरेंस एजेंट काम करने के साथ-साथ अमरीश पुरी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किया करते थे। वो सत्यदेव दुबे के थिएटर ग्रुप से भी जुड़े थे, जहां उनकी श्याम बेनेगल से मुलाकात हुई थी।

श्याम बेनेगल, अमरीश पुरी की आवाज को इस कदर पसंद करने लगे कि जब उन्हें फिल्म अंकुर बनाते हुए एक एक्टर की आवाज बदलनी पड़ी तो उन्हें सबसे पहले अमरीश पुरी का ख्याल आया।

डबिंग के दौरान ही वो अमरीश पुरी का टैलेंट भांप गए। ऐसे में जब उन्होंने अगली फिल्म निशांत बनाई तो उसमें अमरीश पुरी को विलेन का रोल दिया। इस तरह अमरीश पुरी ने साल 1975 की फिल्म निशांत से बतौर विलेन अपने करियर की दूसरी पारी शुरू की और मशहूर हुए।

फिल्म निशांत में अमरीश पुरी के साथ शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल अहम किरदारों में थे।

फिल्म निशांत में अमरीश पुरी के साथ शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल अहम किरदारों में थे।

बाल काटने की शर्त पर दिया दलीप ताहिल को काम

दलीप ताहिल ने दैनिक भास्कर को बताया कि उनकी पहली फिल्म अंकुर में मैंने काम किया था। मैं मुंबई में एक स्टेज प्ले कर रहा था। श्याम बाबू मेरे पास आए और कहा, कहा अगर हेयरकट करोगे, तो तुम्हारे लिए रोल है मेरे पास। मैं पहली फिल्म बना रहा हूं अंकुर उसमें काम है। अगर करना है तो हैदराबाद आ जाना।

इस तरह दलीप ताहिल का फिल्मों से नाता जुड़ा और उन्होंने 1974 की फिल्म अंकुर से एक्टिंग करियर की शुरुआत की। इस फिल्म को 3 नेशनल अवॉर्ड मिले थे।

दलीप ताहिल ने श्याम बेनेगल की टेलीविजन मिनी सीरीज संविधान (2014) में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका निभाई थी।

दलीप ताहिल ने श्याम बेनेगल की टेलीविजन मिनी सीरीज संविधान (2014) में पंडित जवाहरलाल नेहरू की भूमिका निभाई थी।

ईला अरुण बोलीं- वो हमेशा कहते थे कि कभी ये मत पूछना मेरा शॉट कब आएगा

श्याम बेनेगल के निधन की खबर सामने आने के बाद ईला अरुण ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा, वो हम सबके लिए पिता जैसे थे, खासकर मेरे लिए। उन्होंने न सिर्फ मेरा सिनेमा से परिचय करवाया, बल्कि मुझ पर भरोसा भी किया। ये पैरेलल सिनेमा का अंत है।

उन्होंने भारतीय सिनेमा को बहुत कुछ दिया। उनकी ये बात बहुत याद आएगी कि वो कहते थे कि जब भी शूटिंग में रहो कभी ये मत पूछना कि मेरा शॉट कब आएगा क्योंकि फिल्ममेकिंग के कई रूप हैं कभी भी रेस्टलेस मत रहो। आपको फिल्म में रखा है तो आपका यूज होगा।

हमेशा ऐसा होता था कि सूर्यास्त के बाद ही मेरा नंबर आता था और मैं उनसे कहती थी कि मेरा नंबर तब क्यों आता है जब सब जल्दी-जल्दी करना पड़ता है। बताते चलें कि सिंगिंग में पहचान बनाने के बाद ईला अरुण ने श्याम बेनेगल की फिल्म मंडी से एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। ईला, बेनेगल की साल 2008 में रिलीज हुई वेल डन अब्बा में भी नजर आई थीं।

श्याम बेनेगल के साथ ईला अरुण।

श्याम बेनेगल के साथ ईला अरुण।

शेख हसीना के कहने पर बनाई आखिरी फिल्म मुजीब विवादों में रही

श्याम बेनेगल के निर्देशन में बनी आखिरी फिल्म मुजीबः द मेकिंग ऑफ ए नेशन विवादों में रही थी। ये फिल्म बांग्लादेश के सबसे बड़े नेता मुजीबुर्रहमान पर बनी थी। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों चाहते थे कि इस फिल्म को श्याम बेनेगल ही डायरेक्ट करें। इसी के साथ श्याम बेनेगल ऐसे डायरेक्टर बने, जिनकी किसी फिल्म को दो देशों ने प्रोड्यूस किया हो।

इस बारे में दैनिक भास्कर के बातचीत में श्याम बेनेगल के करीबी रहे शाम रावत ने बताया- मैं पिछले 24 सालों से श्याम बाबू के साथ था। खासतौर पर जुबैदा पर मैं उनसे जुड़ा। श्याम बाबू ने अंकुर, मंथन जैसी फिल्मों से पैरेलल सिनेमा को क्रिएट किया। हिंदी फिल्मों के इतिहास में मंथन से वह पहली बार क्राउड फंडिंग का कॉन्सेप्ट भी लेकर आए।

मुजीब उनकी आखिरी फिल्म थी वह बांग्लादेश के सबसे बड़े नेता शेख मुजीबुर्रहमान पर बेस्ड थी। उसे श्याम बाबू ही बनाएं, ऐसा शेख हसीना और हमारे पीएम मोदी जी दोनों चाहते थे। वह फिल्म कोरोना काल और लॉकडाउन के पीरियड में बनाई गई। उस फिल्म से श्याम बाबू पहले ऐसे डायरेक्टर बन गए, जिनकी किसी फिल्म को दो देशों की सरकारों ने प्रोड्यूस किया।

वह फिल्म 70 करोड़ के बजट में बनाई गई। दरअसल श्याम बाबू ने साल 2004 में सचिन खेडेकर जी को लेकर ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस : ए फॉरगॉटेन हीरो’ फिल्म बनाई थी, जो शेख हसीना जी को बहुत पसंद आई थी। ऐसे में उसके तकरीबन 20 साल बाद, जब मुजीब प्लान की गई तो शेख हसीना ने श्याम बाबू से ही वह फिल्म डायरेक्टर करवाने की सोची।

उस फिल्म के दौरान मुझे और कई क्रू मेंबर्स को कोविड हुआ, मगर श्याम बाबू मजबूत इच्छा शक्ति के रहे। उन्हें तो सेट पर मास्क लगाने में भी बड़ी अजीब सी कोफ्त होती थी। कभी-कभार वह बीमार हुए, मगर उन्होंने कभी छुट्टी नहीं ली। पूरी फिल्म उन्होंने जिम्मेदारी के साथ बनाई और दोनों सरकारों के सुपुर्द किया।

14 दिसंबर को मनाया 90वां जन्मदिन

शाम रावत ने आगे बताया, पिछले साल से जरूर उनकी तबीयत जरा नासाज हुई। वह डायलिसिस पर चले गए तब से उनका लगातार डायलिसिस हो रहा था। उन्होंने रविवार की शाम 6:38 बजे 23 दिसंबर को मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। 14 दिसंबर को अपने 90 वाले जन्मदिन पर भी वह सिर्फ 15 मिनट के लिए फंक्शन में आए। उनके दोस्तों ने उनके जन्मदिन का आयोजन किया था।

श्याम बेनेगल के साथ शाम रावत।

श्याम बेनेगल के साथ शाम रावत।

श्याम बाबू का कॉन्ट्रिब्यूशन बहुत बड़ा है। दिलचस्प बात रही कि उन्होंने कांग्रेस के कार्यकाल में मंथन जैसी फिल्म बनाई, तो उसके कुछ दशकों बाद बीजेपी की गवर्नमेंट में मुजीब नामक फिल्म बना दी। वह चुनिंदा काम करते थे, मगर बहुत व्यस्त रहते थे। उन्होंने जब अपने दौर में डॉक्यूमेंट्री सीरीज भारत एक खोज बनाई थी तो वह 3 साल तक शूट होती रही थी।

वह बहुत बड़े डायरेक्टर थे, मगर उसका बेजा फायदा नहीं उठाते थे कि प्रोड्यूसर से बड़ा बजट लेकर कुछ भी बना लिया जाए। कास्टिंग बहुत अच्छी रहती थी। दलीप ताहिल को उन्होंने सबसे खूबसूरत पंडित नेहरू बनाया था। उतना ग्लैमरस नेहरू मैंने आज तक कभी नहीं देखा। अब तक जिस भी सीरीज में नेहरू जी जिस किसी कलाकार को बनाया जा रहा है वह तो बड़ा बेचारा और गरीब सा नजर आता है।

फिल्ममेकर श्याम बेनेगल का निधन:90 की उम्र में अंतिम सांस ली; पिता के कैमरे से पहली फिल्म बनाई थी, 8 बार जीता नेशनल फिल्म अवॉर्ड

प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, पटकथा लेखक और निर्माता श्याम बेनेगल का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया है। उन्होंने मुंबई सेंट्रल के वोकहार्ट अस्पताल में शाम 6:38 बजे आखिरी सांस ली। उनकी बेटी पिया बेनेगल ने बताया, ‘वे लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे।’ श्याम बेनेगल के नाम सबसे ज्यादा 8 फिल्मों के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड है। पूरी खबर पढ़िए…

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