नई दिल्ली. वॉट्सऐप तो जैसे अब हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है. कभी केवल टेक्स्ट के लिए इस्तेमाल होने वाला यह प्लेटफॉर्म अब कॉलिंग और पेमेंट्स के लिए भी यूज किया जाता है. दूसरी बड़ी बात ये है कि यह प्लेटफ़ॉर्म बिलकुल फ्री है, और हमेशा फ्री रहने का वादा भी करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कहने मात्र को फ्री है, हकीकत में हर यूजर को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. यदि आपको इस बारे मालूम नहीं है तो आपको कल आया भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) का फैसला पढ़ना चाहिए. इस फैसले की बारीकियों को समझना चाहिए.
दरअसल, सीसीआई ने मेटा (वॉट्सऐप की पेरेंट कंपनी) पर 213.14 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. आरोप है कि उसने अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग किया है. मार्क ज़करबर्ग की कंपनी मेटा ने हालांकि इस संबंध में आगे अपील करने की योजना बनाई है. मेटा के एक प्रतिनिधि ने मनीकंट्रोल से कहा कि “हम सीसीआई के निर्णय से असहमत हैं… हम आगे बढ़ने का ऐसा रास्ता खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो हमें लोगों और बिजनेसेज़ को वह अनुभव प्रदान करना जारी रखने की अनुमति दे, जिनकी वे हमसे अपेक्षा करते हैं.”
चलिए बात करते हैं उस पॉलिसी के बारे में, जिसे वॉट्सऐप ने 8 फरवरी 2021 से लागू किया था. उस पॉलिसी में ऐसा क्या था, जिसकी वजह से यूजर्स की प्राइवेसी को खतरा बढ़ गया था. यूजर्स की चिंताओं के संदर्भ में पूरी पॉलिसी का निचोड़ कुछ इस प्रकार है-
नई पॉलिसी में यूज़र्स को यह मजबूरी थी कि वे अपने डेटा को फेसबुक (मेटा) के साथ शेयर करने की शर्त को स्वीकार करें, वरना वॉट्सऐप का इस्तेमाल बंद करना पड़ेगा. पहले की पॉलिसी (2016) में ऐसा करना ऑप्शनल था, मतलब यूजर चाहें तो उसे स्वीकार करें या न करें. वॉट्सऐप की “मान लो, या छोड़ दो” पॉलिसी ने यूजर्स की सहमति के अधिकार को कम कर दिया.
भारत जैसे देशों में, जहां डेटा प्रोटेक्शन कानून बहुत सख्त नहीं हैं, इस पॉलिसी ने यूज़र्स को अधिक असुरक्षित बना दिया. बिज़नेस अकाउंट्स पर की गई चैट्स को पूरी तरह से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड नहीं रखा जाएगा. अगर ये चैट्स मेटा के सर्वर पर होस्ट की जाती हैं, तो डेटा का दुरुपयोग या चोरी होने का खतरा बढ़ जाता है.
यूरोप में डेटा सुरक्षा कानून (GDPR) की वजह से वहां के यूजर्स को कुछ राहत मिली थी, लेकिन भारत और अन्य देशों में इसका सख्ती से पालन नहीं हुआ. मतलब अलग-अलग क्षेत्रों में पॉलिसी में समानता नहीं थी. ऐसे में लोगों का भरोसा वॉट्सऐप पर उठने लगा.
बहुत से यूजर्स को तो यह गलतफहमी भी हुई कि उनके निजी चैट्स भी वॉट्सऐप के साथ शेयर होंगे. इसके कारण लाखों लोगों ने वॉट्सऐप छोड़कर सिग्नच (Signal) और टेलीग्राम (Telegram) जैसे ऐप्स पर शिफ्ट होना बेहतर समझा. भारत में टेलीग्राम का प्रचलन बढ़ा.
क्या सच में फ्री है वॉट्सऐप?
वॉट्सऐप हालांकि अपने यूजर्स के डेटा को सुरक्षित रखने का दावा किया है, लेकिन इसके कुछ तरीके हैं, जिनसे वह डेटा का उपयोग करके कमाई भी करता है. वॉट्सऐप बिजनेस एप्लीकेशन के माध्यम से कंपनियां कस्टमर से कम्युनिकेट करती हैं. इस प्रक्रिया में ग्राहक के डेटा का उपयोग किया जा सकता है.
हालांकि वॉट्सऐप सीधे विज्ञापन नहीं दिखाता, लेकिन इसकी मूल कंपनी मेटा (फेसबुक) यूजर्स के डेटा का उपयोग करके विज्ञापन दिखाने के लिए टार्गेटिंग करती है. मतलब ये कि आप वॉट्सऐप पर किसी से फर्नीचर खरीदने के बारे में बात करते हैं तो इस डेटा को पढ़कर कंपनी की तरफ से आपको फर्नीचर के ही विज्ञापन दिखेंगे. ये विज्ञापन वॉट्सऐप पर नहीं आते, मगर आपको फेसबुक और इसके अन्य प्लेटफॉर्म्स पर दिख सकते हैं. इसका अभिप्राय यह है कि कंपनी दरअसल, आपके डेटा का इस्तेमाल करके ‘कमाई’ कर रही है.
सीसीआई के फैसले में और क्या-क्या?
CCI imposes a monetary penalty of ₹213.14 crore on Meta for 2021 Privacy Policy Update, along with a cease-and-desist direction and specific behavioral remedies. pic.twitter.com/JUNCHP9oF0
— CCI (@CCI_India) November 18, 2024
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