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आसिफ दुर्रानी साल 2016 से ईरान में पाकिस्तान के राजदूत के तौर पर काम कर रहे हैं।
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तैनात किए अपने स्पेशल डिप्लोमेट आसिफ दुर्रानी को निकाला दिया है। पाकिस्तानी मीडिया हाउस डॉन के मुताबिक PAK फौज दुर्रानी के काम से खुश नहीं थी। वहीं दुर्रानी के मुताबिक, अफगानिस्तान के लिए नीतियों को लेकर वे जो भी सलाह देते थे, उसे विदेश मंत्रालय लगातार नजरअंदाज कर रहा था।
पाकिस्तान ने जून 2020 में अफगानिस्तान के लिए स्पेशल डिप्लोमैट भेजने की शुरुआत की थी। इनका काम तालिबान शासन और अफगानिस्तान में मौजूद दूसरे देशों के साथ मिलकर काम करना था। दरअसल तब अफगानिस्तान में नाटो देशों की सेना तैनात थी।
2020 में अमेरिका, तालिबान के बीच दोहा में एक समझौता हुआ था। समझौते के तहत अमेरिका के नेतृत्व में नाटो अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने वाला था। बदले में तालिबान ने वादा किया था कि वह आतंकी संगठन अल-कायदा को बढ़ने से रोकेगा और अफगान सरकार के साथ मिलकर काम करेगा।
इस समझौते के बाद ही पाकिस्तान से अपने खास डिप्लोमैट को अफगानिस्तान भेजा था। वहीं आसिफ दुर्रानी मई 2023 से यह पद संभाल रहे थे। इनका काम अफगानिस्तान से ऑपरेट होने वाले आतंकी संगठन TTP की वजह से खराब हुए PAK-अफगान संबंधों को बेहतर करना था।
दुर्रानी को अफगानिस्तान में आतंकी संगठन TTP से खराब हुए रिश्तों को सुधारने भेजा गया था।
ईरान में पाकिस्तान के राजदूत हैं दुर्रानी दुर्रानी फिलहाल ईरान में पाकिस्तान के राजूदत भी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 32 साल के अपने करियर में दुर्रानी को अकसर पाकिस्तान के विदेश विभाग में बाहरी व्यक्ति के तौर पर देखा जाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि वह सीधे मिलिट्री को रिपोर्ट करते हैं। ऐसे में जब उनकी नियुक्ति अफगानिस्तान में हुई तो उन्हें विदेश मंत्रालय के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कत आई।
दुर्रानी ने जुलाई में तालिबानी डेलिगेशन से कतर की राजधानी दोहा में मुलाकात की थी। तालिबान ने इस बैठक को सकारात्मक बताया था। दुर्रानी पाकिस्तान में गैरकानूनी तरह से रह रहे अफगान नागरिकों को निकालने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि इससे पाकिस्तान को लेकर तालिबान का रवैया सख्त हो जाएगा। साथ ही सीमा की सुरक्षा के लिए भी सही नहीं है।
अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आने के बाद पाकिस्तान में आतंक बढ़ा अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में आंतकी संगठन TTP को मजबूती मिली है। आतंकवाद की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान में अब तक जितने भी आतंकी संगठन हैं, उनमें तहरीक-ए-तालिबान (TTP) पाकिस्तान सबसे खतरनाक माना जाता है।
दरअसल, पाकिस्तानी तालिबान की जड़ें जमना उसी वक्त शुरू हो गई थीं, जब 2002 में अमेरिकी कार्रवाई के बाद अफगानिस्तान से भागकर कई आतंकी पाकिस्तान के कबाइली इलाकों में छिपे थे। इन आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो स्वात घाटी में पाकिस्तानी आर्मी की मुखालफत होने लगी। कबाइली इलाकों में कई विद्रोही गुट पनपने लगे।
ऐसे में दिसंबर 2007 को बेतुल्लाह महसूद की अगुआई में 13 गुटों ने एक तहरीक यानी अभियान में शामिल होने का फैसला किया, लिहाजा संगठन का नाम तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान रखा गया। TTP पाकिस्तान में अब तक कई बड़े हमले कर चुका है।
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