2 मिनट पहले
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तस्वीर 2023 की है, जब यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की नाटो समिट में शामिल हुए थे।
दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो के हेड जेन्स स्टॉलटनबर्ग ने कहा है कि नाटो को यूक्रेन पर रूस के हमले के बारे में पहले ही पता था। नाटो हेड ने कहा, “हमारे पास रूस के प्लान से जुड़ी खुफिया जानकारी मौजूद थीं, लेकिन फिर भी यह हमला चौंकाने वाला था।”
स्टॉलटनबर्ग ने कहा कि नाटो यूक्रेन पर रूस के हमले को रोकने के लिए और कोशिश कर सकता था। नॉर्वे के प्रधानमंत्री रह चुके स्टॉलटनबर्ग ने कहा, “अगर नाटो शुरुआत से यूक्रेन को हथियार देने के मामले में हिचकिचाता नहीं तो शायद जंग नहीं छिड़ती। हम यूक्रेन को स्नाइपर राइफल देने पर फैसला नहीं कर पा रहे थे।”
नाटो हेड ने बताया कि जंग शुरू होने के बाद से हम लगातार यूक्रेन को हथियार सप्लाई कर रहे हैं। लेकिन अगर हमने यह पहले कर दिया होता तो जंग से बचा जा सकता था। तब अमेरिका यूक्रेन को एंटी-टैंक मिसाइल नहीं देना चाहता था क्योंकि उन्हें डर था कि रूस इससे भड़क जाएगा।
नाटो चीफ जेन्स स्टेलटनबर्ग ने कहा है कि यूक्रेन जंग को सिर्फ समझौते के जरिए ही रोका जा सकता है।
‘जब यूक्रेन पर हमला हुआ, वह कार्यकाल का सबसे खराब दिन’
स्टॉलटनबर्ग ने बताया कि जब 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, वो बतौर नाटो हेड उनके कार्यकाल का सबसे बुरा दिन था। यूक्रेन जंग को सिर्फ बातचीत और समझौते के जरिए रोका जा सकता है। इसके लिए रूस से बात करना जरूरी है, लेकिन इस दौरान यूक्रेन के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
2014 में नाटो के सेक्रेटरी जनरल बने स्टॉलटनबर्ग का कार्यकाल इस साल अक्टूबर में खत्म हो जाएगा। उनकी जगह नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री मार्क रूट नाटो के हेड बनेंगे। नाटो में सेक्रेटरी जनरल अंतरराष्ट्रीय सिविल सर्वेंट होता है।
वह नाटो की सभी महत्वपूर्ण समितियों का अध्यक्ष होता है। साथ ही संगठन के अहम निर्णयों में उसकी भूमिका होती है। इसके अलावा संगठन के प्रवक्ता और अंतरराष्ट्रीय स्टाफ के प्रमुख की जिम्मदारी भी उसके पास होती है।
नाटो में शामिल होना चाहता है यूक्रेन
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की बार-बार नाटो में शामिल होने की मांग करते रहते हैं। वे कई बार कह चुके हैं कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने के लिए तैयार है। वे सदस्य देशों से इस पर बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि जब सिक्योरिटी की गारंटी नहीं होती तो वहां केवल जंग की गारंटी होती है।
दरअसल, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका जंग के दौरान यूक्रेन को नाटो संगठन में शामिल करने को तैयार नहीं है। इन देशों को चिंता है कि ऐसा करने पर रूस की नाराजगी और बढ़ेगी। NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।
रूस-यूक्रेन विवाद की वजह बना NATO
- 1991 में सोवियत संघ के 15 हिस्सों में टूटने के बाद NATO ने खासतौर पर यूरोप और सोवियत संघ का हिस्सा रहे देशों के बीच तेजी से प्रसार किया।
- 2004 में NATO से सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जुड़े, ये तीनों ही देश रूस के सीमावर्ती देश हैं।
- पोलैंड (1999), रोमानिया (2004) और बुल्गारिया (2004) जैसे यूरोपीय देश भी NATO के सदस्य बन चुके हैं। ये सभी देश रूस के आसपास हैं। इनके और रूस के बीच सिर्फ यूक्रेन पड़ता है।
- यूक्रेन कई साल से NATO से जुड़ने की कोशिश करता रहा है। उसकी हालिया कोशिश की वजह से ही रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है।
- यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन NATO से जुड़ता है तो NATO सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी।
- यूक्रेन के NATO से जुड़ने पर रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी NATO से नहीं जुड़ेगा।
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