इस्लामाबाद4 मिनट पहले
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मुमताज जरा बलोच ने कहा कि जूनागढ़ के मुद्दे पर पाकिस्तान का नीतिगत बयान हमेशा स्पष्ट रहा है।
पाकिस्तान विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने गुरुवार को आरोप लगाया कि भारत ने जूनागढ़ पर अवैध कब्जा कर रखा है। जूनागढ़ गुजरात का एक शहर है जिसे जनमत संग्रह के तहत 1948 में भारत में मिला लिया गया था।
साप्ताहिक ब्रीफिंक के दौरान प्रवक्ता बलूच ने कहा कि जूनागढ़ के बारे में पाकिस्तान का रूख हमेशा से साफ है। जूनागढ़ ऐतिहासिक और कानूनी तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा है। इस पर भारत का कब्जा संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन है।
प्रवक्ता बलूच ने कहा कि पाकिस्तान, जूनागढ़ को जम्मू-कश्मीर की तरह अधूरा एजेंडा मानता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हमेशा राजनीतिक और कूटनीतिक मंचों पर जूनागढ़ मुद्दे को उठाता रहा है और इसका शांतिपूर्ण समाधान चाहता है।
जहरा बलोच ने दावा करते हुए कहा कि 1948 में जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिला लिया गया था।
पाकिस्तान ने जूनागढ़ को अपने नक्शे में दिखाया
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ को अपना हिस्सा बताया है। अगस्त 2020 में भी पाकिस्तान ने जब नया नक्शा जारी किया था तो जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा बताया था। इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि पाकिस्तान की यह कोशिश फिजूल है।
जूनागढ़ को पाकिस्तान अपना हिस्सा क्यों मानता है
भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, तब जूनागढ़ के विलय का मामला उलझा हुआ था। दरअसल अंग्रेजी हुकूमत ने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 लागू किया था। इसके तहत लैप्स ऑफ पैरामाउंसी ऑप्शन दिया गया था। इससे राजा अपनी रियासत को भारत या पाकिस्तान से जोड़ सकते थे या फिर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बना सकते थे।
15 अगस्त 1947 को जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान जाने का ऐलान कर दिया था। इसके लिए उन्होंने जनता की राय तक नहीं ली। जूनागढ़ के दीवान शाहनवाज भुट्टो की इसमें मुख्य भूमिका रही थी। जूनागढ़ में 80% से 85% आबादी हिंदू थी और शासक मुस्लिम थे।
इतिहासकार और महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी ने अपनी किताब- ‘पटेल अ लाइफ’ में लिखा है कि जब जिन्ना ने अपने ही धार्मिक आधार पर बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ जाकर जूनागढ़ और हैदराबाद को पाकिस्तान में जोड़ने की कोशिश की तो पटेल कश्मीर में दिलचस्पी लेने लगे।
यदि जिन्ना बिना किसी परेशानी के जूनागढ़ और हैदराबाद को हिंदुस्तान में आने देते तो कश्मीर को लेकर विवाद ही नहीं होता और वह पाकिस्तान में चला जाता। जिन्ना ने इस डील को ठुकरा दिया था। जूनागढ़ के सियासी हालात ऐसे थे कि लोग भी उग्र हो रहे थे।
जूनागढ़ में अस्थायी रूप से आरझी हकूमत का राज भी रहा था।
जूनागढ़ में तब लोगों ने सत्ता अपने हाथ में ली और आरझी हुकूमत बनाई। इस लोकसेना के सरसेनापति रतुभाई अदाणी ने कहा था कि सरदार पटेल चाहते हैं कि जूनागढ़ के लोगों को ये जंग लड़नी चाहिए। अगर जूनागढ़ के लोग और उनके प्रतिनिधि आवाज उठाएंगे तो ही जूनागढ़ भारत में रह पाएगा। तब 23 सितंबर 1947 को आरझी हुकूमत बनाने का फैसला हुआ और 25 सितंबर को घोषणापत्र बना।
भुट्टो को लगा कि उसे पाकिस्तान से कोई मदद नहीं मिलने वाली है। इसलिए उन्होंने 8 नवंबर को दरख्वास्त दी कि आरझी हुकूमत नहीं बल्कि भारत सरकार जूनागढ़ का कब्जा ले लें। इसी आधार पर 9 नवंबर 1947 को भारत ने जूनागढ़ को नियंत्रण में लिया।
इसके बाद जूनागढ़ का स्वतंत्रता दिवस 9 नवंबर को मनाया जाता है। सरदार पटेल की नाराजगी के बावजूद जूनागढ़ में 20 फरवरी 1948 को जनमत संग्रह कराया गया। 2,01,457 रजिस्टर्ड वोटर्स में से 1,90,870 लोगों ने वोट दिया। इसमें पाकिस्तान के लिए सिर्फ 91 मत मिले थे।
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