लंदन2 मिनट पहलेलेखक: आदर्श जाेशी
- कॉपी लिंक
फाइल फोटो
किसी भी मामले में सबूत के अलावा यदि कोई सबसे अहम भूमिका निभाता है तो वह होता है- गवाह। हालांकि, अक्सर सुरक्षा और भय के कारण गवाह पुलिस और कोर्ट के सामने आकर गवाही नहीं देते। इस कारण मुजरिम क्राइम करने के बाद भी बच जाता है।
ब्रिटेन में गवाही सिर्फ एक नागरिक कर्तव्य नहीं है बल्कि यदि यहां कोई गवाही देता है तो उसे सरकार से वित्तीय मदद देने की अनूठी व्यवस्था है। जरूरत पड़ने पर सुरक्षा और मुआवजा भी दिया जाता है। यह भारत की न्यायिक व्यवस्था से बहुत अलग है। भारत में गवाहों की भागीदारी नैतिक और नागरिक कर्तव्य पर आधारित है।
ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली में गवाहों का महत्व जांच में पारदर्शिता को बढ़ाता है। जबकि भारत में गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराने की योजना उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। गवाहों को सुरक्षा नाम मात्र की मिलती है। सुरक्षा और प्रोत्साहन नहीं मिलने से गवाह असुरक्षित महसूस करते हैं। इसी कारण वह किसी अपराधी के खिलाफ गवाही देने से झिझकता है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था कई स्तरों पर साक्ष्यों की जांच पर आधारित है।
यह प्रक्रिया काफी लंबी है इस वजह से धीमी है। इस कारण केस का फैसला आने में लंबा समय लगता है। इससे बैकलॉग बढ़ता जाता है। इसके विपरीत, ब्रिटेन में जूरी प्रणाली है, यह न्यायिक प्रक्रिया की लोकतांत्रिक व्यवस्था है। इसके इस्तेमाल से मुकदमों का निपटारा जल्दी होता है और मुकदमों का बैकलाॅग भी नहीं होता। क्राउन कोर्ट ऑफ इंग्लैंड एंड वेल्स के आंकड़ों के अनुसार 2023 में बैकलॉग मात्र 38% था। 62235 मामलों में से 23650 का निस्तारण किया गया। ब्रिटेन की कानूनी व्यवस्था भारत के मुकाबले काफी लचीली है।
दरअसल, ब्रिटेन में कोई लिखित कानून नहीं है। इससे जज किसी भी नई चुनौती पर भी फैसले लेने में सक्षम होते हैं। इसके उलट हमारे यहां लिखित कानून है। हमारे देश के कानून में कोई भी परिवर्तन लाने के लिए विधायी प्रक्रिया की जरूरत होती है। जो काफी लंबी है। जज के सामने नई चुनौती आने पर ज्यादातर मामलों में वह सक्षम नहीं होते हैं।
भारत में गवाहों की सुरक्षा योजना को लेकर काम करने की जरूरत: एक्सपर्ट
एक्सपर्ट कहते हैं कि हमारे यहां गवाहों की सुरक्षा योजना को लेकर काम करने की जरूरत है। जिससे गवाह सुरक्षित और आर्थिक रूप से प्रोत्साहित महसूस कर सकें। भारत ब्रिटेन से इस मामले में सीख सकता है। इसके अलावा जजों की संख्या को बढ़ा कर भी मुकदमों के बैकलॉग को कम किया जा सकता है।
Disclaimer:* The following news is sourced directly from our news feed, and we do not exert control over its content. We cannot be held responsible for the accuracy or validity of any information presented in this news article.
Source link