4 मिनट पहले
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई को रूस के दौरे पर गए थे। जिसके बाद यूक्रेन और अमेरिका ने उनके इस दौरे की आलोचना की थी।
8 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी रूस के दौरे पर पहुंचे। मॉस्को पहुंचने के बाद जब मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से मिले तो, दोनों नेताओं ने एक दूसरे को गले लगाया। इसकी चर्चा पश्चिमी वर्ल्ड और यूक्रेन समेत दुनिया भर में हुई।
अमेरिका ने भी मोदी की रूस यात्रा को लेकर आपत्ति जताई। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कि वो रूस के साथ भारत के संबंधों को लेकर चिंतित है। अमेरिका के NSA ने तो भारत को सलाह तक देते हुए कहा कि, रूस के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए सही दांव नहीं है।
भारत में रूस के राजदूत एरिक गार्सेटी ने यहां तक कह डाला कि भारत को अमेरिका के साथ संबंधों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
3 वजहें जो रूस दौरे की आलोचना का जवाब हैं
मोदी के रूस दौरे का विरोध सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रहा। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे बड़े खूनी हत्यारे को गले लगाना बेहद दुखद है। इससे यूक्रेन में शांति के प्रयासों को झटका लगा है।
ऐसे में इस दौरे को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या भारत से राजनीतिक समीकरणों को समझने में कोई भूल हुई है।
अल जजीरा में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इसका जवाब तीन वजहों में छिपा हुआ है।
ये वजहें हैं – भारत और रूस संबंधों का इतिहास, भारत की जटिल संबंधों को संभालने की क्षमता में विश्वास और इस दांव में कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प सत्ता में वापस आ सकते हैं और रूस के खिलाफ अमेरिका के रूख को नरम कर सकते हैं।
ट्रम्प की वापसी पर दांव खेल रहा भारत
13 जुलाई को अमेरिकी राज्य पेन्सिलवेनिया में एक रैली के दौरान पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर जानलेवा हमला हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस हमले की निंदा करते हुए ट्रम्प के जल्द स्वस्थ होने की कामना की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प को मेरे मित्र ट्रम्प कहकर संबोधित किया।
CNN के मुताबिक इस साल नवंबर में अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प को बढ़त दिख रही है। जून में हुई पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट के बाद 67% लोगों ने ट्रम्प को डिबेट का विजेता माना था। CNN के ही एक पोल में 49% अमेरिकी लोगों ने ट्रम्प को राष्ट्रपति पद की पहली पसंद माना था।
ट्रम्प पर हुए हमले के बाद उनके प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हुई है। जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिल सकता है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रम्प अब तक राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार साबित हुए हैं।
ट्रम्प जीते तो मोदी खुश होंगे, चीन पर होगा अमेरिका का ध्यान
अल जजीरा ने एक भारतीय अधिकारी के हवाले से लिखा कि, ‘अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत लगभग निश्चित लग रही है। अगर ऐसा होता है तो इससे भारतीय प्रधानमंत्री खुश होंगे। विश्लेषकों के मुताबिक ट्रम्प की जीत से भारत के ऊपर रूस से दूरी बनाने का दबाव कम हो जाएगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बानी में पॉलीटिकल साइंस के प्रोफेसर क्रिस्टोफर क्लेरी के मुताबिक ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के दौरान इस बात की परवाह कम होगी कि भारत और रूस के बीच किस प्रकार के संबंध हैं। इसके पीछे की वजह चीन को माना जा रहा है। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में मॉस्को की बजाय, अमेरिका के प्रतिद्वंदी चीन के ऊपर अधिक ध्यान दिया था।
मोदी और ट्रम्प दोनों नेता एक साथ 2019 में हाऊडी मोदी और 2020 में नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम में शिरकत कर चुके हैं।
रूस और अमेरिका से संबंधों के बीच संतुलन
सोवियत काल से ही भारत और रूस के संबंध अच्छे रहे हैं। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी दोनों देशों में करीबी संबंध बने रहे। रूस भारत को कई दशकों से हथियार सप्लाई करता आ रहा है। इनमें मिग और सुखोई जैसे लड़ाकू विमानों से लेकर एस-400 डिफेंस सिस्टम भी शामिल हैं।
यूक्रेन जंग के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात को बढ़ा दिया है। आज रूस भारत का अहम तेल सप्लायर है। हालांकि पश्चिमी देश भारत के रूस से कच्चे तेल के आयात को लेकर आलोचना करते रहे हैं।
अल जजीरा के मुताबिक दूसरी ओर भारत ने पिछले कुछ सालों में पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है। इसकी एक बड़़ी वजह चीन का बढ़ता कद भी है। पिछले कुछ सालों में भारत ने रूस पर हथियारों की निर्भरता कम करने की कोशिश की है। वह अब अमेरिका और यूरोपीय देशों से आधुनिक हथियारों को खरीद रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 सालों में 8 बार अमेरिका और 6 बार रूस का दौरा किया है।
संबंधों को संभालने में सक्षम है भारत
रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास अमेरिका या अन्य देशों के साथ संबंधों में आने वाली समस्यों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन है। प्रोफेसर क्लेरी के मुताबिक मोदी की रूस यात्रा के बाद अमेरिका में कम ही लोगों को इसे लेकर हैरानी हुई होगी।
प्रोफेसर कहते है कि भारत-अमेरिका संबंधों का आधार मजबूत है। ऐसी यात्राओं से उस पर कोई प्रभाव नही पड़ने वाला है। रूस जाने से पहले मोदी ने SCO के शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था।
अल जजीरा से बात करते हुए एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि भारत इस साल के अंत में क्वाड देशों के शिखर सम्मेलन को आयोजित करने की योजना बना रहा है। ये संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग के लिए बनाया गया है। चीन इसे चुनौती के रूप में देखता आया है।
इस साल के अंत में रूस के कजान शहर में BRICS देशों का शिखर सम्मेलन होने वाला है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने मोदी की हालिया रूस यात्रा के दौरान उन्हें इस सम्मेलन के लिए आमंत्रित भी किया है। हालांकि ये देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री मोदी 3 महीनों में दूसरी बार रूस की यात्रा पर जाएंगे या नहीं।
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