वाशिंगटन2 मिनट पहले
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CNN, न्यूयॉर्क टाइम्स, BBC, अलजजीरा और वॉशिंगटन पोस्ट ने ट्रम्प को बहस का विजेता घोषित किया है।
साल 1858…अमेरिका के इलिनॉय राज्य में सीनेट (राज्यसभा) के चुनाव हो रहे थे। रिपब्लिकन पार्टी के अब्राहम लिंकन और नॉर्दन डेमोक्रेट्स के स्टीफन डगलस के बीच मुकाबला था। डगलस जहां भाषण देते लिंकन भी वहां पहुंच जाते।
वे डगलस के भाषणों में कही बातों की खामियां निकालते। लिंकन के यूं पीछा करने से तंग आकर डगलस ने उन्हें बहस की चुनौती दी। मौके के इंतजार में बैठे लिंकन तुंरत तैयार हो गए। इसी की तर्ज पर 102 साल बाद 1960 में पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई।
आज अमेरिका के प्रेसिडेंशियल डिबेट के इतिहास को आगे बढ़ाते हुए डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडेन के बीच 14वीं प्रेसिडेंशियल डिबेट हुई। CNN स्टूडियो में हुई इस बहस के दौरान दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए और निजी हमले किए।
ट्रम्प ने बाइडेन को मंचूरियन कहा। आरोप लगाया कि बाइडेन को चीन से पैसे मिलते हैं। वहीं, राष्ट्रपति ने ट्रम्प को उनके हश मनी मामले पर घेरते हुए कहा, “आपकी पत्नी प्रेग्नेंट थीं और आप पोर्न स्टार से संबंध बना रहे थे।
5 सवालों और 4 किस्सों में पढ़िए कितनी अहम है अमेरिका की प्रेसिडेंशियल डिबेट…
सवाल 1: प्रेसिडेंशियल डिबेट क्या होती है?
जवाब: अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले उम्मीदवारों के बीच अहम मुद्दों पर बहस कराई जाती है। इसके आधार पर वोटर्स उम्मीदवारों को लेकर राय बनाते हैं। इसे प्रेसिडेंशियल डिबेट कहा जाता है।
जिन लोगों ने इस बहस को टीवी पर देखा उन्होंने कैनेडी को बेहतर माना। वहीं, जिन लोगों ने रेडियो पर डिबेट सुनी, उन्होंने निक्सन को विजेता बताया। इसकी वजह ये थी कि निक्सन की विदेश नीति पर गहरी पकड़ थी, वे रेडियो डिबेट्स में भी एक्सपर्ट थे।
निक्सन के खराब प्रदर्शन पर तब उनके रनिंगमेट यानी कि रिपब्लिकन पार्टी के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नाराज हो गए थे। उन्होंने निक्सन को गाली दी और कहा, ‘इस कुत्ते के बच्चे की वजह से हम चुनाव हारेंगे।’
ऐसा ही हुआ। 1960 में निक्सन चुनाव हार गए और कैनेडी जीते। ये डिबेट इतनी लोकप्रिय हुई थी कि इसे अमेरिका के हर तीसरे आदमी ने देखा था।
सवाल 2: डिबेट में जीत-हार के बारे में कैसे पता चलता है?
जवाब: जीत-हार तय करने के 4 पैमाने हैं…
- मीडिया और एक्सपर्ट्स की राय : न्यूज चैनल और पॉलिटिकल एक्सपर्ट डिबेट के बाद राय देते हैं। वे उम्मीदवारों के प्रदर्शन, जवाबों की एक्यूरेसी और बॉडी लैंग्वेज से बताते हैं कि डिबेट कौन जीता।
- ओपिनियन पोल्स: न्यूज चैनल और सर्वे एजेंसियां डिबेट के बाद ओपिनियन पोल कराती हैं, जिसमें दर्शकों की राय पूछी जाती है।
- सोशल मीडिया: सोशल मीडिया भी हार-जीत का फैसला करने में मददगार होता है। यहां पर जनता के रिएक्शन से भी पता चलता है कि किसका पलड़ा भारी रहा।
- वोटिंग इंटेंशन सर्वे: एजेसिंया वोटिंग इंटेंशन सर्वे कराती हैं। लोगों से पूछते हैं कि क्या डिबेट ने उनकी वोटिंग का फैसला बदला है। जो उम्मीदवार ज्यादा लोगों का मन बदलता है वही विजेता होता है।
सवाल 3: अमेरिकी प्रेसिडेंशियल डिबेट्स कहां कराई जाती हैं?
जवाब: 1960 में हुई अमेरिका की पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट को टीवी स्टूडियो में कराया गया था। ये बहस कराने के लिए कोई गवर्नमेंट बॉडी नहीं थी। 4 फेज में हुई डिबेट्स को मीडिया नेटवर्क्स CBS, NBC और ABC ने प्रसारित किया था। इसके बाद लगातार 3 चुनाव (1964, 1968 और 1972) में डिबेट नहीं हुई।
1976 में डिबेट्स का आयोजन फिर शुरू हुआ। हालांकि, ये टीवी स्टूडियो में न होकर कॉलेज, थिएटर और म्यूजिक हॉल जैसी सार्वजनिक जगहों पर होती थी। इसकी कवरेज के लिए पूरे अमेरिका से पत्रकार पहुंचते थे।
1976 से 1984 तक इन डिबेट्स को लीग ऑफ वुमेन वोटर्स (LWV) नाम की एक संस्था ने स्पॉन्सर किया था। 1987 में LWV ने स्पॉन्सरशिप वापस ली तो बहस के लिए ‘कमिशन ऑन प्रेसिडेंशियल डिबेट’ बनाया गया।
इस कमिशन ने 1988 से 2020 तक 9 बहस करवाई। हालांकि, 2020 में इसके तरीकों पर रिपब्लिकन पार्टी ने ऐतराज जताया था। इसके चलते कमिशन ने इस बार बहस से दूरी बना ली।
2024 में 64 साल बाद प्रेसिडेंशियल डिबेट्स की टीवी स्टूडियो में वापसी हुई है। इसका आयोजन CNN और ABC कर रहे हैं।
सवाल 4: बहस के नियम क्या हैं, टॉस से कैसे तय होगा किस तरफ खड़े होंगे उम्मीदवार?
जवाब: 1960 से 1988 तक कैंडिडेट्स पत्रकारों के पैनल के सवालों के जवाब देते थे। तब मॉडरेटर का काम सिर्फ नियमों को समझाना होता था। हालांकि, इसमें एक परेशानी थी। पत्रकारों का पैनल उम्मीदवारों का बहुत ज्यादा समय लेते थे और बहस के दौरान उनका ध्यान भी भटकाते थे।
इसके बाद 1992 से पैनल सिस्टम हटा दिया गया। 1992 में वोटर्स ही कैंडिडेट्स से सवाल करने लगे। लेकिन अगली बार से इसे भी हटा दिया गया और 1996 से मॉडरेटर ही सवाल पूछने की जिम्मेदारी निभाने लगे।
बहस में उम्मीदवार किस तरफ खड़ा होगा इसके लिए भी टॉस होता है। टॉस जीतने वाले उम्मीदवार को 2 में से एक ऑप्शन चुनना होता है। वो या तो डिबेट में खड़े होने के लिए अपनी पसंद की साइड पर चुन हो सकता है या क्लोजिंग रिमार्क्स दे सकता है।
इस बार का टॉस बाइडेन ने जीता था। उन्होंने खड़ा होने के लिए सबसे ज्यादा मुफीद जगह (स्टेज का बायां हिस्सा) चुना। वहीं, डोनाल्ड ट्रम्प को क्लोजिंग स्टेटमेंट दिया।
अब अमेरिका की प्रेसिडेंशियल डिबेट से जुड़े रोचक किस्से पढ़िए….
किस्सा 1: जनता कमजोर न समझे इसलिए डिबेट में 27 मिनट खड़े रहे उम्मीदवार
जिमी कार्टर (बाएं) और जेराल्ड फोर्ड (दाएं) (1976)
कार्टर और फोर्ड की बहस रूस-अमेरिका के बीच चल रहे शीत युद्ध के दौरान हुई थी। डिबेट में जेराल्ड फोर्ड ने कह दिया कि रूस का पूर्वी यूरोप पर किसी तरह का दबदबा नहीं है। जबकि, अमेरिका में बच्चा-बच्चा तक ये जानता था कि पूर्वी यूरोप के ज्यादातर देशों पर सोवियत रूस का असर था।
फोर्ड की ये बात सुनकर डिबेट का संचालन कर रहे न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार मैक्स फ्रैंकल खुद को रोक नहीं पाए, कार्टर के बजाय उन्होंने ही फोर्ड के दावे का खंडन कर दिया। इस विवाद की वजह से फोर्ड की छवि ऐसे नेता के तौर पर बन गई जिन्हें कुछ जानकारी ही नहीं है। फोर्ड 1976 के चुनाव में हार गए।
इसी बहस के दौरान माइक भी खराब हो गया था, जिसके चलते उम्मीदवारों को 27 मिनट तक इंतजार करना पड़ा। इस दौरान न तो कार्टर और न ही फोर्ड ने बैठने को कहा, उन्हें डर था कि ऐसा करने से जनता उन्हें कमजोर समझेगी।
किस्सा 2: जब रीगन ने साबित किया- उम्रदराज होना हमेशा घाटे का सौदा नहीं…
रोनाल्ड रीगन (बाएं) और वॉल्टर मोंडेल (दाएं)
1984 में राष्ट्रपति पद की डिबेट्स के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति और 73 साल के रिपब्लिकन कैंडिडेट रोनाल्ड रीगन डेमोक्रेट्स कैंडिडेट 56 साल के वॉल्टर मोंडेल से पिछड़ रहे थे। मीडिया में उनकी अधिक उम्र को लेकर सवाल पूछे जा रहे थे, लेकिन रीगन के एक जवाब ने पूरा माहौल बदल दिया।
पैनलिस्ट ने रीगन से पूछा कि क्या इतनी अधिक उम्र होने के बाद वे राष्ट्रपति जैसे अहम पद की जिम्मेदारी ठीक से निभा पाएंगे? इस पर रीगन ने बड़ा चालाकी भरा जवाब दिया। उन्होंने कहा- मैं इस डिबेट्स में जीत हासिल करने के लिए अपने प्रतिद्वंद्वी की कम उम्र और अनुभवहीनता का फायदा नहीं उठा सकता।
रीगन ने आगे कहा- किसी ने कहा था कि अगर बुजुर्गों ने युवाओं की गलतियों को नहीं सुधारा होता तो दुनिया में कोई देश नहीं होता। रीगन ने उम्र को अपनी ताकत के तौर पर पेश किया और वे चुनाव जीत गए।
किस्सा 3: जब कैंडिडेट से पूछा गया- पत्नी के रेपिस्ट के साथ कैसा सलूक करेंगे?
जॉर्ज बुश (बाएं) और माइकल डुकाकिस (दाएं)
1988 में राष्ट्रपति पद की बहस में एक एंकर ने डेमोक्रेट कैंडिडेट माइकल डुकाकिस से मौत की सजा को लेकर उनके विरोध के मुद्दे पर सवाल पूछ लिया, जिसमें उनकी पत्नी का भी जिक्र था। एंकर ने पूछा कि अगर आपकी पत्नी का कोई रेप करने के बाद हत्या कर देता है तो आप क्या उसकी मौत की सजा का समर्थन नहीं करेंगे?
इस पर डुकासिस ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मौत की सजा कोई सॉल्यूशन है। उनके इस जवाब को जनता ने पसंद नहीं किया। बाद में डुकासिस ने अफसोस जताते हुए कहा- काश मैंने कहा होता कि मेरी वाइफ इस दुनिया में मेरे लिए सबसे कीमती चीज है।
किस्सा 4: डिबेट में बोर हो गए थे बुश, घड़ी देखने लगे
जॉर्ज बुश की इस तस्वीर से जनता के बीच उनकी छवि खराब हुई।
अक्टूबर 1992 में राष्ट्रपति बुश, डेमोक्रेटिक कैंडिडेट बिल क्लिंटन और स्वतंत्र उम्मीदवार रॉस पेरौट के बीच बहस हो रही थी। इस दौरान ऑडिएंस में खड़े एक मेंबर ने बुश से आर्थिक मंदी से जुड़ा एक सवाल पूछ लिया। जब ये सवाल पूछा जा रहा था तो बुश अपनी घड़ी देख रहे थे। वो सवाल ठीक से सुन भी नहीं पाए।
उनके इस जेस्चर को लेकर अखबारों ने लिखा कि बुश डिबेट में बुरी तरह बोर हो गए और वे ज्यादा देर तक इसका हिस्सा नहीं बने रहना चाहते थे। इससे लोगों के बीच गलत संदेश गया। वे चुनाव हार गए।
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