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नई दिल्ली/वॉशिंगटन41 मिनट पहले
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इन ड्रोन्स के मिलने के बाद भारत, पाकिस्तान और चीन पर आसानी से नजर रख सकेगा। (फाइल)
अमेरिका की जो बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन ने भारत को 31 MQ-9B ड्रोन्स देने का फैसला किया है। इनकी कीमत करीब 3.99 अरब डॉलर है। अमेरिकी डिफेंस एजेंसी के हवाले से न्यूज एजेंसी पीटीआई ने गुरुवार रात इसकी जानकारी दी।
माना जा रहा है कि इन ड्रोन्स को चीन के साथ लगने वाली लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) और भारत की समुद्री सीमा में सर्विलांस और सिक्योरिटी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
यह ड्रोन करीब 35 घंटे हवा में रह सकता है। यह फुली रिमोट कंट्रोल है। पिछले साल जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान इस डील का ऐलान किया गया था।
डिफेंस एजेंसी ने बयान जारी किया
- अमेरिका की डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी ने एक बयान में कहा- विदेश विभाग की कोशिशें रंग लाईं। वो इस डील को कामयाब बनाने के लिए प्रयास कर रहा था। यह डील 3.99 अरब डॉलर की है। डील के सर्टिफिकेशन के लिए संसद को नोटिफिकेशन भेजा गया था।
- संसद को भेजे नोटिफिकेशन में कहा गया था कि भारत के साथ यह डील अमेरिका की फॉरेन पॉलिसी और नेशनल सिक्योरिटी के लिहाज से भी अहम है। इसकी वजह यह है कि भारत और अमेरिका के बीच स्ट्रैटजिक रिलेशनशिप है और हमारे लिए यह जरूरी है कि अपने अहम डिफेंस पार्टनर्स के साथ करीबी रिश्ते रखे जाएं।
- अमेरिकी संसद को बताया गया कि हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में राजनीतिक स्थिरता, अमन और इकोनॉमिक प्रोग्रेस के लिहाज से भी यह डील अमेरिका के लिए जरूरी हो जाती है। इस डील से भारत वर्तमान और भविष्य की रक्षा जरूरतों को पूरा कर सकेगा। वो अपनी सरहदों पर पैनी नजर रख सकेगा इनमें से 15 ड्रोन इंडियन नेवी और 8-8 आर्मी और एयरफोर्स को मिलेंगे।
इसी ड्रोन ने किया था अल-जवाहिरी का खात्मा
- MQ-9B ड्रोन MQ-9 ‘रीपर’ का दूसरा वर्जन है। पिछले साल इसका इस्तेमाल काबुल में हेलफायर मिसाइल के एक मॉडिफाइड वर्जन को दागने के लिए किया गया था। इसमें अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी की मौत हो गई थी। माना जाता है कि अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को खोजने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया था। हालांकि तब इसका ओल्ड वर्जन इस्तेमाल किया गया था। भारत जिस वर्जन को खरीदने जा रहा है उसे दुनिया का मोस्ट एडवांस्ड ड्रोन कहा जाता है।
- यह ड्रोन करीब 35 घंटे हवा में रह सकता है। यह फुली रिमोट कंट्रोल है। इसके लिए दो लोगों की जरूरत पड़ती है। यह एक बार उड़ान भरने के बाद 1900 किलोमीटर क्षेत्र की निगरानी कर सकता है। यह एक घंटे में 482 किलोमीटर उड़ सकता है। इसके पंखों की लंबाई 65 फीट 7 इंच और इसकी ऊंचाई 12 फीट 6 इंच होती है।
- 2020 में इंडियन नेवी को समुद्री सीमा की निगरानी के लिए अमेरिका से दो ‘MQ-9B’ सी गार्डियन ड्रोन एक साल के लिए लीज पर मिले थे। बाद में लीज टाइम बढ़ा दिया गया। इसे निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाने और दुश्मन के ठिकानों को बर्बाद करने सहित कई चीजों के लिए तैनात किया जा सकता है।
LAC बॉर्डर पर चीन की हर चालाकी की निगरानी करेगा MQ-9B
- भारत थल, जल और वायु तीनों सेना के बेड़े में MQ-9B ड्रोन को तैनात करना चाहता है। इस ड्रोन को बनाने वाली कंपनी जनरल एटॉमिक्स, इसके मल्टीटैलेंटेड होने का दावा करती है। कंपनी का कहना है कि जासूसी, सर्विलांस, इन्फॉर्मेशन कलेक्शन के अलावा एयर सपोर्ट बंद करने, राहत-बचाव अभियान और हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है।
- इस ड्रोन के दो वैरिएंट स्काई गार्डियन और सिबलिंग सी गार्डियन हैं। भारत यह ड्रोन दो वजहों से खरीदना चाह रहा है। पहली- LAC से लगे एरिया में चीन को भनक हुए बिना उसकी निगरानी करने के लिए। दूसरा- साउथ चाइना सी में चीन की घुसपैठ को रोकने के लिए।
2001 में पहली बार MQ-9 रीपर ने भरी थी उड़ान
- अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक एयरोनॉटिकल के मुताबिक 2001 में MQ-9A ड्रोन ने पहली बार उड़ान भरी थी। इस ड्रोन का अपडेटेड वर्जन ही MQ-9B है। 2000 के बाद अमेरिकी सेना को चालक रहित एक ऐसे एयरक्राफ्ट की जरूरत हुई, जिसे रिमोट से कंट्रोल किया जा सके। इस के बाद ही MQ-9A बना था। यह लगातार 27 घंटे तक उड़ान भर सकता था।
- इसके बाद इसी ड्रोन का अपडेटेड वर्जन MQ-9B SkyGuardian और MQ-9B SeaGuardian बना। मई 2021 तक अमेरिका के पास 300 से ज्यादा ऐसे ड्रोन थे।
- फ्रांस, बेल्जियम, डोमिनिकन गणराज्य, भारत, जर्मनी, ग्रीस, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, यूके, यूएई, ताइवान, जपान, मोरक्को जैसे दुनिया के 13 से ज्यादा देश इसका इस्तेमाल करते हैं।
सोमालिया, यमन और लीबिया में इस्तेमाल
अमेरिका ने ‘वॉर ऑन टेरर’ के दौरान प्रिडेटर और रीपर ड्रोन अफगानिस्तान के साथ ही पाकिस्तान के उत्तरी कबाइली इलाकों में भी तैनात किए थे। अमेरिका के ही ड्रोन इराक, सोमालिया, यमन, लीबिया और सीरिया में भी तैनात हैं। रीपर ड्रोन ही था, जिससे US ने अलकायदा के ओसामा बिन लादेन की निगरानी की थी। जिसके बाद नेवी सील्स ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में लादेन को मार गिराया था।