3 मिनट पहले
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आयरलैंड में 29 जून, 1985 को एक नौसेना बेस पर एयर इंडिया फ्लाइट 182 का मलबा मिला था।
कनाडा की संसद में मंगलवार (18 जून) को खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के एक साल पूरे होने पर उसे श्रद्धांजलि दी गई थी। इस दौरान संसद में एक मिनट का मौन भी रखा गया था। भारत ने इसे लेकर आपत्ति भी जताई।
कनाडा में वैंकूवर और टोरंटो स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावासों ने इसके जवाब में कहा कि वे रविवार (23 जून) को एअर इंडिया फ्लाइट 182 (कनिष्क) पर खालिस्तानी आतंकियों के हमले की 39वीं बरसी मनाएंगे। इस घटना में 329 यात्रियों की जान चली गई थी।
इस घटना को लेकर कनाडा की पुलिस ने कहा कि एयर इंडिया 182 को बम से उड़ाने की जांच अभी भी जारी है। कनाडाई पुलिस ने इसे आतंकवाद के मामले की सबसे लंबी और सबसे जटिल जांच में से एक माना है।
आज इस स्टोरी में जानेंगे कि आखिर 39 साल होने के बाद भी कैसे लोगों के जेहन में इस घटना की याद ताजा है। कैसे खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया की फ्लाइट-182 में सवार 329 बेगुनाह लोगों की जान ली थी…
तारीख-22 जून, 1985
मंजीत सिंह नाम का एक शख्स दोपहर 3 बजकर 30 मिनट पर कनाडा के वैंकूवर शहर से टोरंटो जाने के लिए एयरपोर्ट पर चेक इन करता है। टिकट कन्फर्म नहीं होने पर वो एयपोर्ट पर मौजूद एजेंट से गुजारिश करने लगता है। वह कहता है कि उसे नहीं तो कम से कम उसके सामान को टोरंटो से भारत जाने वाली फ्लाइट-182 में भिजवा दिया जाए।
विमान की एजेंट शुरू में झिझकती है, लेकिन लोगों की भीड़ होने की वजह से वो मंजीत सिंह का कहा मान लेती है। इसके बाद सिंह उस सूटकेस को पैर से धकेलते हुए चेक इन कराता है। हालांकि, जब वह ऐसा कर रहा होता है तो किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं जाता है और वह आसानी से अपने मकसद में कामयाब हो जाता है। इस तरह उसका सामान वैंकूवर से टोरंटो जाने वाली फ्लाइट में रख दिया जाता है।
लगभग तीन घंटे बाद फ्लाइट टोरंटो के लिए रवाना होती है। सिंह विमान में भले ही नहीं था, लेकिन उसका सूटकेस वहां मौजूद होता है। ये फ्लाइट रात 8 बजकर 22 मिनट पर टोरंटो पहुंचती है। इसके बाद टोरंटो से भारत आने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट-182 यानी कनिष्क विमान में यात्रियों और सामान को शिफ्ट किया जाता है। ये विमान टोरंटो से चलकर लंदन से होते हुए भारत के लिए उड़ान भरने वाली थी।
इस विमान में शिफ्ट किए गए सामानों में से एक सूटकेस मंजीत सिंह का भी था। वैंकूवर के बाद टोरंटो एयरपोर्ट पर भी मंजीत के सामान की जांच नहीं की गई। इसे सीधे एक विमान से भारत जाने वाले कनिष्क विमान में रख दिया गया। विमान कर्मियों ने सामान शिफ्ट करते समय इस बात पर भी गौर नहीं किया कि यह सूटकेस किस यात्री का है, वह विमान में है भी या नहीं है।
ये तस्वीर एयर 182 के फ्लाइट कैप्टन नरेंद्र सिंह हांसे की है।
तारीख- 23 जून, 1985
रात 12 बजकर 15 मिनट पर एयर इंडिया की फ्लाइट-182 (कनिष्क) टोरंटो से उड़ान भरती है और मॉन्ट्रियल के लिए रवाना होती है। इसके बाद यहां से ये विमान लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरता है।
इस फ्लाइट में 307 यात्री और 22 क्रू मेंबर्स सवार थे। प्लेन लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे से करीब 45 मिनट की दूरी पर था, तभी वो सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर अचानक रडार से गायब हो जाता है।
कंट्रोल रूम उसी रूट पर उड़ रहे 2 अन्य विमानों से संपर्क कर एयर इंडिया विमान के बारे में पता करने की कोशिश करता है। जब उनसे पूछा जाता है कि क्या उन्हें कहीं भी एयर इंडिया की फ्लाइट-182 दिखाई दे रही है। उन दोनों विमानों के पायलट से जवाब मिलता है- नहीं।
कुछ ही देर बाद ब्रिटेन के एक मालवाहक विमान का पायलट कंट्रोल रूम को एक मैसेज भेजता है, इस मैसेज के मिलते ही वहां अफरा-तफरी मच जाती है। दरअसल, मालवाहक विमान का पायलट बताता है कि उसे फ्लाइट-182 का मलबा अटलांटिक महासागर में दिखा है।
इस तस्वीर में आयरलैंड में एयर इंडिया बॉम्बिंग के बाद शवों को निकालते हुए रेस्क्यू वर्कर्स को देखा जा सकता है।
बाद में जांच के दौरान पता चला कि जैसे ही ये विमान आयरलैंड के समुद्री तट पर पहुंचा, तभी उसमें एक तेज धमाका हुआ। इस वक्त ये विमान 31 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था। धमाका इतना जबरदस्त था कि पूरा विमान आग के गोले में बदल गया था। इसमें सवार कोई यात्री जिंदा नहीं बच पाया।
बचाव कर्मी सिर्फ 181 लोगों के शव बरामद कर पाए। मरने वालों में 268 लोग भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे। अमेरिका में 9/11 में हुए आतंकी हमले से पहले एयर इंडिया फ्लाइट-182 का धमाका दुनिया का सबसे बड़ा एविएशन से जुड़ा आतंकी हमला था।
329 बेगुनाह लोगों की मौत का आरोप कनाडा से ऑपरेट किए जाने वाले खालिस्तानी आतंकियों पर लगा था।
कनिष्क ब्लास्ट के कुछ ही देर बाद दूसरे भारतीय विमान में विस्फोट की कोशिश
कनिष्क विमान में ब्लास्ट के कुछ मिनटों बाद ही जापान के टोक्यो स्थित नारिटा हवाई अड्डे पर भी एक जोरदार विस्फोट हुआ। यहां भी यह धमाका उस वक्त हुआ जब कनाडा से टोक्यो पहुंची फ्लाइट के सामान को भारत जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट-301 में शिफ्ट किया जा रहा था।
दरअसल, खालिस्तानी आतंकियों का टोक्यो होते हुए मुंबई जाने वाली एयर इंडिया की दूसरी फ्लाइट को भी उड़ाने का प्लान था। इसके लिए कनाडा से रवाना होने वाले विमान में बेहद चालाकी से सामान में बम रखकर उसे चेक इन कराया गया था।
टोक्यो में सामान शिफ्ट करते वक्त एयरपोर्ट पर ही बम फट गया। मौके पर सामान उठाने वाले दो कर्मचारी मारे गए। इस तरह खालिस्तानियों की एयर इंडिया के दूसरे विमान को उड़ाने की साजिश असफल हो गई।
भारत सरकार ने भी इस घटना की जांच के लिए एक अलग से कमेटी बनाई थी। पूर्व जज बीएम कृपाल के नेतृत्व में बनी इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इंजन की खराबी नहीं, बल्कि आतंकी हमले में एयर इंडिया का विमान-182 हादसे का शिकार हुआ। इस घटना का मास्टरमाइंड बब्बर खालसा इंटरनेशनल के नेता तलविंदर सिंह परमार को बताया गया था।
सब कुछ सरेआम हो रहा था, फिर भी कनाडा सरकार ने एक्शन नहीं लिया
8 नवंबर 1985 को रॉयल कनेडियन माउंटेड पुलिस यानी RCMP और इंटिलेजेंस सर्विस एयर इंडिया बॉम्बिंग केस में बब्बर खालसा इंटरनेशल संगठन के हेड तलविंदर सिंह परमार और इंंद्रजीत सिंह रेयात के घर पर रेड डालती हैं। उनकी गिरफ्तारी की जाती है। तब तक इस घटना में उन दोनों के हाथ होने के कई तरह की बातें सामने आती हैं। इसके बावजूद सुबूतों की कमी बताकर दोनों को छोड़ दिया जाता है। केवल रेयात पर 2 हजार डॉलर का जुर्माना लगाया जाता है, वो भी किसी दूसरे मामले में। इसके बाद रेयात इंग्लैंड में जा बसा।
फरवरी 1988 में एक बार फिर आरोपी इंद्रजीत सिंह रेयात, जो पेशे एक मैकेनिक था उसे गिरफ्तार किया जाता है। उसे नारिटा हवाई अड्डे पर हुए धमाके का दोषी पाया जाता है। उसे कनाडा लाकर ट्रायल शुरू किया जाता है। जांच के बाद उसे 10 साल की सजा सुनाई जाती है। 2001 में रेयात पर फिर से एयर इंडिया बॉम्बिंग के मामले में आरोप तय किए गए। 2003 में कोर्ट ने उसे दोषी पाया और उसे 5 अतिरिक्त साल के लिए सजा सुनाई।
एयर इंडिया की बॉम्बिंग की इस दर्दनाक घटना के पहले से ही कनाडा की सीक्रेट सर्विस परमार और इंद्रजीत सिंह पर नजर रखे हुए थी। 23 जून को हुई घटना से पहले 4 जून को कनाडा की सीक्रेट सर्विस ने दोनों को वैंकूवर आईलैंड के एक जंगल में जाते हुए देखा था। रिपोर्ट के मुताबिक यहां उन्होंने विस्फोट का टेस्ट किया था।
हालांकि, सीक्रेट सर्विस ने इसे एक गन शॉट समझा और इसकी जानकारी पुलिस से शेयर नहीं की थी। इस घटना में परमार का नाम सामने आने के बाद सीक्रेट सर्विस ने कहा था कि उन्हें सिर्फ दोनों खालिस्तानियों की जानकारी रखने के निर्देश दिए गए थे, न कि उन पर कार्रवाई करने के।
कनाडा से रिहा होने के बाद परमार पाकिस्तान चला गया। वहां से वो साल 1992 में भारत पहुंचा। यहां मुंबई में एक पुलिस एनकाउंटर में उसकी मौत हो गई। CBC न्यूज के मुताबिक मौत से कुछ समय पहले परमार पुलिस की हिरासत में था और उससे एयर इंडिया बॉम्बिंग के बारे में पूछताछ की गई थी।
1985 में सुनवाई के दौरान डंकन कोर्ट के बाहर इंद्रजीत सिंह रेयात और तलविंदर सिंह परमार
खुलेआम चेतावनी दे रहे थे आतंकी
इस सुनियोजित हमले से पहले ही कनाडा के कई गुरुद्वारों से खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जा रहे थे। खुलेआम बब्बर खालसा संगठन एयर इंडिया में यात्रा न करने की चेतावनी जारी कर रहा था। इसके बावजूद कनाडा की सुरक्षा एजेंसी इस बात का पता तक नहीं लगा सकीं।
इतना ही नहीं इस घटना से पहले परमार ने खालिस्तानियों की एक मीटिंग में कहा था कि एयर इंडिया के प्लेन बीच आसमान से टपकेंगे। इसकी जानकारी होने के बावजूद घटना से पहले और बाद में परमार पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। कनाडा की पुलिस चुपचाप उसे इस तरह की चेतावनी देते हुए देखती रही।
22 जनवरी 1986 को कनाडा के एविएशन सेफ्टी बोर्ड ने भी माना था कि एयर इंडिया-182 में साजिश के तहत विस्फोट किया गया था।
एयर इंडिया बॉम्बिंग की जांच में के लिए कनाडा में अलग से बने थे कोर्ट रूम
1995 में कनाडा के सरे में रहने वाले एक अखबार के संपादक तारा सिंह हेयर ने कनाडा पुलिस को बताया था कि उन्होंने बागरी नाम के एक शख्स को ये स्वीकार करते हुए सुना कि वह इस बम विस्फोटों में शामिल था। इसके बाद एयर इंडिया बॉम्बिंग में एक तीसरे आरोपी की एंट्री होती है। हालांकि, कनाडा पुलिस की कोशिशों के बावजूद इस मामले के गवाह तारा सिंह हेयर को पुख्ता सुरक्षा नहीं मिली और 1998 में उनकी हत्या कर दी जाती है।
कनाडा में ये मामला इतना हाई प्रोफाइल था कि इसे एयर इंडिया ट्रायल का नाम दिया गया था। मामले की नाजुकता को देखते हुए 7.2 मिलियन डॉलर यानी 59 करोड़ 86 लाख रुपए का एक अलग कोर्ट रूम बनाया गया था। इसमें सुनवाई के लिए 20 जजों की ड्यूटी लगाई गई थी।
कनाडा की इंटेलिजेंस एजेंसी ने इस बात को माना कि उन्होंने इस मामले से जुड़े लोगों के 150 घंटे के कॉल रिकॉर्ड्स को डिलीट कर दिया था। जबकि इनका इस्तेमाल कोर्ट में सबूतों के तौर पर किया जा सकता था। एजेंट ने बताया कि अगर रिकॉर्ड मिटाए नहीं जाते तो इसकी जानकारी देने वालों को खतरा हो सकता था।
साल 2000 में कनाडा पुलिस ने रिपुदमन सिंह नाम के बिजनेसमैन और एक मिल में काम करने वाले अजैब सिंह बागरी को इस एयर इंडिया बॉम्बिंग मामले में गिरफ्तार किया था। इन पर फर्स्ट डिग्री मर्डर के चार्ज लगाए गए। हालांकि, 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ईएन जोसेफन ने कहा था कि उनके खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं। जबकि FBI के इन्फॉर्मर ने बताया था कि घटना के कुछ ही दिन बाद बागरी ने कहा था कि ये काम उन्होंने ही करवाया है।
2006 में कनाडा की सरकार एयर इंडिया बॉम्बिंग में एक पब्लिक इंक्वायरी का गठन करती है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जॉन सी मेयर इसका नेतृत्व करते हैं। वो 2010 में एक 3200 पन्नों की रिपोर्ट जारी करते हैं। वो सरकार और सिक्योरिटी एजेंसी को इसके लिए जिम्मेदार बताते हैं। वो कहते हैं कि सरकारों ने मृतकों के परिवारों के साथ दुश्मनों की तरह व्यवहार किया। कोर्ट ये फैसला सुनाती है कि परमार इस पूरी बॉम्बिंग का मास्टर माइंड था।
इंक्वायरी ने अपनी रिपोर्ट में कनाडा में सुरक्षा व्यवस्था की कमियों को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस जॉन मेजर ने 2010 में कहा था कि कनाडा सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है।
जॉन मेजर ने इस हादसे के लिए कनाडा सरकार, रॉयल कनेडियन माउंटेड पुलिस और कनाडियन सिक्युरिटी इंटेलिजेंस सर्विस को जिम्मेदार ठहराया था। इंक्वायरी के बाद 2010 में कनाडा की सरकार पीड़ितों से औपचारिक तौर पर माफी मांगती है। इस मामले के आरोपी रिपुदमन की 2022 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
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