India Sri Lanka Cobalt Mountains Dispute Update | Afanasy Nikitin Seamount | हिंद महासागर में कोबाल्ट के पहाड़ पर कब्जे की लड़ाई: इंटरनेशनल अथॉरिटी ने भारत की याचिका खारिज की; श्रीलंका को मिला तो चीन कर सकता है कब्जा


5 मिनट पहले

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भारत हिंद महासागर में चीन का प्रभाव कम करना चाहता है। - Dainik Bhaskar

भारत हिंद महासागर में चीन का प्रभाव कम करना चाहता है।

भारत के सबसे दक्षिणी छोर से 1,350 किलोमीटर दूर हिंद महासागर के बीच में मिले कोबाल्ट के पहाड़ पर कई देशों ने दावा किया है। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पहाड़ का नाम अफानासी निकितिन सीमाउंट है। ये भारत की तुलना में श्रीलंका के ज्यादा करीब है। भारत और श्रीलंका दोनों इसका खनन करना चाहते हैं।

कोबाल्ट का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों और बैटरियों में किया जाता है। कोबाल्ट से प्रदूषण कम होता और ये ज्यादा टिकाऊ होता है। अगर ये पहाड़ भारत को मिल जाता है तो देश को ऊर्जा की जरूरतों के लिए चीन पर कम निर्भर रहना होगा।

अलजजीरा ने भारतीय अधिकारियों और विश्लेषकों के हवाले से बताया कि भारत को डर है कि कहीं चीन इस पर अपना कब्जा न कर ले। इसलिए इस पर खनन के लिए भारत ने इसी साल जनवरी में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) से परमिशन मांगी और फी के रूप में 4 करोड से ज्यादा रुपए देने का ऑफर भी दिया। हालांकि ISA ने भारत के इस ऑफर को नामंजूर कर दिया।

हिंद महासागर के बीच में कोबाल्ट के पहाड़ पर कब्जे को लेकर भारत और श्रीलंका दोनों ही प्रयास कर रहे है। (फाइल)

हिंद महासागर के बीच में कोबाल्ट के पहाड़ पर कब्जे को लेकर भारत और श्रीलंका दोनों ही प्रयास कर रहे है। (फाइल)

भारत 15 सालों तक कोबाल्ट के पहाड़ पर रिसर्च करना चाहता है
नियमों के मुताबिक अगर किसी देश को समुद्र में कुछ रिसर्च करना होता है तो इसके लिए ISA से मंजूरी लेनी होती है खासकर तब जब वो इलाका किसी भी देश के अधीन न आता हो। ISA ने अगर भारत को खनन से जुड़ी मंजूरी दी होती तो भारत कोबाल्ट के पहाड़ पर 15 सालों तक रिसर्च कर पाता।

रिपोर्ट के मुताबिक ISA से भारत के अलावा एक और देश ने खनन की अनुमति मांगी थी। विवाद से बचने के लिए ISA ने किसी भी देश को खनन की मंजूरी नहीं दी। हालांकि अभी तक ये पता नहीं चल पाया है कि भारत के अलावा वो दूसरा देश कौन है जो खनन की मंजूरी चाहता है। हालांकि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि ये श्रीलंका हो सकता है।

इस बीच भारत ने ISA को इस द्वीप से जुड़े सवालों का जवाब दे दिया है। भारत को उम्मीद है कि ISA फिर से उसके अनुरोध पर विचार कर सकता है।

श्रीलंका अपनी समुद्री सीमा बढ़ाना चाहता है
साधारण तौर पर किसी भी देश की समुद्री सीमा उसकी जमीन से 12 नॉटिकल मील (22.2 किलोमीटर) तक मानी जाती है। संयुक्त राष्ट्र संधि के मुताबिक कोई भी देश अपने समुद्री तटों से 200 (370किमी) समुद्री मील दूरी तक के आर्थिक क्षेत्रों पर अधिकार रख सकता है। हालांकि तटीय देश इससे अधिक दूरी तक पर भी दावा कर सकते हैं। वे ये तर्क दे सकते हैं कि उनकी महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा 200 समुद्री मील से आगे तक फैली हुई है।

श्रीलंका ने 2009 में भी ऐसा किया था। इसके लिए उसने संयुक्त राष्ट्र के महाद्वीपीय शेल्फ सीमा पर आयोग (CLCS) से अपनी समुद्री सीमा 370 किलोमीटर तक फैलाने के लिए आवेदन किया था। हालांकि अब तक CLCS ने श्रीलंका की मांग को स्वीकार नहीं किया है। अगर CLCS इसे मान्यता दे देता है तो कोबाल्ट का पहाड़ पर श्रीलंका का अधिकार हो जाएगा। इससे पहले CLCS पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और नॉर्वे की सीमा बढ़ाने की मांग मंजूर कर चुका है।

पहले भारत ने श्रीलंका का समर्थन किया था पर 2022 में इससे पलट गया
भारत ने 2010 में सीमा बढ़ाने को लेकर श्रीलंका का समर्थन किया था पर 2022 में भारत इससे पलट गया। भारत का मानना है कि ऐसा करना उसके लिए घातक हो सकता है। भारत ने CLCS से श्रीलंका का आवेदन खारिज करने की अपील भी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत को श्रीलंका की नहीं बल्कि चीन की चिंता है।

चेन्नई में डॉ अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी में समुद्री कानून के असिस्टेंट प्रोफेसर निखिलेश नेदुमगट्टुनमल के मुताबिक, भारत, चीन को इससे दूर रखने की कोशिश कर रहा है। भारत के पास इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) के मानको को पूरा करने के लिए सारे साक्क्ष है।

नाम न बताने की शर्त पर भारतीय न्यायपालिका में वरिष्ठ अधिकारी और समुद्री विशेषज्ञ ने बताया कि भारत पहले इस मामले में दूरी बनाए हुए था पर चीन के डर ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया। भारत को डर है कि जिस तरह चीन का हिंदमहासागर में प्रभाव बढ़ रहा है वह भी इसे हासिल करने की कोशिश कर सकता है। नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक केवी थॉमस ने भी चीन को इसकी वजह बताया है।

भारत ने 2021 में समुद्र के संसाधनों की खोज के लिए एक डीप ओशन मिशन शुरू किया
थॉमस ने कहा कि भारत की गहरे समुद्र में खनन पहल अभी शुरुआती चरण में है। इसके लिए भारत ने 2021 में गहरे समुद्र के संसाधनों की खोज के लिए एक डीप ओशन मिशन शुरू किया, जिसको 5 साल के लिए सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपए दिए है।

भारत सरकार ने 2023 में कहा था कि डीप ओशन मिशन के तहत, वह एक चालक दल वाली डीप सी माइनिंग सबमर्सिबल विकसित कर रही है, जो समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स का मिनरल निकालेगी । पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स, जिन्हें मैंगनीज नोड्यूल्स भी कहा जाता है, चट्टान के ठोस पदार्थ होते हैं जो कोबाल्ट सहित महत्वपूर्ण खनिजों के महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में काम करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक इस समय चीन दुनिया के 70% कोबाल्ट और 60% लिथियम तथा मैंगनीज को कंट्रोल करता है। लेकिन भारत को 2070 तक नेट जीरो के लिए कोबाल्ट पहाड़ को हासिल करना बहुत जरूरी है।

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