अहमदाबाद9 मिनट पहले
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ताइवान के नेता लाई चिंग-ते, जिन्हें चीन ‘खतरनाक अलगाववादी’ मानता है, 20 मई को ताइवान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने जा रहे हैं। लाई चिंग-ते 2010 में ताइवान के मेयर थे। 2020 में उपराष्ट्रपति बने। लाई चुंग-ते ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता देने के लिए लंबे दुनिया के देशों के साथ अच्छे संबंध बना रहे हैं।
लाई चुंग-ते ताइवान के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के साथ ताइवान के रिश्ते और मजबूत होंगे। इससे भारत को भी फायदा होगा, क्योंकि ताइवान वैश्विक सेमीकंडक्टर चिप हब है। इसीलिए इस शपथ ग्रहण समारोह पर दुनिया की नजर है। शपथ ग्रहण समारोह से पहले चीन ने ताइवान के ऊपर अपने 45 लड़ाकू विमान उड़ाए। इससे ताइवान अलर्ट पर है और अमेरिका उसके सपोर्ट में है।
ताइवान के अमेरिका और चीन के साथ किस तरह के राजनीतिक संबंध हैं? गुजरात में बन रहे मेगा सेमीकंडक्टर प्लांट को ताइवान किस तरह सपोर्ट करेगा। ऐसे कई सवालों के जवाब हम तीन एपिसोड की इस सीरीज में जानेंगे। आइए आज के पहले एपिसोड में जानते हैं ताइवान, अमेरिका और चीन के बीच राजनयिक संबंधों के बारे में…
चीन के चंगुल से कैसे बच सकता है ताइवान?
चीन के पास स्थित एक छोटा सा देश ताइवान पूरी दुनिया को सेमीकंडक्टर चिप्स की आपूर्ति करता है। अगर सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन बंद हो गया तो समझ लीजिए दुनिया की रफ्तार थम गई। मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, सेट-टॉप बॉक्स, ई-व्हीकल, मेडिकल मशीनें, इलेक्ट्रिक प्रिंटर, फिंगर प्रिंट, फेस रीडर मशीन सभी में ताइवान में बनी चिप्स का यूज होता है। ताइवान का सिंचू शहर इसका केंद्र है। यहां के साइंस पार्क में लगभग 180 सेमीकंडक्टर चिप कंपनियां और उनके प्लांट हैं। ताइवान की सबसे बड़ी कंपनी टीएसएमसी भी यहीं स्थित है।
चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, लेकिन ताइवान खुद को एक अलग देश मानता है। यह बात अलग है कि ताइवान को अलग देश के रूप में अब तक मान्यता नहीं मिली है। केवल 12 छोटे देश ही ताइवान को एक अलग देश के रूप में मान्यता देते हैं। ताइवान के नए राष्ट्रपति लाई चुंग-ते 20 मई को शपथ लेंगे। वह चीन के कट्टर विरोधी हैं और पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि अगर वह राष्ट्रपति बने तो ताइवान को दुनिया में एक अलग देश का दर्जा दिलवाएंगे। अब देखना यह है कि ताइवान जैसा छोटा सा देश क्या चीन पर भारी पड़ सकता है।
विलियम लाई चिंग-ते 20 मई को शपथ लेंगे
चीन के विरोध के बीच विलियम लाई चिंग-ते उपराष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका गए थे और अब उन्हें 20 मई को ताइवान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेनी है। ताइवान के राष्ट्रपति का चुनाव 2024 में हुआ था। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के उम्मीदवार लाई चिंग-ते ने जीत हासिल की। लाई चिंग-ते कम्युनिस्ट चीन के कट्टर विरोधी हैं। वह अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति त्साई-इन-वेंग के पसंदीदा शागिर्द हैं। उन्होंने ही लाई चिंग-ते को अपना उत्तराधिकारी चुना है।
विलियम लाई चिंग-ते ताइवान के विकास के लिए अन्य देशों के साथ संबंध मजबूत करने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने चुनाव से पहले कहा था कि ताइवान अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और तकनीकी विशेषज्ञता के कारण इंडो-पैसिफिक में अमेरिका का एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है। उन्होंने देश के लिए एक नए संविधान का मसौदा तैयार करने और देश को ‘ताइवान गणराज्य’ घोषित करने की भी पहल की है। राष्ट्रपति पद के लिए लाई चिंग-ते के चुनाव से चीन और अधिक आक्रामक हो गया है।
शपथ ग्रहण समारोह से पहले चीन ने उड़ाए 45 लड़ाकू विमान
ताइवान के सुरक्षा मंत्रालय के हवाले से समाचार एजेंसी ‘एएफपी’ ने जानकारी दी है कि पड़ोसी देश चीन ने ताइवान के ऊपर अपने 45 विमान उड़ाए और ताइवान को इसका पता तब चला, जब ताइवान के नए राष्ट्रपति अपनेशपथ ग्रहण से कुछ ही दिन दूर हैं। ‘वियोन न्यूज’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन समय-समय पर लड़ाकू विमान भेजकर ताइवान को डराने की कोशिश करता रहा है, लेकिन अब उसने एक साथ 45 लड़ाकू विमान भेजे, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। इसलिए ताइवान की चिंता बढ़ गई है।
ताइवान पर आक्रामक हो सकता है चीन
ताइवान में 20 मई को नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण से पहले ही चीन आक्रामक हो गया है। चीन ने प्रशांत महासागर में अपनी सैन्य ताकत बढ़ा दी है। वहीं ताइवान ने भी अपनी नौसेना की तैनाती बढ़ा दी है। ताइवान अपने F-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड कर रहा है और अमेरिका से और हथियार खरीद रहा है। 10 मई, 2024 को, ताइवान के राष्ट्रपति के उद्घाटन से कुछ दिन पहले, अमेरिकी युद्धपोत ताइवान और चीन के बीच समुद्र से गुजरे और लड़ाकू जेट विमानों द्वारा उनका बचाव किया गया। अमेरिका की इस कार्रवाई से चीन बौखला गया है। आने वाले दिनों में टकराव इस बात पर तय है कि ताइवान और चीन एक दूसरे के प्रति क्या नीति रखते हैं।
अब बात करते हैं ताइवान और अमेरिका के रिश्ते के बारे में…
चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता है। क्योंकि, चीन को यह पसंद नहीं है कि ताइवान दुनिया के अन्य देश खासतौर पर पश्चिमी देशों से संबंध रखे। चीन के डर से अमेरिका की पूर्व सरकार ने ताइवान के साथ राजनयिक और आधिकारिक संपर्कों पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन अमेरिका को समझ आ गया कि अगर वैश्विक सेमीकंडक्टर हब की दुनिया में क्रांति लानी है तो उसे ताइवान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने होंगे। इसीलिए ट्रंप सरकार ने ताइवान पर लगे सभी प्रतिबंध हटा दिए थे। इसकी आधिकारिक घोषणा अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने 10 जनवरी 2021 को की थी। अमेरिका ने ताइवान के साथ रिश्ते तो सुधार लिए हैं, लेकिन इससे चीन नाराज हो गया है। चीन ने प्रतिबंध हटाने के अमेरिकी कदम की आलोचना की है। चीन की सरकारी मीडिया शिन्हुआ में भी एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी और लिखा था कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो अनावश्यक टकराव पैदा करने में विश्वास रखते हैं।
चीन की धमकी के बीच नैंसी ताइवान गईं थीं
अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा की 81 वर्षीय स्पीकर नैंसी पेलोसी विवादों और चीन की धमकी के बीच 2 अगस्त 2022 को ताइवान की राजधानी ताइपे पहुंचीं थीं। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में रिपोर्ट छपी थी कि अगर नैंसी का विमान ताइवान गया तो चीन उसे मार गिराएगा। इस धमकी के बाद अमेरिकी नौसेना और वायुसेना के 24 लड़ाकू विमानों ने नैंसी के विमान को सुरक्षा कवर प्रदान किया। ढाई दशक में यह पहली बार था कि कोई अमेरिकी नेता ताइवान पहुंचा था।
ताइवान से अमेरिका लौटने के बाद नैन्सी पेलोसी का वाशिंगटन पोस्ट में एक आर्टिकल छपा था। इसमें पेलोसी ने लिखा था कि अमेरिका के नेता अधिनायकवादी ताकतों के सामने घुटने नहीं टेकेंगे। मैंने उस समय ताइवान का दौरा किया, जब दुनिया अधिनायकवाद और लोकतंत्र के बीच संघर्ष कर रही थी। ताइवान की यात्रा लोकतंत्र के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। उनकी ताइवान यात्रा का एकमात्र उद्देश्य स्वायत्त ताइवान का समर्थन करना था। अमेरिका और ताइवान के बीच बेहतर होते रिश्तों के चलते ताइवान की टीएसएमसी कंपनी अमेरिका के एरिजोना में अपना प्लांट लगा रही है।
ताइवान की यात्रा के दौरान अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के साथ।
चीन ने ताइवान पर दागी थीं मिसाइलें
2022 में अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद चीन ने ताइवान पर कई मिसाइलें दागीं थीं। चीनी एयरफोर्स ने एक बार हवाई क्षेत्र का भी उल्लंघन किया था। चीन ने ताइवान को चारों तरफ से घेरते हुए ताइवान के समुद्री इलाके में 18 युद्धपोतों से मिसाइल हमला कर दिया था। इससे चीन और ताइवान के बीच किसी भी वक्त युद्ध होने के हालात बन गए थे।
चीन की चेतावनियों के बावजूद
जनवरी 2024 में ताइवान के चुनाव होने से पहले, ताइवान के उपराष्ट्रपति विलियम लाई चिंग-ते ने अगस्त 2023 में अमेरिका पहुंचे थे। जब विलियम लाई चिंग-ते अमेरिका जाने वाले थे तो चीन ने उन्हें अंजाम भुगतने की भी धमकी दी थी। लेकिन लाई चिंग-ते चीन की धमकी को दरकिनार कर अमेरिका की यात्रा की थी। न्यूयॉर्क में रहने वाले ताइवान के समर्थकों से बातचीत के दौरान लाई ने कहा- अगर ताइवान सुरक्षित है तो पूरी दुनिया सुरक्षित है।
दरअसल, विलियम लाई पैराग्वे जा रहे थे और बीच में अमेरिका में रुके थे। वह पराग्वे के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने गए थे। पैराग्वे उन 12 देशों में से एक है, जिन्होंने ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता दी है।
चीन के प्रतिबंध के बावजूद अमेरिका ने ताइवान को हथियारों की आपूर्ति की
चीन की आपत्तियों के बावजूद अमेरिका ने ताइवान को हथियारों की आपूर्ति जारी रखी। अमेरिका भी दशकों से ‘एक चीन नीति’ का समर्थन करता रहा है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर उसने यह नीति नहीं अपनाई है। चीन की ‘वन चाइना पॉलिसी’ क्या है, यह हम आगे जानेंगे। ट्रंप के बाद जो बाइडेन सत्ता में आए हैं तो उन्होंने भी ताइवान का समर्थन किया है और चीन की आपत्तियों के बावजूद हथियारों की सप्लाई जारी रखी है।
बाइडेन अक्सर कहते रहे हैं कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में आएगा। बाइडेन ने ताइवान को हथियारों की सप्लाई जारी रखी है और ताइवान-अमेरिका आधिकारिक दौरे बढ़ाए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि चीन बार-बार ताइवान पर आक्रमण करने की धमकी दे रहा है और सैन्य अभ्यास कर रहा है। चीन की सैन्य क्षमताएं इतनी बढ़ गई हैं कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि अमेरिका ताइवान की रक्षा कर पाएगा। चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका यहां सीमित संख्या में ही जहाज भेज सकता है।
जब लाई चिंग-ते ताइवान के उपराष्ट्रपति बनकर अमेरिका गए तो चीन ने आपत्ति जताई थी।
वन चाइना पॉलिसी क्या है?
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी पीआरसी साल 1949 में अस्तित्व में आया। इसे आमतौर पर चीन कहा जाता है। इसके अंतर्गत मुख्यभूमि चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो अन्य क्षेत्र आते हैं। जबकि रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी आरओसी ने 1911 से 1949 तक चीन पर कब्जा किया था। लेकिन अब उनके पास ताइवान और अन्य द्वीप हैं।
वन चाइना पॉलिसी से तात्पर्य चीन की उस नीति से है, जिसके अनुसार चीन ही एक राष्ट्र है और ताइवान कोई अलग देश नहीं, बल्कि चीन का ही एक हिस्सा है। इस नीति के तहत चीन का कहना है कि दुनिया के जो देश पीआरसी के साथ राजनीतिक संबंध चाहते हैं उन्हें आरओसी यानी ताइवान के साथ सभी आधिकारिक संबंध तोड़ने होंगे।
अब बात करते हैं भारत और ताइवान के रिश्ते के बारे में…
भारत सरकार ने दिसंबर 2021 में संसद में ताइवान के साथ भारत के रिश्ते का खुलासा किया था। राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने कहा था- ताइवान पर भारत की नीति स्पष्ट और सुसंगत है। भारत ताइवान के साथ व्यापार, निवेश, पर्यटन और शिक्षा संबंधों को मजबूत करेगा। इस प्रकार भारत के ताइवान के साथ 3 दशक पुराने संबंध हैं, लेकिन अभी भी भारत ने ताइवान के साथ कोई राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। क्योंकि भारत, चीन की वन चाइना नीति का समर्थन करता है। हालांकि, जब दिसंबर 2020 में तत्कालीन प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ ने भारत का दौरा किया तो नई दिल्ली में दोनों देशों के संयुक्त बयान में वन चाइना पॉलिसी के लिए चीन के समर्थन का उल्लेख नहीं किया गया था। भारत ने 2010 से संयुक्त बयानों और आधिकारिक दस्तावेजों में ‘वन चाइना’ नीति के पालन का जिक्र करना बंद कर दिया है, ताइवान के साथ इसका जुड़ाव अभी भी चीन के साथ संबंधों की संरचना तक सीमित है।
(कल दूसरे एपिसोड में ताइवान-भारत संबंध, गुजरात के धोलेरा में बन रहे सेमीकंडक्टर बिजनेस का भविष्य)
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