Popatram:Sarvesh Kumar Tiwari:
4 अप्रैल, सन उन्नीस सौ इक्यानवे!(शायद) इंडिया गेट के सामने, नई दिल्ली! कहते हैं, उसदिन कुल दस लाख लोगों की भीड़ इक्कठी हुई थी। यह अबतक की सबसे बड़ी रैली थी। जितनी विशाल, उतनी ही अनुशासित!
किसी बड़े राजनेता की रैली में पचास हजार से एक लाख की भीड़ इकट्ठी करने के लिए करोड़ों खर्च करने पड़ते हैं। महीनों से तैयारियां चलती हैं, रुपये बांटे जाते हैं और राज्य भर से लोगों को ढोने के लिए हजारों गाड़ियां रिजर्व की जाती हैं। पर उसदिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। भीड़ स्वतः स्फूर्त थी। अपने संसाधनों से आई थी। और तीर्थयात्रा के भाव से आई थी।
भीड़ में देश भर के लोग थे। कोई सुदूर दक्षिण से तमिल बोलने वाला व्यक्ति, तो कोई गुजरात का गुजराती… कोई पूर्वांचल का भोजपुरिया तो कोई ठेंठ मराठी… वे भाषा के आधार पर भिन्न थे, क्षेत्र के आधार पर भिन्न थे, जाति, सामर्थ्य, पहनावे के आधार पर भी भिन्न थे। पर यह भिन्नता हो कर भी कहीं नहीं थी, क्योंकि उन्हें एक सूत्र में बांधने का काम वही शक्ति कर रही थी, जिसने युग युगांतर से इस देश को जोड़ कर रखा है। वह शक्ति थी राम नाम की…
राम सबकी जिह्वा पर थे, राम सबके हृदय में थे। वे राम के लिए ही निकले थे, और राम ने ही उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति दी थी। राम ही साधन थे, राम ही साध्य…
रैली बुलाई थी स्वर्गीय अशोक सिंघल जी ने! तब वे विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष हुआ करते थे शायद! साधु, संत, गृहस्थ, युवक… सब यूँ ही निकल पड़े थे। कोई राजनैतिक महत्वकांक्षा नहीं, प्रसिद्धि की चाह नहीं… चाह थी, तो राम को पाने की! राम मंदिर बनाने की…
तब यूट्यूब, फेसबुक, वाट्सप नहीं था। तब प्राइवेट टीवी चैनल्स नहीं थे। अपनी बात को देश भर में पहुँचाने का एकमात्र साधन मौखिक प्रचार ही हुआ करता था। पर रामजी की बात इस देश को सुनानी नहीं पड़ती, लोग यूँ ही सुन लेते हैं। किसी अनजान भीड़ भाड़ वाले स्थान पर, जहां आपका परिचित कोई न हो, वहाँ भी दो बार जोर से जय श्रीराम चिल्ला कर देखिये। दो बार आप बोलिये, तीसरी बार दस लोग बोल उठेंगे। राम इस राष्ट्र की आत्मा हैं बन्धु!
तनिक सोचिये तो! आज के समय में जब यात्राएं अत्यंत सहज हो गयी हैं, तब भी क्या इतनी बड़ी भीड़ यूँ ही बटोर लेना सम्भव है क्या? नहीं! इतनी बड़ी भीड़ बटोर लेने की शक्ति केवल और केवल धर्म में है। वे लोग किसी दल, किसी जाति, किसी क्षेत्र के नहीं थे, वे लोग केवल और केवल रामजी के थे।
इस मंच के प्रमुख वक्ताओं में से एक थीं पूज्य साध्वी ऋतम्भरा! पिछले दिनों एक मंच पर वे दिखीं। साहस ही नहीं हुआ कि आगे बढ़ कर उनसे बात करूं, या उनके साथ एक तस्वीर खिंचा लेने का उतजोग करूँ! उन लोगों को देख लेना भी तीर्थ करने जैसा है।
2024 में जो शुभदिन आप देखने जा रहे हैं न, उसके पीछे ऐसे ही जाने कितने ही सद्प्रयासों का योगदान है। नमन कीजिये उन सभी स्वयंसेवकों को… वे सब देवता थे/हैं।
बस यूं ही…
साभार :सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं )
गोपालगंज बिहार।