मोंटगोमेरी (अमेरिका)कुछ ही क्षण पहले
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फैसले के बाद एक्सपर्ट कह रहे हैं कि IVF जैसे फर्टिलिटी प्रोवाइडर्स क्या करेंगे? क्योंकि, एक तरह से अगर कोई भ्रूण खराब हो जाता है तो उन्हें कसूरवार माना जाएगा और कानूनी कार्रवाई भी होगी। (प्रतीकात्मक)
अमेरिका के अल्बामा राज्य के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक- फ्रोजन एम्ब्रायो यानी सुरक्षित भ्रूण को बच्चा ही माना जाए। अगर कोई इन्हें नष्ट करता है तो उसे दोषी ठहराते हुए केस चलाया जाएगा।
अब इस फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है। कुछ लोगों का कहना है कि यह हजारों साल पुराने दौर में लौटने जैसा है। कुछ लोग मानते हैं कि इससे भ्रूण हत्या जैसे अपराध रोके जा सकेंगे। बहरहाल, इस फैसले की वजह से राज्य में कई IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) सेंटर बंद हो सकते हैं।
निकी हेली बोलीं- फैसला बिल्कुल सही
UN में अमेरिका की पूर्व एंबैसडर और रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट की रेस में शामिल निकी हेली ने अल्बामा राज्य के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। एनबीसी को दिए इंटरव्यू में साउथ कैरोलिना की इस पूर्व गवर्नर ने कहा- मेरे लिए भ्रूण का मतलब बच्चे ही हैं। लिहाजा, फैसला सही है और मैं इसका समर्थन करती हूं।
अल्बामा राज्य के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक- फ्रोजन एम्ब्रायो यानी सुरक्षित भ्रूण को बच्चा ही माना जाए। अगर कोई इन्हें नष्ट करता है तो उसे दोषी ठहराया जाएगा।
इस मामले से जुड़ी कुछ अहम बातें समझिए
- फैसला खास क्यों : अमेरिकी इतिहास में अबॉर्शन, एम्ब्रायो और प्रेग्नेंसी से जुड़े कई मुद्दों पर बहस चलती रहती है। बहरहाल, ये पहली बार हुआ है कि किसी राज्य के सुप्रीम कोर्ट ने भ्रूण पर इतना अहम फैसला दिया है। अब इससे जुड़ी कई कानूनी पहलू सामने आएंगे। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि एक ऐसे देश में जहां फ्रोजन एम्ब्रायो का चलन है, वहां इसका क्या असर होगा। अल्बामा की ही बात करें तो वहां पहले से मौजूद फ्रोजन एम्ब्रायो का क्या होगा?
- असर क्या होगा : एक्सिओस वेबसाइट के मुताबिक- IVF जैसे फर्टिलिटी प्रोवाइडर्स क्या करेंगे? क्योंकि, एक तरह से अगर कोई भ्रूण खराब हो जाता है तो उन्हें कसूरवार माना जाएगा और उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा। पहले ही यह प्रोसेस काफी महंगा है, अब और महंगा हो जाएगा। बहुत मुमकिन है कि अल्बामा में यह फैसेलिटी बंद हो जाए।
- अभी क्या हो रहा है : बुधवार को यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बामा ने अपने सभी IVF ट्रीटमेंट्स पर रोक लगा दी। कहा- पहले तमाम रूल्स सामने आने चाहिए। दूसरे राज्यों में ऑपरेट कर रहे IVF सेंटर्स को डर है कि उनके राज्य में भी यह कानून लागू किया जा सकता है।
- आंकड़े क्या कहते हैं : ‘द हिल’ वेबसाइट के मुताबिक- अमेरिका में एक साल में जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उनमें से महज 2% का जन्म IVF या री-प्रोडक्टिव तरीके से होता है। यह डेटा अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीट कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की तरफ से दिसंबर 2023 में जारी किया गया था। 2020 में जारी डेटा के मुताबिक- अमेरिका में उस वक्त 6 लाख फ्रोजन एम्ब्रायो स्टोर थे। हालांकि, अनऑफिशियल रिकॉर्ड्स बताते हैं कि इन संरक्षित या सुरक्षित भ्रूण की तादाद 10 लाख से ज्यादा है।
और सबसे जरूरी बात : एक्सपर्ट्स क्या कह रहे हैं
- सिनसिनाटी के फैमिली लॉ एंड फर्टिलिटी लॉ ग्रुप की एक्सपर्ट रशेल लॉफ्टस्प्रिंग कहती हैं- अभी जो जानकारी मौजूद है, उसके मुताबिक एम्ब्रायो को ट्रांसफर करते वक्त भी अगर वो खराब हो जाता है तो प्रोवाइडर्स को तगड़ा हर्जाना देना होगा। परेशानी यह है कि ज्यादातर IVF का सक्सेस रेट पहले ही कम है, अब अगर किसी वजह से यह खराब हो जाता है तो डॉक्टर्स तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। मेरा अल्बामा के सुप्रीम कोर्ट से बहुत सीधा सवाल है। वो बताएं कि अगर किसी महिला का मिसकैरीज हो जाता है तो क्या इसे भी क्राइम माना जाएगा? क्या इसके लिए भी महिला जिम्मेदार होगी?
- IVF एक्सपर्ट डॉक्टर लिंडसे हीलर ने एक्सिओस वेबसाइट से कहा- फ्रोजन प्रोसेस में टेक्निकल फॉल्ट्स आ जाते हैं। अगर मशीन से गलती होती है तो क्या फिर भी इंसान ही जिम्मेदार होगा। ऐसे में डॉक्टर यह काम करेंगे ही क्यों? कोई इस तरह की रिस्क आखिर क्यों लेगा?
2023 में पब्लिश एक मेडिकल जर्नल के मुताबिक- दुनिया में इस वक्त 1.20 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने जीवन की शुरुआत मां के गर्भ से नहीं बल्कि किसी लैब के जार से की है।
1978 में शुरू हुई ये तकनीक
- 2023 में पब्लिश एक मेडिकल जर्नल के मुताबिक- दुनिया में इस वक्त 1.20 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने जीवन की शुरुआत मां के गर्भ से नहीं बल्कि किसी लैब के जार से की है। दुनिया भर में हर 3 मिनट में 4 ऐसे बच्चों का जन्म हो रहा है। 1978 से शुरू हुई इस आईवीएफ तकनीक की मांग अब इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि लगातार बढ़ते आईवीएफ सेंटर्स मांग पूरी नहीं कर पा रहे हैं और लोग वेटिंग में हैं।
- दुनिया के कई देशों में एलजीबीटी समुदाय को कानूनी मान्यता मिल गई है। इसके बाद उनके माता-पिता बनने की चाहत भी आईवीएफ के जरिए पूरी हो रही है। जेनेटिक बीमारियों से परेशान लोगों को आईवीएफ तकनीक ज्यादा सुरक्षित लगने लगी है।
1990 के बाद जबसे भ्रूण में सेल्स को हटाने की तकनीक विकसित हुई, अगली पीढ़ी को जेनेटिक डिसीज से बचाने के लिए लोग आईवीएफ की कोशिश करने लगे।
महिलाओं की मां बनने की बढ़ती उम्र ने बढ़ाई IVF की मांग
- कोलंबिया विश्वविद्यालय के फर्टिलिटी सेंटर के जेव विलियम्स कहते हैं- 1990 के बाद जबसे भ्रूण में सेल्स को हटाने की तकनीक विकसित हुई, अगली पीढ़ी को आनुवांशिक रोगों से बचाने के लिए लोग आईवीएफ के जरिए संतान पाने की कोशिश करने लगे। इससे आनुवांशिक रोगों से मुक्त बच्चे पैदा हो रहे हैं।
- लेकिन इन सबसे ज्यादा महिलाओं की मां बनने की बढ़ती उम्र की वजह से आईवीएफ की मांग दुनिया भर में बढ़ी है। इंग्लैंड और वेल्स में पहले बच्चे की मां बनने की औसत उम्र 29 साल है। चीन के शंघाई में 30 साल और अमेरिका में 35 साल हो गई है।
- 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक- भारत में इस समय 3.5 करोड़ इनफर्टाइल लोग हैं। इसमें सिर्फ 2% ही इसका इलाज कराते हैं। इसमें आईवीएफ भी शामिल है। दूसरे देशों में यह आंकड़ा भारत से काफी अधिक है। 2022-23 में भारत में करीब 2,80,000 आईवीएफ साइकिल हुए। पांच साल में इसमें 15 से 20% की बढ़ोतरी की संभावना है। अगले 5 सालों में ये साइकिल बढ़कर 5.5 से 6 लाख होने की उम्मीद है।
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