Law Commission propose amendments current laws; Offenders must pay for public property damage to get bail | पब्लिक प्रॉपर्टी के नुकसान पर लॉ पैनल का सुझाव: जब तक नुकसान की वसूली न हो, तब तक दंगाई को जमानत न दी जाए


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नई दिल्ली13 मिनट पहले

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अभी दंगा करने वालों पर सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 के मामला दर्ज किया जाता है। - Dainik Bhaskar

अभी दंगा करने वालों पर सार्वजनिक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम 1984 के मामला दर्ज किया जाता है।

रिटायर्ड जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की अध्यक्षता वाले भारत के 22वें विधि आयोग ने शुक्रवार 2 फरवरी को मोदी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी। रविवार को सामने आई इस रिपोर्ट में दंगाइयों के लिए कड़े जमानत प्रावधानों की सिफारिश की गई है।

पैनल ने सुझाव दिया है कि सड़कें जाम करने और तोड़-फोड़ करने वालों पर सार्वजनिक-निजी संपत्तियों को हुए नुकसान के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माना लगाया जाए। दंगाइयों को जुर्माने की वसूली के बाद ही जमानत दी जाए।

आयोग ने कहा- केरल की तरह अलग कानून बना सकते हैं
लॉ पैनल की रिपोर्ट में बताए गए जुर्माने का मतलब उस राशि से है, जो डैमेज हुई प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के बराबर होगी। अगर इस प्रॉपर्टी की वैल्यू निकाल पाना संभव न हो, तो इसका टोटल अमाउंट अदालत तय कर सकती है। इतना ही नहीं, पैनल ने कहा कि इस बदलाव को लागू करने के लिए सरकार एक अलग कानून ला सकती है।

पैनल ने बताया कि केरल में निजी संपत्ति को नुकसान की रोकथाम और मुआवजा भुगतान अधिनियम बनाया गया है। सरकार इसे भारतीय न्याय संहिता के लागू प्रावधानों में बदलाव करके या जोड़कर भी वसूल सकती है।

22वें विधि आयोग की 248वीं रिपोर्ट में मणिपुर का भी जिक्र
विधि आयोग की 284वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराधियों को जमानत देने की शर्त के रूप में डैमेज पब्लिक प्रॉपर्टी की कीमत जमा करने के लिए मजबूर करना निश्चित तौर पर प्रॉपर्टी को नुकसान से बचाएगा। दरअसल, आयोग ने इस संशोधन के लिए बड़े पैमाने पर हुई झड़पों का हवाला दिया है।

इनमें 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों, जाट (2015) और पाटीदार (2016) आरक्षण आंदोलन, भीमा कोरेगांव विरोध (2018), CAA विरोधी प्रदर्शन (2019), कृषि कानून आंदोलन (2020) से लेकर पैगंबर मोहम्मद (2022) पर की गई टिप्पणी के बाद हुई हिंसा और पिछले साल मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा शामिल है।

आपराधिक मानहानि को बरकरार रखा जाए
शुक्रवार को ही सौंपी एक अलग रिपोर्ट में आपराधिक मानहानि के अपराध को बरकरार रखने की सिफारिश की है। 285वीं रिपोर्ट में कहा है कि दुर्भावनापूर्ण झूठ से बचाने की जरूरत के साथ खुलेआम बोले जाने वाली बातों को कंट्रोल करना भी जरूरी है ताकि किसी व्यक्ति की छवि धूमिल न हो।

दरअसल, यह मामला अगस्त 2017 में कानून मंत्रालय ने लॉ पैनल को भेजा था। पैनल ने सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 2016 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने आपराधिक मानहानि के अपराध की संवैधानिकता को बरकरार रखा था।

कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा करने जैसे कुछ जरूरी प्रतिबंधों के अधीन है।

अमित शाह ने तीन कानूनों में बदलाव के बिल पेश किए थे

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा शीतकालीन सत्र 2023 में पेश किए थे। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर किया गया है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) और एविडेंस एक्ट हैं।

तीनों कानूनों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को अपनी सहमति दे दी। नए कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। फुलप्रूफ ऑनलाइन सिस्टम सुनिश्चित करने के लिए चंडीगढ़ में एक ट्रायल रन किया जाएगा क्योंकि अधिकांश रिकॉर्ड इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल होंगे।

नए कानूनों को लेकर न्यायिक अधिकारियों की ट्रेनिंग के लिए गृह मंत्रालय पहले ही परामर्श कर चुका है। ट्रेनिंग भोपाल की एकेडमी में दी जाएगी।

नए कानूनों से क्या बदलेगा

  • ​​​​​कई धाराएं और प्रावधान अब बदलेंगे। IPC में 511 धाराएं हैं, जो 356 बचेंगी। 175 धाराएं बदलेंगी। 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी।
  • इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी। 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था।
  • सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा।
  • देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।
  • तीनों बिल जांच के लिए संसदीय कमेटी के पास भेजे गए हैं। इसके बाद ये लोकसभा और राज्यसभा में पास किए जाएंगे।

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