3 दिन पहले
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इनकार के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भारत के गणतंत्र दिवस परेड में बतौर चीफ गेस्ट शामिल हो रहे हैं। इसके लिए आज वे 2 दिन के राजकीय दौरे पर भारत आ रहे हैं। ऐसा छठी बार होगा जब कोई फ्रांसीसी राष्ट्रपति भारत की गणतंत्र दिवस परेड में चीफ गेस्ट बनेंगे।
मैक्रों पेरिस से दिल्ली न जाकर सीधे जयपुर एयरपोर्ट पर उतरेंगे। यहां वे सबसे पहले आमेर किला जाएंगे। इस दौरान मैक्रों भारतीय कारीगरों और छात्रों से बातचीत करेंगे। इसके बाद PM नरेंद्र मोदी उन्हें रिसीव करेंगे।
दोनों नेता जंतर मंतर से सांगानेरी गेट तक रोड शो करेंगे। इसके बाद वे हवा महल भी जाएंगे। न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, जयपुर में ही दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बैठक होगी। इसमें भारत के रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कई अहम घोषणाएं हो सकती हैं। मैक्रों रात में दिल्ली के लिए रवाना होंगे।
परमाणु परीक्षण पर भारत का साथ देने वाला इकलौता पश्चिमी देश फ्रांस
भारत और फ्रांस के बीच दोस्ती की शुरुआत उस वक्त से मानी जाती है, जब 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। इसका विरोध जताते हुए अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने भारत पर कई पाबंदियां लगा दी थीं। तब फ्रांस पश्चिम का इकलौता ऐसा देश था, जिसने भारत का समर्थन किया था।
रूस-यूक्रेन जंग के बाद से भारत रक्षा के क्षेत्र में और खासतौर पर हथियारों की खरीद के मामले में रूस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। हालांकि, भारत ने कभी आधिकारिक तौर पर ऐसा नहीं कहा।
SIPRI के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार खरीदार है। वहीं, फ्रांस दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाला देश है। 2018 से 2022 के बीच भारत ने 30% हथियार फ्रांस से ही खरीदे। भारत और फ्रांस के बीच सालाना करीब 97 हजार करोड़ रुपए का व्यापार है। साफ है कि फ्रांस के लिए भारत एक बड़ा मार्केट है।
UNSC में बदलाव से लेकर मल्टी पोलर दुनिया की चाहत तक, JNU में इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर राजन कुमार से भारत-फ्रांस के रिश्तों से जुड़े 4 अहम सवालों के जवाब
सवाल 1: भारत और फ्रांस किन मुद्दों पर एक-दूसरे से सहयोग चाहते हैं?
जवाब: फ्रांस और भारत एक-दूसरे से किसी एक मुद्दे पर सहयोग नहीं चाहते। दोनों के बीच सालों से दुनिया के अलग-अलग इश्यूज को लेकर अच्छी साझेदारी रही है। इनमें से कुछ ये मुद्दे हैं…
पहला मुद्दा- UNSC में बदलाव
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC में फ्रांस स्थाई सदस्य है। भारत लंबे समय से UNSC में बदलाव की मांग करता रहा है। भारत का मानना है कि UN के बनने के बाद से दुनिया काफी बदल चुकी है। ऐसे में दुनिया को चलाने वाली संस्था में भी बदलाव जरूरी है।
UN को चंद देशों के इशारे पर चलना बंद करना चाहिए। फ्रांस भी भारत की इन मांगों का समर्थन करता है। वहीं, दूसरी ओर UNSC में भारत स्थाई सदस्यता की मांग करता है। इसे लेकर फ्रांस ने भारत का ही पक्ष लिया है।
दूसरा मुद्दा- मल्टी पोलर दुनिया की चाहत
भारत की तरह ही फ्रांस भी मल्टी पोलर वर्ल्ड का समर्थक है। इसका मतलब ये हुआ कि दोनों देश दुनिया में किसी एक देश का दबदबा कायम होने देना नहीं चाहते। इसका ताजा उदाहरण चीन पर अमेरिका के खिलाफ फ्रांस का स्टैंड है। नाटो का मेंबर होने के बावजूद फ्रांस ने साफ कह दिया था कि वह चीन पर अमेरिका के इशारों पर नहीं चलेगा।
फ्रांस ताइवान के मामले में भी अमेरिका की नीतियों का समर्थन नहीं करता। अगर भारत की बात करें तो भारत शीत युद्ध के दौर से ही किसी एक खेमे का समर्थक होने की खिलाफत करता रहा है। इसके अलावा इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी दोनों देश साथ खड़े हैं।
तीसरा मुद्दा- डिफेंस में साझेदारी
यूक्रेन जंग के बाद से भारत हथियारों को लेकर रूस पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है। इसके लिए वो रास्ते तलाश रहा है। किसी एक देश पर निर्भर रहने की बजाय भारत अलग-अलग देशों के बेहतर हथियारों को सेना के लिए खरीद रहा है।
PM मोदी के अमेरिका दौरे पर भारत ने MQ-9 ड्रोन की डील की। वहीं, जर्मनी के साथ 6 पनडुब्बियां बनाने का समझौता होना तय माना जा रहा है। फ्रांस से भारत ने 36 राफेल फाइटर जेट्स लिए हैं। मोदी की फ्रांस विजिट (2023) से पहले भी भारतीय नेवी ने 26 और राफेल खरीदने की इच्छा जताई थी। अब मैक्रों के दौरे के बाद भारत की मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड यानी MDL को फ्रांस के सहयोग से तीन और स्कॉर्पीन-क्लास अटैक सबमरीन बनाने का मौका मिल सकता है।
सवाल 2: क्या भारत के जरिए इंडो-पैसिफिक में मौजूदगी दर्ज कराना चाहता है फ्रांस?
जवाब: समुद्र की बात करें तो फिलहाल भारत को जो खतरा है, वो चीन की ओर से है। भारत राफेल जेट्स का इस्तेमाल इंडो-पैसिफिक में चीन के खिलाफ अपनी पोजिशन को मजबूत करने में करेगा। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन फ्रांस, भारत के जरिए इंडो-पैसिफिक में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहता है।
दरअसल, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने साल 2021 में मिलकर इंडो-पैसिफिक को लेकर एक संगठन बनाया था। शुरुआत में फ्रांस को भी इसका सदस्य बनाने की बात चली थी। हालांकि, लास्ट मोमेंट पर उसे छोड़ दिया गया। फ्रांस ने इस पर काफी नाराजगी जाहिर की थी। यहां तक कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के इस कदम को उसने धोखा देने और पीठ में छुरा घोंपने जैसा बताया था।
सवाल 3: भारत को लेकर फ्रांस का स्टैंड दूसरे पश्चिमी देशों से अलग कैसे है?
जवाब: आपने कई बार अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को भारत में मानवाधिकार और लोकतंत्र को लेकर सवाल खड़े करते हुए सुना होगा। फ्रांस इनकी तुलना में भारत के आंतरिक मामलों में काफी कम दखलंदाजी करता है। ये एक मुख्य वजह है कि भारत का फ्रांस के साथ कभी कोई बड़ा मनमुटाव नहीं रहा।
इसके अलावा जुलाई 1998 में भारत ने परमाणु ताकत बनने की ठानी और न्यूक्लियर टेस्ट किए तो सभी पश्चिमी देशों ने इस पर आपत्ति जताई। अमेरिका ने भारत पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। तब फ्रांस के राष्ट्रपति जैक शिराक ने भारत का समर्थन किया था।
पश्चिमी देशों के उलट जाकर फ्रांस ने भारत को न्यूक्लियर प्लांट सेटअप करने में मदद की। आपको ये जानकारी हैरानी होगी कि रूस के बाद फ्रांस इकलौता ऐसा देश है, जिसने भारत की न्यूक्लियर कैपेबिलिटी को बढ़ाने में मदद की। इस प्लांट को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत अभी जारी हैं। महाराष्ट्र के जैतपुर में लगा परमाणु प्लांट फ्रांस की मदद से ही मुमकिन हो पाया।
सवाल 4: भारत और फ्रांस किन मुद्दों पर एक साथ नहीं
जवाब: भारत और फ्रांस के बीच जिन मुद्दों को लेकर मतभेद हैं वो ज्यादातर टैरिफ से जुड़े हैं। फ्रांस यूरोपियन यूनियन का सदस्य है। ऐसे में दोनों देशों के बीच ट्रेड को लेकर होने वाली डील EU की निगरानी से होकर गुजरती हैं।
EU भारत से कार, वाइन, स्कॉच, शैंपेन और एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स पर इम्पोर्ट टैरिफ को कम करने की मांग कर चुका है। इसके अलावा वीजा, पेटेंट को लेकर भी दोनों के बीच मतभेद हैं, जिसके चलते EU के साथ भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट साइन नहीं कर पाया। अब मैक्रों की यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के बीच इस मुद्दे पर बातचीत फिर शुरू हो सकती है।
मोदी ने अहमदाबाद के बजाय जयपुर को क्यों चुना?
आजादी के बाद 77 वर्षों में यह पहला मौका है, जब गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री के साथ जयपुर आ रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि जयपुर ही क्यों? दरअसल, पीएम मोदी को जयपुर और राजस्थान भा गए हैं। वे नवंबर-2022 से अब तक 12 बार राजस्थान आए हैं।
नवंबर-2023 में जब उन्होंने जयपुर स्थित परकोटे में रोड-शो किया, तभी उन्होंने जयपुर में एक विशाल कार्यक्रम करना तय कर लिया था। जयपुर के ऐतिहासिक परकोटे और विरासत ने उन्हें प्रभावित किया। इससे पहले ज्यादातर मौकों पर दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को अहमदाबाद की ही विजिट कराई गई। पूरी खबर पढ़ें…