नई दिल्ली23 मिनट पहले
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दिल्ली हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा- ED की छापेमारी में इन्वेस्टिगेशन के 365 दिन के भीतर यदि आरोप साबित नहीं होता है तो प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत जब्त की गई संपत्ति को वापस उसके मालिक को लौटाना होगा।
कोर्ट ने यह फैसला भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPCL) के महेंद्र कुमार खंडेलवाल की दायर याचिका पर सुनाया। महेंद्र कुमार ने अपनी याचिका में कहा था कि ED ने छापेमारी के दौरान रिकॉर्ड दस्तावेज समेत सोने और हीरे की ज्वेलरी भी जब्त की थी, जिसकी कीमत 85 लाख रुपए से ज्यादा है।
ED की छापेमारी को एक साल से ज्यादा हो गया, लेकिन अभी तक जब्त की गईं चीजें लौटाई नहीं गई हैं।
प्रवर्तन निदेशालय (ED) केंद्रीय एजेंसी है, जो आपराधिक मामलों पर नजर रखती है।
याचिकाकर्ता को लौटाया जाए जब्त सामान
याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि ED की इन्वेस्टिगेशन में यदि 365 दिन के भीतर शख्स आरोपी साबित नहीं होता है कि तो PMLA के सेक्शन 8(3) के तहत संपत्ति को सीज करने का टाइम पीरियड लैप्स हो जाता है। ऐसे में जब्त संपत्ति उसे मालिक को वापस करनी चाहिए।
कोर्ट ने ED को आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता से जब्त किए सभी दस्तावेज, डिजिटल आइटम, संपत्ति और दूसरी चीजें उसे वापस लौटाई जाएं।
क्या है PMLA कानून?
प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी PMLA को आम भाषा में समझें तो इसका मतलब है- दो नंबर के पैसे को हेरफेर कर ठिकाने लगाने वालों के खिलाफ कानून। ये एक्ट मनी-लॉन्ड्रिंग को रोकने, मनी-लॉन्ड्रिंग से प्राप्त या उसमें शामिल संपत्ति को जब्त करने और उससे जुड़े या उसके प्रासंगिक मामलों में प्रावधान के लिए है।
PMLA के तहत ED को आरोपी को अरेस्ट करने, उसकी संपत्तियों को जब्त करने, उसके द्वारा गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलने की सख्त शर्तें और जांच अधिकारी के सामने रिकॉर्ड बयान को कोर्ट में सबूत के रूप में मान्य होने जैसे नियम उसे ताकतवर बनाते हैं।
PMLA, 2002 में NDA के शासनकाल में बना था। ये कानून लागू हुआ 2005 में कांग्रेस के शासनकाल में, जब पी. चिदंबरम देश के वित्त मंत्री थे। PMLA कानून में पहली बार बदलाव भी 2005 में चिदंबरम ने ही किया था।
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