1 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन और जिनपिंग के बीच पांचवीं बार मुलाकात हुई है।
मध्य एशियाई देश कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में बुधवार से SCO समिट की शुरुआत हो गई। इस बैठक से अलग रूसी राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई। पिछले 2 महीने में ये दूसरी बार है जब दोनों नेता मिले हैं।
इस दौरान दोनों नेताओं ने एक दूसरे के साथ संबंधों की तारीफ की। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जिनपिंग से मुलाकात के दौरान कहा कि बीजिंग और मॉस्को के बीच इतने बेहतर संबंध कभी नहीं रहे। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद दोनों की ये पांचवीं मुलाकात हुई है।
राष्ट्रपति पुतिन ने SCO की सराहना करते हुए कहा कि ये एक निष्पक्ष संगठन है जो कि बहुध्रुवीय व्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पुतिन की तारीफ की और उन्हें अपना ‘पुराना मित्र’ बताया।
उन्होंने कहा कि चीन और रूस के बीच संबंध पहले से कहीं बेहतर हुए हैं। शी जिनपिंग ने कहा कि दुनिया में अशांति छाई है। ऐसे में दोनों देशों को आने वाली पीढ़ियों के लिए मित्रता कायम रखनी चाहिए।
कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ से मुलाकात की।
रूस के साथ बार्टर सिस्टम से बिजनेस करना चाहता है पाक
पाकिस्तानी वेबसाइट डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक SCO बैठक से अलग बुधवार को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से भी मुलाकात की। इस दौरान पाकिस्तानी PM ने पुतिन से पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिए ‘बार्टर सिस्टम’ अपनाने पर जोर दिया। बार्टर सिस्टम में दोनों देश बिना किसी करेंसी का इस्तेमाल किए अपनी चीजें बदल कर बिजनेस कर सकते हैं।
शरीफ ने कहा कि इससे पाकिस्तान को बहुत लाभ होगा तथा कई अन्य चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। पीएम शहबाज ने कहा कि1950 और 1960 के दशक में पाकिस्तान और रूस के बीच बार्टम सिस्टम की मदद से ही व्यापार होता था। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि उनका देश पाकिस्तान को तेल की सप्लाई करने के साथ अनाज देकर खाद्य सुरक्षा में भी सहयोग करना चाहता है।
एर्दोगन बोले- युद्ध खत्म करने में मदद कर सकता है तुर्किए
पुतिन ने अस्ताना में बैठक के दौरान तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन से भी मुलाकात की। एर्दोगन ने कहा कि तुर्किए रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने में मदद कर सकता है। तुर्की राष्ट्रपति कार्यालय के बयान के मुताबिक पुतिन और एर्दोगन ने गाजा में चल रहे युद्ध के साथ-साथ सीरिया में संघर्ष रोकने के तरीकों पर भी चर्चा की।
रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास जंग के बीच ये पहला मौका है जब पुतिन, शी जिनपिंग, शहबाज शरीफ और एर्दोगन एक साथ, एक मंच पर हैं। हालांकि तुर्किये इस संगठन का सदस्य नहीं है। एर्दोगन बतौर गेस्ट इस समिट में भाग ले रहे हैं।
पुतिन और एर्दोगन ने गाजा में चल रहे युद्ध के साथ-साथ सीरिया में संघर्ष रोकने के तरीकों पर भी चर्चा की।
SCO समिट में शामिल नहीं हो रहे PM मोदी
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी SCO समिट में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। उनकी जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। इस बार की बैठक में SCO की बीते 20 सालों की गतिविधियों की समीक्षा करने के साथ आपसी सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हो रही है।
भारत के विदेश मंत्रालय के जारी बयान के मुताबिक SCO में भारत का जोर सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, एकता, संप्रभुता का सम्मान, क्षेत्रीय एकता, सहयोग और पर्यावरण सुरक्षा पर है।
संसद सत्र या चीन-पाकिस्तान, मोदी ने क्यों रद्द किया कजाकिस्तान का दौरा?
सूत्रों के मुताबिक मोदी पहले इस समिट के लिए कजाकिस्तान जाने वाले थे। इसके चलते उनकी एडवांस सिक्योरिटी टीम ने अस्ताना जाकर वहां सुरक्षा का जायजा भी लिया था। बाद में संसद के सत्र की वजह से उन्हें दौरा रद्द करना पड़ा।
हालांकि, प्रधानमंत्री के नहीं पहुंचने से संगठन के प्रति भारत की गंभीरता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शहबाज शरीफ और शी जिनपिंग की मौजूदगी के चलते मोदी के दौरे को रद्द किया गया है। फिलहाल चीन-पाकिस्तान दोनों ही देशों से भारत के संबंध ठीक नहीं हैं। मोदी के कजाकिस्तान जाने पर वे जिनपिंग और शहबाज शरीफ के आमने-सामने होते।
हालांकि, इस संगठन की बैठक में मौजूदगी दर्ज कराना भारत की मजबूरी है। ऐसा क्यों है, SCO संगठन क्या है, कितना ताकतवर है, ये भारत के लिए कितना अहम है …विदेश मामलों के एक्सपर्ट राजन कुमार से जानिए ऐसे ही 5 सवालों के जवाब…
सवाल 1: SCO कब बना और इसे बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
जवाब: 1991 में सोवियत यूनियन कई हिस्सों में टूट गया। इसके बाद रूस के पड़ोसी देशों के बीच बाउंड्री तय नहीं होने की वजह से सीमा विवाद शुरू हो गया। ये विवाद जंग का रूप न ले, इसके लिए रूस को एक संगठन बनाने की जरूरत महसूस हुई।
रूस को यह भी डर था कि चीन अपनी सीमा से लगे सोवियत यूनियन के सदस्य रहे छोटे-छोटे देशों की जमीनों पर कब्जा न कर ले। ऐसे में रूस ने 1996 में चीन और पूर्व सोवियत देशों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया। इसका ऐलान चीन के शंघाई शहर में हुआ, इसलिए संगठन का नाम- शंघाई फाइव रखा गया। शुरुआत में इस संगठन के 5 सदस्य देशों में रूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान शामिल थे।
जब इन देशों के बीच सीमा विवाद सुलझ गए तो इसे एक अंतरराष्ट्रीय संगठन का रूप दिया गया। 2001 में इन पांच देशों के साथ एक और देश उज्बेकिस्तान ने जुड़ने का ऐलान किया, जिसके बाद इसे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी SCO नाम दिया गया।
तस्वीर 2002 की है, जब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में SCO की बैठक हुई थी।
सवाल 2: आखिर SCO का मुख्य उद्देश्य और काम क्या है?
जवाब: SCO देशों ने जब सीमा विवाद को सुलझा लिया तो इसका उद्देश्य बदल गए। अब इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों को तीन तरह के इविल यानी शैतानों से बचाना था…
- अलगाववाद
- आतंकवाद
- धार्मिक कट्टरपंथ
रूस को लगता था कि उसके आसपास के देशों में कट्टरपंथी सोच न बढ़े। अफगानिस्तान, सऊदी अरब और ईरान के करीब होने की वजह से ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान में आतंकी संगठन पनपने भी लगे थे, जैसे- IMU यानी इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान में HUT। ऐसे में SCO के जरिए रूस और चीन ने इन तीन तरह के शैतानों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी।
इसके अलावा सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और संबंधों को मजबूत करना भी इस संगठन का मुख्य काम है। सदस्य देशों के बीच ये संगठन राजनीति, व्यापार, इकोनॉमी, साइंस, टेक्नोलॉजी, एनर्जी, पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का काम कर रहा है।
सवाल 3: चीन-पाकिस्तान पर लगाम, सेंट्रल एशिया पर नजर, भारत के लिए क्यों जरूरी है SCO?
जवाब: SCO बनने के बाद भारत को भी इसमें शामिल होने का न्योता दिया गया था। हालांकि, उस समय भारत ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।
इस बीच चीन ने पाकिस्तान को इस संगठन का सदस्य बनाने की मुहिम शुरू कर दी। इससे रूस को संगठन में चीन के बढ़ते दबदबे का डर लगने लगा। तब जाकर रूस ने भारत को भी इस संगठन में शामिल होने की सलाह दी।
इसके बाद 2017 में भारत इस संगठन का स्थायी सदस्य बना। भारत के इस संगठन में शामिल होने की 5 और वजहें भी हैं…
- भारत का ट्रेड SCO के सदस्य देशों के साथ बढ़ता जा रहा था, ऐसे में इस संगठन से संबंध बेहतर करने के लिए।
- सेंट्रल एशिया में दुनिया के कच्चे तेल और गैस का करीब 45% भंडार मौजूद है, जिसका उपयोग ही नहीं हुआ है। इसलिए भी ये देश भारत की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए आने वालों सालों में अहम हैं।
- सेंट्रल एशिया में अगर भारत को पहुंच बढ़ानी है तो SCO अहम है। इसकी वजह ये है कि इस संगठन में सेंट्रल एशिया के सारे देश एक साथ बैठते हैं।
- अफगानिस्तान पर अपना पक्ष रखने के लिए भारत के पास कोई दूसरा संगठन नहीं है। अगर भारत को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका तय करनी है तो उसे इन सभी देशों के सहयोग की जरूरत है।
- आतंकवाद और ड्रग्स की समस्या को खत्म करने के लिए भारत को SCO के देशों के सहयोग की जरूरत है।
- सेंट्रल एशिया के देशों को भी इस संगठन में भारत की जरूरत थी। वो छोटे-छोटे देश नहीं चाहते थे जिससे केवल चीन और रूस ही संगठन में दबदबा बनाए रखें। इसके लिए वो भारत को बैलेंसिंग पावर के तौर पर चाह रहे थे।
सवाल 4: क्या अमेरिका के NATO को टक्कर देने के लिए रूस ने बनाया था SCO?
जवाब : नहीं, ऐसा कहना बिल्कुल गलत है। शुरुआत में ऐसा बिल्कुल नहीं था। अफगानिस्तान के मामले में अमेरिका को रूस का पूरा साथ था। 2001 में जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को गिराया था तो बुश को सबसे पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने ही फोन किया था।
उस समय तक रूस और अमेरिका के संबंध अच्छे चल रहे थे। अमेरिका और रूस के संबंध 2004 से खराब होने शुरू हुए। जब US ने NATO को बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके बदले में 2008 में रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया। तब दोनों देशों के बीच स्थिति काफी खराब हो गई थी।
इसी समय SCO संगठन में पहली बार नाटो के खिलाफ सेंटिमेंट पैदा हुआ। नतीजा ये हुआ कि उज्बेकिस्तान ने पहली बार अपने यहां बने अमेरिकी सैनिकों के बेस को हटवा दिया।
इसी के बाद SCO देशों में आतंकवाद के खिलाफ जॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज होनी शुरू हुई। हालांकि इसके बावजूद SCO की तुलना NATO के साथ नहीं की जा सकती है।
वजह ये है कि NATO एक मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन है जबकि SCO एक रीजनल और सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है। इसका उद्धेश्य सदस्य देशों के बीच संबंध को बेहतर करना है।
SCO के सभी सदस्य पहले भी बोल चुके हैं कि इसका NATO से कोई वास्ता नहीं है। अगर रूस इसे NATO बनाना भी चाहेगा तो भारत ऐसा नहीं होने देगा। भारत की नीति है कि वो कभी किसी मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन का हिस्सा नहीं बनेगा।
अगर SCO मिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन होता तो यूक्रेन जंग में चीन और इसके सदस्य देश खुलकर रूस का साथ देते।
गोवा में 2023 में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भारत आए थे।
सवाल 5: क्या SCO से भारत को कुछ खास हासिल हुआ है?
जवाब: दो मौकों पर SCO की वजह से भारत ने चीन को झुकने के लिए मजबूर किया है…
1. भारतीय अधिकारियों ने सितंबर 2022 में समरकंद में होने वाले SCO सम्मेलन के पहले चीन को साफ कर दिया था कि प्रधानमंत्री इस सम्मेलन में तभी हिस्सा लेंगे, जब वह LAC पर तैनात अपनी सेनाओं को पहले की स्थिति में वापस बुला लेगा।
इस मैसेज का असर भी हुआ और SCO बैठक से ठीक एक हफ्ते पहले 8 सितंबर को चीन ने अपनी सेना को LAC में पूर्वी लद्दाख के हॉट-स्प्रिंग्स-गोर्गा इलाके, जिसे पेट्रोलिंग पॉइंट 15 भी कहा जाता है, से हटाना शुरू कर दिया।
दरअसल, 2022 में चीन की अगुवाई में होने वाले BRICS सम्मेलन में PM मोदी ने हिस्सा नहीं लिया था। जबकि कुछ दिनों बाद वह अमेरिकी अगुआई वाले QUAD देशों की बैठक में हिस्सा लेने टोक्यो चले गए थे। लिहाजा चीन नहीं चाहता था कि SCO सम्मेलन में मोदी की गैर मौजूदगी से इस संगठन के आपसी मनमुटाव का संदेश दुनिया में जाए। BRICS ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका का एक संगठन है।
2. 2017 में भी भारत ने चीन को कह दिया था कि अगर डोकलाम में चीनी सेनाएं अपनी पहले की स्थिति में नहीं लौटेंगी तो प्रधानमंत्री मोदी BRICS समझौते के लिए चीन के शियामेन नहीं जाएंगे। चीन ने भारत की बात मानी और मोदी ने BRICS समझौते के लिए शियामेन की फ्लाइट पकड़ ली।
Disclaimer:* The following news is sourced directly from our news feed, and we do not exert control over its content. We cannot be held responsible for the accuracy or validity of any information presented in this news article.
Source link