मॉस्को36 मिनट पहले
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71 साल के पुतिन का पांचवीं बार चुनाव जीतना और राष्ट्रपति बनना तय माना जा रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पांचवीं बार प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में उतरेंगे। सोमवार को पुतिन ने खुद को नॉमिनेट किया। मंगलवार को इलेक्शन कमीशन ने औपचारिकता पूरी कर दी।
चुनाव 15 से 17 मार्च तक होंगे। अब तक विपक्ष की तरफ से कोई नाम सामने नहीं आया है। हालांकि, कुछ नेताओं की तरफ से दावे किए गए हैं, लेकिन औपचारिक तौर पर नॉमिनेशन नहीं किया गया है। हालांकि, बोरिस नेदेझिन बतौर लिबरल कैंडिडेट दावा ठोक रहे हैं। उन्होंने नॉमिनेशन फॉर्म भी सबमिट कर दिया है। कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक दावा करती हैं कि बोरिस चुनाव लड़ ही नहीं पाएंगे।
चुनाव या सिर्फ दिखावा
पुतिन के विरोधी और वेस्टर्न वर्ल्ड आरोप लगाते हैं कि पुतिन के साल 2000 में पहली बार राष्ट्रपति बनने के बाद से ही रूस में सही मायनों में कोई चुनाव हुआ ही नहीं। यहां सब पहले से तय रहता है और होता वही है जो पुतिन चाहते हैं।
आरोप यह भी लगता है कि पुतिन ने कभी वेस्टर्न वर्ल्ड या वहां की डेमोक्रेसी को बतौर ऑब्जर्वर देश में नहीं आने दिया। इस बार तो यह इसलिए भी बहुत मुश्किल है, क्योंकि यूक्रेन और रूस की जंग चल रही है और वेस्टर्न वर्ल्ड यूक्रेन की खुली मदद कर रहा है।
2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं पुतिन
- पुतिन ने उस कानून पर सिग्नेचर किए थे, जो उन्हें 2036 तक सत्ता में रहने की ताकत देता है। इसके साथ ही पुतिन को राष्ट्रपति पद पर अन्य दो कार्यकाल तक बने रहने की मंजूरी मिल गई थी।
- 71 साल के पुतिन करीब ढाई दशक से सत्ता में हैं। कोरोना के दौर में भी रूस में संविधान संशोधन के लिए जनमत संग्रह अभियान भी चलाया गया था। यह 7 दिन तक चला था। वोटिंग ऑनलाइन हुई। करीब 60% वोटरों ने मतदान किया। रूस की जनता ने पुतिन को 2036 तक पद पर बनाए रखने के समर्थन और विरोध में वोट दिए थे। इसके मुताबिक 76% लोगों ने संविधान में संशोधन का समर्थन किया था।
- पुतिन पहली बार मई 2000 में राष्ट्रपति बने थे। दो कार्यकाल 2008 में पूरे हुए। इसके बाद मेदवेदेव राष्ट्रपति और पुतिन प्रधानमंत्री बने। हालांकि, सरकार की असल कमान पुतिन के पास ही थी।
- खास बात ये है कि मेदवेदेव के राष्ट्रपति रहने के दौरान संविधान संशोधन के जरिए राष्ट्रपति का कार्यकाल 6 साल कर दिया गया। इससे पहले यह 4 साल था। 2012 में पुतिन फिर राष्ट्रपति और इस बार मेदवेदेव प्रधानमंत्री बने।
रूस का राष्ट्रपति कितना ताकतवर
- रूस में सारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास ही हैं। प्रधानमंत्री की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है।
- राष्ट्रपति की मंजूरी की बाद ही रूस में पॉलिटिकल पार्टी रजिस्टर्ड हो सकती है।
- रूस में वेस्टर्न स्टाइल डेमोक्रेसी नहीं है। मसलन, अमेरिका में मोटे तौर पर दो दलीय व्यवस्था है, लेकिन सरकार के कामकाज में विपक्ष का अहम रोल होता है। दूसरी तरफ, रूस में राष्ट्रपति ही सबकुछ है। उसका सियासी दलों पर भी कंट्रोल होता है। वेस्टर्न वर्ल्ड का मीडिया कहता है कि रूस में मैनेज डेमोक्रेसी है। बाकी सब तो छोड़िए इलेक्शन मैनेजमेंट भी पिछले दरवाजे से प्रेसिडेंट ऑफिस करता है।
- रूसी महिलाओं को दुनिया में सबसे पहले रूसी क्रांति के बाद 1917 में मतदान का हक मिला था। इसके बाद जर्मनी में 1919, अमेरिका में 1920, ब्रिटेन में 1928, स्पेन में 1931 और फ्रांस में 1944 में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला था।
केजीबी के स्पाय मास्टर
- कहा जाता है कि पुतिन को उनकी मजबूत पर्सनैलिटी का भी फायदा मिलता है। वे सोवियत संघ के दौर में वहां की खुफिया एजेंसी कोमितेत गोसुदरास्तवेनोए बेजोपास्नोस्ती (KGB) में 17 साल जासूस भी रहे।
- बाहरी दुनिया उनकी स्पीच पर भले ही ज्यादा तवज्जो न दे, लेकिन सच्चाई ये है कि वो रूसी भाषा में दमदार वक्ता माने जाते हैं। वो अकसर कहते हैं- मैं रूस को रूस को सोवियत यूनियन की तरह सुपर पॉवर बनाउंगा।
- कुछ साल पहले पुतिन ने एक डॉक्यूमेंट्री में कहा था- मेरे दादास्पिरिडॉन पुतिन मार्क्सवादी नेता व्लादिमिर लेनिन और जोसेफ स्टालिन के रसोइए थे। पुतिन के मुताबिक, उनके पिताजी भी कभी-कभी स्टालिन के घर जाते थे और आकर बताते थे कि वो लोग कैसे रहते हैं।