Iran President Ebrahim Raisi Political Journey Explained | Helicopter Crash – Butcher of Tehran | ईरान के 8वें राष्ट्रपति रईसी का निधन: 5 हजार राजनीतिक कैदियों को सजा-ए-मौत देकर बने ‘तेहरान के कसाई’, सुप्रीम लीडर खामेनेई के उत्तराधिकारी थे


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तेहरान3 मिनट पहले

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ईरान के राष्ट्रपति का जन्म मशद शहर में हुआ था। उन्होंने एक धार्मिक संस्थान से पढ़ाई की थी। रईसी को ईरान के सबसे कट्टर नेताओं में से एक कहा जाता था। - Dainik Bhaskar

ईरान के राष्ट्रपति का जन्म मशद शहर में हुआ था। उन्होंने एक धार्मिक संस्थान से पढ़ाई की थी। रईसी को ईरान के सबसे कट्टर नेताओं में से एक कहा जाता था।

ईरान में 5 हजार राजनीतिक कैदियों को सजा-ए-मौत दिया जाना इस्लामिक रिपब्लिक के इतिहास में सबसे बड़ा जुर्म है।

साल 1988 में ईरान के तत्कालीन डिप्टी सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह हुस्सैन अली मुंतजरी ने यह बात कही थी। ईरान की ‘डेथ कमेटी’ ने यह फैसला 1988 में ही दिया था और कमेटी के अध्यक्ष थे तत्कालीन डिप्टी प्रॉसीक्यूटर जनरल इब्राहिम रईसी।

28 साल पुराने इस फैसले से जुड़ा एक ऑडियो साल 2016 में लीक हुआ था। ऑडियो रिकॉर्डिंग में मुंतजरी ईरान की ‘डेथ कमेटी’ से जुड़े सदस्यों पर चिल्ला रहे थे। वे इस फैसले से खुश नहीं थे।

कहा जाता है कि मुंतजरी के परिजनों ने ही इस टेप को लीक किया था। ऑडियो लीक होने के 5 साल के अंदर रईसी पहले ईरान के चीफ जस्टिस और फिर देश के राष्ट्रपति बन गए।

ईरान के 8वें राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का रविवार शाम हेलिकॉप्टर क्रैश में निधन हो गया। 1979 की इस्लामिक क्रांति के समर्थक और वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले रईसी इस्लामिक राज को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रपति के पद तक कैसे पहुंचे…

तस्वीर 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के वक्त की है। उस वक्त रईसी महज 19 साल के थे। उन्होंने ईरान के तत्कलीन शासक रजा पहलवी की सत्ता का विरोध करते हुए देश में इस्लामिक शासन की मांग की थी।

तस्वीर 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के वक्त की है। उस वक्त रईसी महज 19 साल के थे। उन्होंने ईरान के तत्कलीन शासक रजा पहलवी की सत्ता का विरोध करते हुए देश में इस्लामिक शासन की मांग की थी।

खामेनेई के सुप्रीम लीडर बनने के बाद रईसी का रसूख बढ़ी
ईरान में राजनीतिक कैदियों को सजा मिलने के एक साल बाद ईरान के तत्कालीन सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खुमैनी का निधन हो जाता है लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि डिप्टी सुप्रीम लीडर मुंतजरी की जगह ईरान के सर्वोच्च लीडर की कमान आयतुल्लाह अली खामेनेई को सौंप गई।

कहा जाता है कि खामेनेई के ईरान का सर्वोच्च धार्मिक लीडर बनने का अगर सबसे ज्यादा फायदा किसी को मिला तो वो इब्राहिम रईसी थे। उनकी सरपरस्ती में इब्राहिम रईसी तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए।

साल 2021 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद जब उन्हें 1988 की सामूहिक फांसी की सजा को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, “अगर किसी जज या वकील ने देश की सुरक्षा की है, तो उसकी तारीफ होनी चाहिए। मैंने ईरान में हर पद पर रहते हुए मानवाधिकार की रक्षा की है।”

इब्राहिम रईसी ईरान के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनके पद संभालने से पहले ही अमेरिका उन पर प्रतिबंध लगा चुका था। अमेरिका ने यह फैसला उसी समय लिया था जब रईसी ने डेथ कमेटी का सदस्य रहते हुए 5 हजार से ज्यादा राजनीतिक कैदियों को सामूहिक मौत की सजा दी थी। इस घटना के बाद रईसी को ‘तेहरान का कसाई’ भी कहा गया।

दरअसल, इन राजनीतिक कैदियों का संबंध मोजहिद्दीन-ए-ख्लक(MeK) से था। सशस्त्र सैनिकों का ये संगठन वामपंथी विचारों वाला था। ये ईरान की राजनीति को इस्लाम के आधार पर चलाने के खिलाफ थे।

फुटेज रविवार की सुबह का है। ईरान के वरजेघन शहर के पास हेलिकॉप्टर क्रैश होने के बाद शवों को तबरिज शहर पहुंचाया गया। इस हेलिकॉप्टर में रईसी के अलावा ईरान के विदेश मंत्री समेत 9 लोग सवार थे।

फुटेज रविवार की सुबह का है। ईरान के वरजेघन शहर के पास हेलिकॉप्टर क्रैश होने के बाद शवों को तबरिज शहर पहुंचाया गया। इस हेलिकॉप्टर में रईसी के अलावा ईरान के विदेश मंत्री समेत 9 लोग सवार थे।

सुप्रीम लीडर खामेनेई के उत्तराधिकारी कहलाते थे रईसी
63 साल के रईसी को ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई का उत्तराधिकारी माना जाता था। रईसी एक कट्टरपंथी और धार्मिक रूप से रूढ़िवादी नेता थे। ईरान का राष्ट्रपति बनने से पहले वे कई न्यायायिक पदों पर काम कर चुके थे। उन्होंने सबसे पहले 2017 में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा था।

इस चुनाव में उन्होंने खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले एक योद्धा के तौर पर पेश किया, मगर उदार माने जाने वाले हसन रूहानी से वे चुनाव हार गए। रूहानी को लगातार दूसरी बार जीत मिली। हसन रूहानी को 57% वोट मिले, जबकि रईसी 38% वोट्स के साथ दूसरे नंबर पर रहे। हालांकि इस हार के बाद भी रईसी की छवि पर कोई खास असर नहीं पड़ा।

आयतुल्लाह खामेनेई ने 2019 में उन्हें एक और बड़ी जिम्मेदारी देते हुए ईरान का चीफ जस्टिस बना दिया। वह दो सालों तक इस पद पर रहे। इसके बाद रईसी ने एक बार फिर से साल 2021 के राष्ट्रपति चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई।

इस चुनाव में उन्होंने शानदार जीत हासिल की। उन्हें 62% वोट हासिल हुए। रूहानी की तरफ से उम्मीदवार नियुक्त किए गए अब्दोलनासेर हिम्माती को सिर्फ 8.4% वोट मिले। कहा जाता है कि इस चुनाव में खामेनई का करीबी होने का रईसी को फायदा मिला था।

चुनाव के ठीक बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया से जुड़ी कई रिपोर्ट्स में ईरान के चुनावों में धांधली के दावे किए गए थे। चुनाव से पहले ईरान की गार्जियन काउंसिल ने कई विपक्षी और उदारवादी नेताओं के चुनाव लड़ने पर भी बैन लगा दिया था।

तस्वीर उन राजनीतिक कैदियों की है, जिन्हें सामूहिक सजा-ए-मौत दी गई थी। इसी घटना के बाद राष्ट्रपति रईसी को 'तेहरान का कसाई' कहा जाने लगा था।

तस्वीर उन राजनीतिक कैदियों की है, जिन्हें सामूहिक सजा-ए-मौत दी गई थी। इसी घटना के बाद राष्ट्रपति रईसी को ‘तेहरान का कसाई’ कहा जाने लगा था।

19 साल की उम्र इस्लामिक क्रांति का समर्थन किया
रईसी ने 15 साल की उम्र में कोम (Qom) नाम के एक धार्मिक संस्थान से पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने ईरान के तत्कालीन शासक मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। पहलवी को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का समर्थन मिला हुआ था। 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद वे तेहरान के करीब कराज शहर में सरकारी वकील के तौर पर नियुक्त किए गए।

साल 1983 में इब्राहिम रईसी ने जमीलेह नाम की महिला से शादी की। वह ईरान के दूसरे सबसे बड़े शहर के मौलवी इमाम अहमत की बेटी थीं। रईसी की दो बेटियां हैं। इब्राहिम रईसी हमेशा काली पगड़ी पहनते थे।

कहा जाता है कि इससे वो अपने आपको बनू हाशिम कबीला से जोड़कर दिखाना चाहते थे। बनू हाशिम, कुरैश कबीले की एक उपशाखा है। इस कबीले का नाम पैगम्बर मोहम्मद के परदादा हाशिम पर रखा गया है। अरबी भाषा में ‘बनू’ का मतलब ‘बेटा’ होता है। बनू हाशिम का मतलब ‘हाशिम का बेटा’ होता है। इस कबीले के सदस्य अक्सर ‘हाशमी’, ‘हुसैनी’ और ‘हसनी’ जैसे नाम रखते हैं।

2004 में रईसी को ईरान की अदालत का डिप्टी चीफ बनाया गया। साल 2006 में रईसी एसेंबली ऑफ एक्सपर्ट्स का हिस्सा बने। ये वो असेंबली है, जिसका काम ईरान के सर्वोच्च नेता की नियुक्ति और देखरेख करना है। इस दौरान वे खामेनेई के बेहद करीब आए।

2019 मे ईरान के चीफ जस्टिस और 2 साल बाद राष्ट्रपति बने
इस बीच 2004 में रईसी को ईरान का पहला डिप्टी चीफ जस्टिस बनाया गया। वे साल 2014 तक इस पद पर रहे। 2014 में रईसी ईरान के अटॉर्नी-जनरल बन गए। रईसी उस बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का भी हिस्सा था, जिसका काम सुप्रीम लीडर के आदेशों को लागू करवाना था। साल 2019 में रईसी को ईरान का चीफ जस्टिस बनाया गया।

2021 में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद रईसी ने ईरान के लोगों से वादा किया कि वे देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएंगे। इसके अलावा पड़ोसी देशों से रिश्ते सुधारने पर भी काम करेंगे।

हालांकि, इसके अगले ही साल सितंबर 2022 में ईरान में कट्टर इस्लामिक शासन के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे। दरअसल, इसकी शुरुआत ईरान में 22 साल की महिला महसा अमीनी की मौत के साथ हुई। ईरान की मोरैलिटी पुलिस ने हिजाब ठीक से पहनने पर महसा अमीनी 13 सितंबर 2022 को महसा को गिरफ्तार कर लिया था।

इसके ठीक 3 दिन बाद 16 सितंबर को पुलिस कस्टडी में उसकी मौत हो गई। इस दौरान पुलिस पर महसा से मारपीट करने का आरोप लगा, जिससे महसा कोमा में चली गई और फिर उसकी मौत हो गई।

इस्लामिक शासन का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग का आदेश दिया
देशभर में हो रहे विरोध के जवाब में रईसी ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती करने का आदेश दिया। उन्होंने ताकत के दम पर प्रोटेस्ट रोकने को कहा। UN मिशन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान ईरान के सिक्योरिटी फोर्सेज के हाथों 551 प्रदर्शनकारियों की हत्या हुई। जबकि झड़प में 75 सुरक्षाकर्मियों ने भी दम तोड़ा। इसके अलावा 20 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

साल 2023 में सऊदी अरब के साथ मिडिल ईस्ट में वर्चस्व की लड़ाई के बीच चीन की मध्यस्थता से दोनों देशों के डिप्लोमैटिक रिश्ते बहाल हो गए। हालांकि, कुछ महीनों बाद अक्टूबर में इजराइल-हमास के बीच शुरू हुई जंग के साथ तनाव फिर से बढ़ गया।

इजराइल ने लगातार ईरान पर हमास को मदद भेजने का आरोप लगाया। इसके बाद 1 अप्रैल को PM नेतन्याहू के आदेश पर सीरिया में ईरानी दूतावास की एक बिल्डिंग पर एयरस्ट्राइक की गई। इसमें ईरान के 2 टॉप कमांडरों समेत 13 लोगों की मौत हो गई।

इस हमले का बदला लेने के लिए रईसी ने इजराइल पर 300 ड्रोन्स और मिसाइलों से हमला करवाया। हालांकि, दोनों देशों की तरफ से जवाबी हमले के बाद यह लड़ाई रुक गई।

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